
बिच्छू डॉट कॉम। चीन और अमेरिका ने COP26 सम्मेलन में ग्लोबल वार्मिंग पर समझौते की घोषणा की है. दोनों देशों के सहयोग पर आधारित इस समझौते ने सब को चौंका दिया है, लेकिन इसके तहत कितने ठोस कदम उठाए जाएंगे इसे लेकर काफी संशय है.ग्लासगो में COP26 शिखर सम्मेलन के दौरान इस समझौते की घोषणा करते हुए जलवायु परिवर्तन पर अमेरिका के विशेष राजदूत जॉन केरी ने कहा, “इस दस्तावेज में डराने वाले विज्ञान, उत्सर्जन के गैप और उस गैप को भरने के लिए तुरंत उठाने वाले कदमों को लेकर पुख्ता बयान हैं” इस योजना में ठोस लक्ष्य ज्यादा नहीं हैं लेकिन इसकी काफी भारी राजनीतिक प्रतीकात्मकता है क्योंकि जब यह सम्मेलन शुरू हुआ था तब ऐसा लग रहा था कि अमेरिका और चीन एक दूसरे के खिलाफ भिड़े हुए थे. दोनों देश दुनिया में सबसे ज्यादा उत्सर्जन करने वाले देश हैं. रिश्तों में करवट चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया था और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस बात पर उनकी आलोचना की थी. बाइडेन ने चीन पर मुंह मोड़ लेने का आरोप लगाया था. बीजिंग ने भी जवाबी बयान दिया था लेकिन ऐसा लग रहा है कि दोनों देशों के आपसी रिश्तों में सुधार आया है. अगले सप्ताह दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय बातचीत होनी है. शायद उसी के मद्देनजर केरी और लंबे समय से चीन के जलवायु राजदूत रहे शी चेन्हुआ दोनों ने कहा कि वो आपसी मतभेदों से ऊपर उठ कर जलवायु के लिए साथ काम करेंगे. चेन्हुआ ने कहा, “दोनों पक्ष यह मानते हैं कि मौजूदा कोशिशों और पेरिस समझौते के लक्ष्यों में एक फासला है और इसलिए हम साथ मिल कर जलवायु पर हो रहे काम को मजबूत करेंगे” इसके अलावा शी जिनपिंग ने भी एक अलग मंच से दोनों देशों के सहयोग को लेकर बयान दिया।
उन्होंने एशिया-पैसिफिक इकोनॉमिक कोऑपरेशन शिखर सम्मेलन के मौके पर एक वर्चुअल व्यापार कॉन्फ्रेंस में कहा, “हम सब हरित, लो-कार्बन सस्टेनेबल विकास के सफर पर निकल सकते हैं. हम साथ मिल कर हरित विकास का भविष्य लिख सकते हैं” हाथ मिलाना जरूरी इस समझौते की रूपरेखा बताने वाले एक दस्तावेज में मीथेन के उत्सर्जन को कम करने पर ध्यान देना भी शामिल है. केरी के अनुसार यह “वार्मिंग को काबू में रखने के लिए सबसे तेज और सबसे असरदार तरीका है” दस्तावेज में यह भी लिखा है कि दोनों पक्ष जलवायु संकट पर कदम उठाने के लिए नियमित रूप से मिला करेंगे. घोषणा में कहा गया है कि दोनों देश “विशेष रूप से 2020 के बेहद जरूरी दशक में जलवायु संकट की गंभीरता और अत्यावश्यकता को मानते हैं”. अमेरिका ने कहा की उसकी 2050 तक कार्बन न्यूट्रल बन जाने की योजना है, जब कि चीन ने नेट जेरो का लक्ष्य 2060 का रखा” 2015 का पेरिस समझौता देशों को कहता है कि उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वो वैश्विक स्तर पर तापमान की वृद्धि को 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस के बीच सीमित रखें. संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि सभी देशों की योजनाओं के बावजूद साल 2100 तक वैश्विक तापमान 2.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा. संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने अमेरिका और चीन की संधि का स्वागत किया. उन्होंने एक ट्वीट में कहा, “जलवायु संकट का सामना करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और एकजुटता चाहिए और यह इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है”।