बिना ई-टेंडर जारी हो रहे लाखों रुपए के काम

ई-टेंडर
  • लोक निर्माण विभाग में अधिकारियों की मनमानी

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। लोकनिर्माण विभाग में भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए सरकार ने हर छोटे-बड़े काम के लिए ई-टेंडर की व्यवस्था की है। लेकिन सरकार के निर्देशों और व्यवस्था को दरकिनार करते हुए अधिकारी अपनी मनमानी कर रहे हैं। अधिकारियों की मनमानी का आलम यह है कि अब बिना ई-टेंडर के लाखों रुपए के काम कराए जा रहे हैं।
गौरतलब है कि प्रदेश में लोक निर्माण विभाग उन विभागों में गिना जाता है, जहां भ्रष्टाचार चरम पर है। सरकार ने विभाग से भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए छोटा से छोटा काम कराने के लिए ई-टेंडर की व्यवस्था की है, लेकिन राजधानी क्षेत्र के विद्युत यांत्रिकी डिवीजन एक में इसके बिना ही लाखों रुपए के वर्क ऑर्डर जारी हो रहे हैं। इसे सब वर्क ऑर्डर कहा जा रहा है। यह पूरा पैसा जोनल पार्ट का है।
टुकड़ों में जारी किया जा रहा वर्क आर्डर
दरअसल पीडब्ल्यूडी में जोन के हिसाब से मेंटेनेंस की राशि रखने का प्रावधान है। एक जोन में सालभर के लिए 25 लाख रुपए तक के टेंडर किए जाते हैं। इसके बाद यदि 3-4 लाख रुपए से लेकर बड़ी राशि के काम होना है तो इसका वर्क आॅर्डर बिना टेंडर ही जारी किया जा रहा है। ताजा मामला मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के काम का है। इसका प्रस्ताव 47 लाख 66 हजार 500 रुपए का बनाया गया और सीधे वर्क ऑर्डर जारी हो गए। यह पैसा जोनल वर्क का था। बाद में बीस लाख के टेंडर जारी करके गलती सुधारने की कोशिश की गई। विभाग के सूत्रों का कहना है कि जोनल पार्ट ऑर्डर की इस व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए मार्च 2021 में दिशा-निर्देश बनाए, लेकिन यह लागू ही नहीं हो सके। इसमें स्पष्ट किया गया था कि 2 लाख रुपए से अधिक के कामों के लिए अलग से टेंडर किए जाएं। इसकी भी अनुमति मुख्य अभियंता से ली जाए।
सीधे जारी कर दिए वर्क ऑर्डर
लोक निर्माण विभाग में अफसरों की मनमानी किस तरह चल रही है उसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कई कामों के वर्क ऑर्डर सीधे जारी कर दिए गए। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की केंद्रीय प्रयोगशाला में
वेस्ट एनालिसिस लैब के रेनोवेशन का काम होना था। इसके लिए 47.66 लाख के काम का सीधे वर्क  ऑर्डर दिया गया। वहीं अकादमी परिसर में स्ट्रीट लाइट, हाई मास्क, विद्युत पैनल (सब स्टेशन), ट्रांसफार्मर जनरेटर मशीनों के काम के लिए 66.73 लाख के आर्डर जारी हुए। ईदगाह हिल्स स्थित प्रशासकीय भवन के काम इसी व्यवस्था के तहत 19.95 लाख के किए जा रहे हैं। बी और डी टाइप अलग-अलग दो बंगलों में इलेक्ट्रिफिकेशन से जुड़े कामों के लिए 4.97 लाख और 4.53 लाख के सीधे वर्क आर्डर जारी हुआ। वहीं 3.65 लाख का काम पशुपालन निदेशालय में और 4.50 लाख रुपए के काम राजभवन में वर्क ऑर्डर जारी करके किए गए।
अब जोनल पार्ट 25 लाख
विभाग में फर्जीवाड़ा और अफसरों की मनमानी को देखते हुए सरकार ने कई तरह की पाबंदियां लगाई है। तीन साल पहले पांच करोड़ रुपए तक के काम जोनल पार्ट में होते थे। इसे घटाकर 25 लाख कर दिया गया। तब जिस ठेकेदार को साल भर के लिए जोनल पार्ट मिलता था, वह अपना कॉल सेंटर बनाकर रखता था। शासकीय भवनों में रहने वाले इसी कॉल सेंटर पर अपनी शिकायत दर्ज कराते थे। पीडब्ल्यूडी के ईएनसी अखिलेश अग्रवाल कहते हैं कि यदि शासकीय दफ्तरों के बड़े काम सीधे वर्क आर्डर से हुए हैं तो उसकी जानकारी कराएंगे। वैसे भी प्रक्रिया के तहत जोनल पार्ट के ई-टेंडर ही होते हैं। इसी से मेंटीनेंस के छोटे काम किए जाते हैं। यदि छोटे कामों के भी टेंडर किए जाएंगे तो समय पर लोगों के काम नहीं हो पाएंगे। मुख्य अभियंता संजय मस्के का कहना है कि यदि 47 लाख का काम है और वह सीधे दिया गया है तो इसे दिखवाते हैं। वहीं ईएंडएम डिवीजन एक के ईई राजेश दुबे का कहना है कि जो भी सब वर्क आर्डर होता है वह सीई की मंजूरी से किया जाता है। सब प्रक्रिया के तहत किया जा रहा है।

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