जी हां, एजेंडे के एजेंटों के लिए राष्ट्रीय मुद्दा है आर्यन

आर्यन खां
  • अवधेश बजाज कहिन…

देश का कायाकल्प हो गया है, न कहीं तंगहाली है, न है बेरोजगारी या महंगाई। सबसे बड़ा राष्ट्रीय मुद्दा हैं आर्यन खां और अनन्या पांडे। इसके अलावा और कुछ नहीं है, कुछ भी नहीं। कम से कम प्रायोजित एवं केंद्र से वित्त-पोषित न्यूज चैनल्स तो आज देश की यही तस्वीर दिखा रहे हैं। इस कारोबार के एक जानकार की इस जानकारी को विश्वसनीय माना जा सकता है कि बीते कुछ दिन से इस तरह के न्यूज चैनल्स पर रोजाना पांच से सात करोड़ रुपए की कमाई वाला 16 से 17 घंटे तक का स्लॉट इन दो चेहरों को समर्पित कर दिया गया है। दर्शकों के सामने परोसने के लायक और कुछ बचा नहीं है। खबरचियों के लिए शायद केवल यह बचा है कि वे जेल में रहने के कारण आर्यन की विष्ठा के स्वरूप में आये परिवर्तन की भी खास खबर चला दें। हद है और वह भी बेहद किस्म की। ओडिशा में ऊंचाई पर बना एक स्थान सैलानियों की पसंद का केंद्र रहता है। यह वह जगह है, जिस पर कलिंग के युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने चढ़कर तबाही का दिल दहला देने वाला दृश्य देखा था। कलिंग का वह मैदान करीब एक लाख उन लोगों की लाशों से पटा हुआ था, जो अशोक के विस्तारवाद के उन्माद की बलि वेदी पर चढ़ा दिए गए थे। इस दर्दनाक मंजर को देखने के बाद अशोक का हृदय परिवर्तन हो गया। उसने हिंसा त्याग दी। आज के हुक्मरान अशोक से सीख लेने की प्रवृत्ति वाले नहीं हैं। उनकी फितरत शोक देने की है। इसलिए कलिंग जैसी किसी ऊंचाई पर चढ़ने के बाद भी उन्हें नीचे का सच नहीं दिखता है। देश को दिल में रखकर जरा गर्दन झुकाइये। आप को गरीबी, बेकारी और कीमतों में जानलेवा वृद्धि जैसे संकट साफ दिख जाएंगे। लेकिन उन्हें ऐसा कुछ नहीं दिखेगा, जो खुद इन हालात की मूल वजह हैं। उन्हें केवल वह दिखेगा जो धूर्तता से भरा सच है और इस सच के सियाह पक्ष में भी वह ताकत नहीं है, जो सकारात्मक तरीके से उनका हृदय परिवर्तन कर सके। वजह साफ है कि मामला कलिंग जैसा है, लेकिन है घोर कलिंग किस्म की फितरत का। निर्दोष लोगों के दु:ख-दर्द को और गहरा कर देने वाली किलिंग इंस्टिंक्ट जैसा। बहुत क्षमा के साथ एक बात कहना चाहता हूं। अशोक तो पश्चाताप के बाद ‘बुद्धम शरणम् गच्छामि’ में समाहित हो गए थे, लेकिन ये हुक्मरान सारे के सारे देश को अपनी तरफ लाने के लिए ‘बुद्धू शरणम गच्छामि’ का रट्टा लगाने के लिए विवश करने पर आमादा हैं। वो फूट डालो, राज करो वाले अंग्रेज तो इस देश से जा चुके। लेकिन सत्ता में बैठे ये काले अंग्रेज अब वैचारिक रूप से सारे देश में फूट डाल कर अपना राज बनाये रखने की जद्दोजहद में जुटे हुए हैं। लोग महंगाई की बात न करें।  बेरोजगारी और भुखमरी से उपजी कराहें दब जाएं। घरों की खाली हो चुकी तिजोरियों का मनहूस सन्नाटा चीखने न लग जाए, इस सबके लिए विष जैसे घातक विषयांतर का सहारा लिया जा रहा है। उत्सव मन रहा है कि हमने एक अरब लोगों को कोरोना की वैक्सीन लगा दी। निश्चित ही यह बड़ी उपलब्धि है। स्वागत योग्य कदम है। इसीलिये आपकी खुशी छलक-छलक जा रही है। किंतु जरा एक आंसू तो उन के लिए भी छलकता दिखा दीजिये, जिनकी आंखें अभाव तथा पीड़ा के अनंत दंश झेलते हुए पथरा गयी हैं। वो दो जून की रोटी के लिए बिलख रहे हैं और आप सिर्फ अपने दो-चार जन की खातिरदारी करने में ही मगन हैं। आम जनता की चिंताओं तथा उसके लिए चिता जैसे बने हालात की बजाय आर्यन और अनन्या का हुल्लड़ मचा रहे न्यूज चैनल भी अब असली मुद्दों से देश का ध्यान भटकाने की साजिश का ही हिस्सा बन गए लगते हैं। क्या अब प्राइम टाइम हुक्मरानों की टकसाल और उपहार गृहों के इशारे पर प्राइज  टाइम में बदल दिया गया है? क्या उनसे कह दिया गया है कि खबर के नाम पर किसी भी निर्वसन आचरण को अपना लो, लेकिन वह एक भी कार्यक्रम मत चलाओ, जो हमारे घृणित निर्वसन स्वरूप को दुनिया के सामने ला दे?


क्या एक अरब वैक्सीन लग जाने से सब ठीक हो गया? प्राइवेट स्कूल के वह संचालक क्या इसी वैक्सीन में रोटी डुबाकर खा लें, जिनके सामने भीषण आर्थिक संकट आ चुका है? प्राइवेट परिवहन ऑपरेटर लगातार गुहार लगा रहे हैं कि पेट्रोल और डीजल के दाम में लगी आग के कारण उन्हें किराया बढ़ाने की अनुमति दी जाए। तो क्या ये ऑपरेटर उस वैक्सीन को ही पेट्रोल तथा डीजल की तरह अपने वाहनों की टंकी में डालकर अपनी गाड़ी फिर दौड़ाने का सपना देखने लगें? जाकर देखिये कभी किसी रेलवे स्टेशन पर। देश का सबसे बड़ा यह सरकारी महकमा किसी माफिया में बदल गया है। यात्रियों से मनमाना किराया वसूला जा रहा है। उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही। उनके लिए अब रेल से सफर किसी  सुपर प्राइज वाली प्रक्रिया में बदल दिया गया है। धन्य हैं मीडिया के वह चेहरे, जो देश की दुर्दशा के सबसे बुरे दौर में भी हुकूमत के तलवे चाटने में मसरूफ हैं।  धन्य हैं सोशल मीडिया के वह एंटी सोशल तत्व, जिनके लिए महंगाई, बेरोजगारी और भुखमरी जैसे हालात विरोध का एक स्वर उठाने लायक भी नहीं हैं।  सत्ता केवल और केवल आम लोगों को सताने का जरिया बन गयी  है। सब कुछ इतना विकृत हो गया है कि कोई ‘सरकार’ शब्द का उच्चारण करे तो कान में उसकी जगह ‘अनाचार’ ‘हाहाकार’ और ‘अत्याचार’ जैसे शब्द ही सुनाई देते हैं। अफसर पहले तो बेलगाम होते थे, अब वे पूरी तरह बेहया और ‘बेदर्द’ हो गए हैं। हुकूमत के आशीर्वाद से। किसी के पास जनता के सरोकार वाली नीति तैयार करने का समय ही नहीं है। वे सभी ‘राजनीति से अनीति के चरम तक’ वालों के गुलाम बनकर काम कर रहे हैं। समूचा सरकारी तंत्र झूठे प्रचार की मशीन में तब्दील कर दिया गया है। वह दिन हवा हुए, जब अफसर पेन चलाते थे। अब वह सरकारी आदेश से ऐसी चाबुक चलाते हैं, जो आम जनता को लहूलुहान कर रही है। तकलीफ से कराहता इंसान रोटी के लिए चीखे तो उसे बोटी का खालिस सपना दिखाकर चुप कर दे रहे हैं। सरकारी सेवा से वंचितों के दर्द को ‘प्रथम सेवक’ के पाखंड से और भड़काया जा रहा है। विवश लोग व्यवस्था को खुलकर गाली देने पर उतर आये हैं, लेकिन ताली और थाली के प्रायोजित ढोल पीटकर उनकी आवाज को दबा दिया जा रहा  है।
क्या देश उस कल के मुहाने पर नहीं पहुंच गया है, जिसमे भूख से बिलखते बच्चे से उसकी मां कहेगी, ‘बेटा सो जा, नहीं तो चौकीदार आ जाएगा।’ खैर, चौकीदार तो न सिर्फ आ चुका है, बल्कि आपका हर सुख खा भी चुका है। मगर आप लगे रहिए आर्यन और अनन्या की फिक्र में, क्योंकि जैसा हमने पहले ही कहा, देश में न बेरोजगारी है, न तंगहाली और न ही भुखमरी। यदि कोई राष्ट्रीय मुद्दा है तो वह हैं आर्यन और अनन्या। यह राष्ट्रीय मुद्दा आपको मुबारक, हम तो राष्ट्रीय मुर्दाकरण के इस माहौल में चुप और निरपेक्ष होकर बैठने वाली नपुसंकता से बहुत दूर हैं।

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