
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश की एक लोकसभा व तीन विधानसभा चुनाव को लेकर दोनों ही दलों के रणनीतिकारों द्वारा पहले जो गुणाभाग लगाए गए थे , वे अब पूरी तरह से फेल होते नजर आने लगे हैं। यही वजह है कि अब इन दोनों दलों को प्रचार के अंतिम दिनों में नई रणनीति बनाकर मोर्चा सम्हालना पड़ रहा है। इसकी वजह से अब हालत यह हो गई है कि दोनों ही दलों में जीत को लेकर संशय की स्थिति बन चुकी है। इस बीच भाजपा की पेट्रोल और डीजल के दामों में लगती आग ने मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इस बीच इन चुनावों को लेकर मतदाताओं में भी आम चुनाव की तरह का कोई उत्साह नजर नहीं आ रहा है। इसकी वजह से मतदाताओं ने अब तो पूरी तरह से चुप्पी साध ली है। यही वजह है कि इन चुनाव के परिणाम क्या होगें कोई कुछ कहने की स्थिति में नही है। उपुचनाव में उतरने से पहले कांग्रेस व भाजपा के थिंक टैंकों द्वारा जो अनुमान लगाया गया था वो अब पूरी तरह से फेल हो गया है। इपने-अपने पूवार्नुमान के आधार पर ही दोनों दलों ने प्रत्याशी चयन से लेकर चुनावी रणनीति तक बनाई गई थी। वे इसी आधार पर तेजी से आगे भी बढ़ रहे थे, लेकिन इस बीच जिस तेजी से समीकरण बदले और उसका असर दिखना शुरू हुआ , रणनीतिकारों के पूर्वा नुमान धरे के धरे रह गए। यही वजह है कि सार्वजनिक रुप से जीत के दावे करने वाले दोनों ही दलों के नेताओं को अंदर ही अंदर संशय बना हुआ है। इसकी वजह है मतदाताओं द्वारा पूरी तरह से चुप्पी साध लेने की वजह से यही-सही अनुमान ही नहीं लगाए जा पा रहे हैं। भाजपा के लिए उसकी रणनीति ही उलटी पड़ती दिख रही है तो कांग्रेस के लिए जन समस्याओं के लिए मैदानी संघर्ष न करना भारी पड़ रहा है। यही वजह है कि दोनों ही दलों को आमचुनाव की अपेक्षा कई गुना अधिक मेहनत करनी पड़ रही है , फिर भी मतदाता कुछ भी बोलने को तैयार नही हंै। इसकी वजह से माना जा रहा है कि इस बार उपचुनाव के परिणाम भी दमोह जैसे आश्चर्यचकित करने वाले हो सकते हैं। भाजपा की तरफ से जहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा ने तो अब कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ ने पूरी तरह से कमान सम्हाल रखी है। भाजपा के लिए जोबट और पृथ्वीपुर में अब दूसरे दलों से आए नेताओं को टिकट देना मुश्किल की वजह बन गई है। वहीं कांग्रेस के लिए खंडवा सीट पर अरुण यादव को गुटबाजी का शिकार बनाना भारी पड़ रहा है।
प्रतिमा पर भारी पड़ रहे परिजन
विध्ंय इलाके की रैंगाव सीट पर भाजपा प्रत्याशी के लिए उसके परिजनों की ही नाराजगी भारी पड़ रही है। हालांकि दिखावे के लिए वे प्रतिमा के साथ खड़े दिख रहे हैं। इस सीट पर कांग्रेस ने बीता चुनाव हारने वाली कल्पना वर्मा पर दांव लगाया हुआ है। यह सीट भाजपा के लिए आसान मानी जाती है , लेकिन जिस तरह से भाजपा का ही एक गुट यहां पर बदलाव के पक्ष में बना हुआ है वह भाजपा के लिए मुश्किल खड़ा कर सकता है। इस सीट पर भाजपा को बड़ा नुकसान धीरेन्द्र सिंह के निर्दलीय मैदान में होने की वजह से होना माना जा रहा है। भाजपा ने इस सीट पर विधायक रहते मुत्यु होने की वजह से जुगल किशोर बागरी के परिजनों को टिकट देने की वजह से सतना में रहने वाली प्रतिमा पर दांव लगाया है। इसकी वजह से कांग्रेस उन्हें बाहरी बताने से भी पीछे नहीं रह रही है। फिलहाल चुनावी परिणाम किसके पक्ष में आएंगे कोई नहीं कह सकता है।
सहानूभूति पड़ रही विकास पर भारी
पृथ्वीपुर विधानसभा में कांग्रेस के नीटू और भाजपा के शिशुपाल सिंह के बीच मुकाबला हो रहा है। कांग्रेस का इस सीट पर पंरपरागत प्रभाव माना जाता है। नीटू कांग्रेस विधायक रहे स्व बृजेन्द्र सिंह राठौर के पुत्र हैं जिसकी वजह से उनके साथ मतदाताओं की सहानूभूति बनी हुई है। यही सहानूभूति भाजपा प्रत्याशी के लिए भारी पड़ रही है। इस सीट पर भाजपा द्वारा विकास को मुद्दा बनाया हुआ है। कांग्रेस यहां भी भाजपा प्रत्याशी के बाहरी होने का दांव चल रही है। फिलहाल इस सीट पर जहां भाजपा को यादव मतदाताओं पर तो कांग्रेस को ब्राह्मण मतदाताओं पर भरोसा है। इस सीट पर भी भाजपा को आने कार्यकतार्ओं की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है।
खंडवा सीट पर स्वयंसेवकों पर भरोसा
भाजपा ने खंडवा लोकसभा सीट पर इस बार संघ पृष्ठभूमि के ज्ञानेश्वर पाटिल को उतारा गया है। उनका मुकाबला कांग्रेस के पूर्व विधायक राजनारायण सिंह पर लगाया गया है। इस सीट पर जहां भाजपा को हर्ष चौहान और अर्चना चिटनिस समर्थकों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है तो वहीं सीट पर संघ के स्वयंसेवक पूरी तरह से जीत के लिए दम लगाए हुए हैं। यही स्वंयसेवक भाजपा के लिए जीत का रास्ता बनाने में लगे हुए हैं। इस सीट को अपने पास ही रखने की चुनौति भाजपा के सामने बनी हुई है, जबकि कांग्रेस के सामने भी सीट जीतने की मुश्किल है। इस सीट पर भाजपा ने पटेल को मैदान में उतार कर पिछड़ा वर्ग को कार्ड खेला है। सीट के तहत आने वाली विधाानसभा सीटारें के हिसाब से देखा जाए तो भाजपा मजबूत स्थिति में दिखती है। इसके उलट कांग्रेस ने राजपूत नेता पर दांव लगाया है। पूरनी अपने गृह जिले में भाजपा पर भारी पड़ते दिख रहे हैं। इसके उलट भाजपा के पटेल के सामने पहचान का भी संकट बना हुआ है।
जोबट में भाजपा को पड़ सकता है सुलोचना पर दांव
इस सीट पर पूरी तरह से स्थानीय भाजपा कार्यकतार्ओं में तमाम प्रयासों के बाद भी पार्टी नाराजगी को दूर न हीं कर सकी है। माना जा रहा है कि इस सीट पर अब भी दमोह जैसी आंशका से इंकार नही किया जा सकता है। भाजपा ने यहां पर अचानक कांग्रेस नेता सुलोचना रावत का दलबदल कराकर उन्हें अप्रत्याशित रूप से प्रत्याशी बना दिया। यही वजह है की सुलोचना रावत ने अपने चुनाव प्रचार की कमान तक अपने ही बेटे को दे रखी है। कांग्रेस ने यहां पर महेश पटेल को प्रत्याशी बनाया है। इस सीट पर कांग्रेस ने दलबदल को बड़ा मुद्दा बनाया हुआ है। इसके उलट भाजपा पटेल को बाहरी बताने में लगी हुई है।