
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में हो रहे चार सीटों के उपचुनाव में अब क्षेत्रीय विकास के साथ ही स्थानीय मुद्दे पूरी तरह से गायब हो गए हैं। कांग्रेस व भाजपा द्वारा जीत के लिए इन सीटों पर अब पूरी तरह से जातीय गुणा भाग के आधार पर दांव चलाने शुरू कर दिए गए हैं। इसके लिए अब दोनों दलों के अलावा प्रत्याशियों द्वारा जातीय समीकरण साधने पर पूरा फोकस कर दिया गया है। इसकी वजह से अब कहा जा रहा है कि जो जितनी जाती को साध लेगा वह उतना बड़ा सिंकदर बनकर दो नबंवर को बाहर आ जाएगा। यही वजह है कि दोनों ही दलों द्वारा इस गणित को साधने के लिए अपने-अपने नेताओं की भी तैनाती कर दी गई है।
इस स्थिति की बड़ी वजह है दोनों दलों के नेताओं द्वारा जनता की जगह अपने मनमाफिक प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारना। फिलहाल दोनों ही दलों द्वारा जातीय गणित साधने के लिए तमाम तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। हालत यह है कि खंडवा लोकसभा सीट पर दोनों दलों का पूरा जोर आदिवासी वोटों पर हैं तो जोबट में भी सही स्थिति बनी हुई है। पृथ्वीपुर में ब्राह्मण व यादवों के मतदाताओं पर पूरा फोकस किया जा रहा है जबकि रेगांव में भी यही स्थिति बनी हुई है।
खंडवा में पहचान का बड़ा संकट
खंडवा लोकसभा सीट पर कांग्रेस व भाजपा दोनों ने ही ऐसे प्रत्याशियों पर दांव लगाया है, जिनके सामने पहचान का बड़ा संकट बना हुआ है। इसके अलावा पार्टी के अन्य दावेदारों के गृह जिलों में उनके लिए बाहरी का मुद्दा भी मुसीबत बन रहा है। हालात ऐसे बन चुके हैं कि कांग्रेस से अधिक भाजपा प्रत्याशी को इस सीट के तहत आने वाले दावेदारों के गृह जिलों में सफाई देते घूमना पड़ रहा है। दोनों प्रत्याशियों पर खंडवा और बुरहानपुर जिले में बाहरी होने का तमगा भारी पड़ रहा है।
भाजपा प्रत्याशी ज्ञानेश्वर पाटिल खंडवा विधानसभा क्षेत्र में प्रचार करने आए तो उन्हें कहना पड़ा- मैं यहां के लिए बाहरी नहीं हूं, मैं जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुका हूं। यहां के लोगों के सौगातें दी हैं, जीतने के बाद भी यहीं रहूंगा। इसी तरह का कुछ हाल कांग्रेस प्रत्याशी राजनारायण के बुरहानपुर दौरे पर देखने को मिला। यही वजह है कि राजनारायण को बुरहानपुर दौरे में एक कार्यक्रम में सफाई देते हुए यह तक कहना पड़ा कि बुरहानपुर से मेरा पुराना नाता है। ठाकुर शिवकुमार से मेरा पारिवारिक रिश्ता रहा। अब इस इलाके में दोनों ही दलों का पूरा जोर आदिवासियों के आसपास ही सिमटता दिखना शुरू हो गया है। इस संसदीय सीट के तहत आने वाली आठों विधानसभा सीटों पर इस वर्ग के करीब साढ़े छह लाख से अधिक आदिवासी वोटर हैं। यही वजह है कि कांग्रेस नेताओं द्वारा अपने भाषणों में हाल ही में आदिवासियों के साथ घटी घटनाओं को जोर-शोर से उठाने का काम किया जा रहा है। इसके प्रति उत्तर में भाजपा ने अपने पंधाना से आदिवासी विधायक राम दांगोरे को लगाया है। खास बात यह है कि कांग्रेस द्वारा भाजपा नेता पूर्व सांसद दिवंगत नंदकुमार चौहान के नाम पर भाजपा को सहानुभूति वोट बटोरने से रोकने के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं। कांग्रेस की हर सभा में भाजपा नेता स्व. चौहान के परिजनों को टिकट न देने का मामला उठाकर उसे अपमान बताया जा रहा है। फिलहाल इस संसदीय सीट के तहत आने वाली विधानसभा सीटों को देखें तो कुल आठ सीटों में भाजपा के पास पांच, कांग्रेस के पास दो व एक सीट निर्दलीय के पास है।
पृथ्वीपुर में ब्राह्मण और यादवों पर जोर
निवाड़ी जिले की पृथ्वीपुर विधानसभा क्षेत्र वैसे तो कांग्रेस के प्रभाववाली सीट मानी जाती है। इस सीट पर कांग्रेस द्वारा पूर्व मंत्री बृजेन्द्र सिंह राठौर के पुत्र नितेन्द्र को चुनावी मैदान में उतारकर सहानुभूति पाने का प्रयास किया गया है, लेकिन भाजपा द्वारा जातीय गणित के आधार पर झांसी निवासी शिशुपाल सिंह को टिकट दिए जाने के बाद से इस इलाके में विकास के मुद्दे को भुलाकर जातिगत वोटों पर केन्द्रित किया जा चुका है। 1.98 लाख मतदाता वाली इस सीट पर 30 हजार ब्राह्मण और इतने ही यादव मतदाता हैं। इन दोनों में वर्चस्व की लड़ाई भी लंबे समय से देखी जा रही है। भाजपा द्वारा शिशुपाल यादव को टिकट देने और गणेशीलाल नायक, अनीता नायक, अनिल पांडे जैसे नेताओं में से किसी एक को भी टिकट नहीं दिए जाने से ब्राह्मण मतदाताओं में नाराजगी बनी हुई है। इस वजह से अब भाजपा को उनकी नाराजगी दूर करने के लिए ब्राह्मण चेहरों को मैदान में उतारना पड़ा है। मंत्री पं. गोपाल भार्गव यहां 20 दिन से डेरा जामाए हुए हैं तो वहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा हर तीसरे दिन इस सीट पर दौरे कर हैं। इसके बाद भी यह अनुमान नहीं लगाया जा पा रहा है कि ब्राह्मण वोट किसे मिलेगा। इसी तरह से यहां पर तीसरी बड़ी संख्या कुशवाहा समाज के मतों की है, जिसकी वजह से सपा ने यहां पर एक कुशवाहा नेता को चुनावी मैदान में उतारा है। भाजपा के पक्ष में जाने वाला यह वर्ग अब इस बार सपा के साथ खड़ा दिख रहा है। फिलहाल इस सीट पर भाजपा व कांग्रेस के बीच रोचक मुकाबला बना हुआ है। माना जा रहा है कि ब्राह्मण जिस के पक्ष में मतदान कर देंगे उसकी जीत तय हो जाएगी।
जोबट में स्थानीय बनाम बाहरी
इस विधानसभा सीट पर भाजपा व कांग्रेस अब तक चुनावी माहौल नहीं बना पायी है। इस इलाके में रोजगार के अभाव में पलायन बड़ी समस्या बनी होने के बाद भी इस चुनाव में भी यह मुद्दा नहीं है। भाजपा ने यहां कांग्रेस से आई सुलोचना रावत को मैदान में उतारा है। वे कांग्रेस से तीन बार विधायक रह चुकी हैं और जोबट की हैं, इसलिए भाजपा स्थानीय का मुद्दा उठा रही है, तो वहीं कांग्रेस ने अलीराजपुर निवासी नेता पटेल को प्रत्याशी बनाया है। पटेल के भाई मुकेश अभी अलीराजपुर से विधायक हैं। पटेल द्वारा कमलनाथ सरकार के 15 माह के कार्यकाल के कामों को बताकर वोट मांगे जा रहे हैं। इस सीट पर भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं में सुलोचना को प्रत्याशरी बनाए जाने से अंदरूनी नाराजगी भी दिख रही है।
रैंगाव में बसपा व सपा के मतों पर भरोसा
सतना जिले की रैगांव सीट पर भाजपा-कांग्रेस में सीधी मुकाबला हो रहा है। इस सीट पर इन दोनों ही दलों की नजर बसपा व सपा समर्थक मतदाताओं पर लगी हुई है। इसकी वजह है बसपा का चुनावी मैदान में न उतरना तो सपा प्रत्याशी को साइकिल चुनाव चिन्ह का न मिल पाना। इस इलाके में बसपा का अपना प्रभाव है और उसके समर्थक मतदाताओं की संख्या भी अच्छी खासी है। इसकी वजह से इन दोनों ही दलों के परंपरागत वोट बिखरना तय माना जा रहा है। यह सीट भाजपा विधायक जुगलकिशोर बागरी के निधन से हुई है। यहां पर भी भाजपा ने उनके पुत्रों को टिकट देने की जगह सतना में रहने वाली उनके बड़े भाई के परिवार की बेटी प्रतिमा को प्रत्याशी बनाया है। इसकी वजह से टिकट के दावेदार पूर्व विधायक के बड़े बेटे पुष्पराज और छोटे बेटे देवराज बेहद नाराज चल रहे हैं। इसकी वजह से ही उनके परिवार के धीरेंद्र सिंह धीरू निर्दलीय मैदान में उतरे हुए हैं। कहा जा रहा है कि वे बागरी समाज के खासे मत पा सकते हैं। कांग्रेस ने कल्पना वर्मा पर दांव लगाया है। इस सीट पर लगभग 50 हजार दलित मतदाता हैं। यह मत बसपा का परंपरागत मत माना जाता है। बसपा के मैदान में न होने की वजह से कांग्रेस व भाजपा की नजर इन मतदाताओं पर बनी हुई है। कांग्रेस से अपने पाले में लाने का प्रयास कर रही है।