मां नर्मदा के उद्गम स्थल के संरक्षण में रोड़ा बनी नौकरशाही

मां नर्मदा
  • अमरकंटक में आश्रमों और होटलों के जाल बिछने से बिगड़ रहा पर्यावरण संतुलन

    भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। सरकार नर्मदा को निर्मल बनाने और संरक्षण के लिए हर साल करोड़ों रूपए खर्च कर रही है। लेकिन नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक और उसके आस पास के क्षेत्रों में वनीकरण और प्रदूषण मुक्त करने की योजना फाइलों में दबकर रह गई है। सूत्रों का कहना है कि नौकरशाही के अड़ंगे के कारण अमरकंटक के आसपास के 582 हैक्टेयर क्षेत्र को वन घोषित करने की फाइल शासन ने ही रोक दी है। यदि वन क्षेत्र बन जाता तो अमरकंटक में नर्मदा के उद्गम स्थल को सुरक्षित करने की यह बड़ी पहल होती। नए निर्माणों पर रोक लग जाती और सीमेंटीकरण बंद हो जाता।
    गौरतलब है कि नर्मदा के उद्गम स्थल पर पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर आश्रमों और होटलों का जाल बिछता जा रहा है। ऐसे में वन विभाग ने अमरकंटक के आसपास के 582 हैक्टेयर क्षेत्र को वन घोषित करने का प्रस्ताव शासन को भेजा है। कुल 582 हेक्टेयर में से सिर्फ 54 हेक्टेयर जमीन निजी है, जबकि बाकी सरकारी है। लेकिन अफसरों ने इस प्रस्ताव को फिलहाल रोक दिया है।
    अमरकंटक में जैव-विविधता खतरे में
    पिछले कुछ सालों के दौरान नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक में तेजी से निर्माण हो रहे हैं। अमरकंटक में इस समय होटलों की संख्या 13 है, जिसमें पांच-छह बड़े होटल हैं। आश्रमों में भी खासा विस्तार हुआ है। रेलवे, पीडब्ल्यूडी, फारेस्ट समेत सरकारी गेस्ट हाउस बन गए हैं। समृद्ध जैव-विविधता वाले इस क्षेत्र में 11.63 प्रतिशत डेंस मिक्स्ड फॉरेस्ट यानी सघन मिश्रित जंगल (डीएमएफ है, वहीं 2.1 प्रतिशत हिस्सा साल के वृक्षों से भरा है। इस इलाके में वर्ष 1980 से 2018 तक खुले हिस्से (मैदानी या खुला एरिया या जहां पेड़ कट चुके हैं) का 7.52 प्रतिशत विस्तार देखा गया है। आबादी वाला क्षेत्र भी 4.18 प्रतिशत बढ़ गया है। बीस साल पहले 35-40 दुकानें थीं जो बढ़कर 100 से अधिक हो गईं। बहरहाल, इन सभी परिस्थितियों को बताते हुए अमरकंटक को फॉरेस्ट एरिया घोषित करने का प्रस्ताव दिया गया था, जिसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। यहां बता दें कि अमरकंटक से तीन नदियां नर्मदा, सोननद और जोहिला निकलती है।
    अमरकंटक सेंसिटिव जोन में
    अमरकंटक को यूनेस्को बायोस्फीयर सेंसिटिव जोन में रखा गया है। यूनेस्को इसे ऐसा इलाका मानता है जहां अलग-अलग प्रजाति के पौधे हैं। कुछ सालों में यहां यूकेलिप्टस के पौधे लगा दिए गए थे, जिन्हें अब काटा जा रहा है। आयुष वन नाम से अब नए पौधे लगाने की मुहिम चल रही है। इसलिए इसे वन क्षेत्र घोषित करने का प्रस्ताव दिया गया है। भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 20 के तहत आरक्षित वन घोषित किए जाते हैं। इसका पहला चरण धारा 4 से शुरू होगा। इसमें जमीन की अधिसूचना जारी होगी। इसके बाद व्यवस्थापन अधिकारी धारा 5 से 19 का इस्तेमाल करेंगे ताकि तमाम आपत्तियों का निराकरण किया जा सके। इसी में निजी जमीन को आरक्षित वन बनाने के लिए अधिग्रहण किया जाता है। मुआवजा देकर निजी जमीन सरकार लेती है।
    विशेषज्ञ भी कर रहे वन क्षेत्र घोषित करने की मांग
    नर्मदा को बचाने के लिए विशेषज्ञ भी नदी के उद्गम स्थल के आसपास के क्षेत्र को वन क्षेत्र घोषित करने की मांग कर रहे हैं। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विवि अमरकंटक के पर्यावरण विभाग के विभागाध्यक्ष व प्रोफेसर तरुण कुमार ठाकुर का कहना है कि इस क्षेत्र को फॉरेस्ट नोटिफाई करना चाहिए। यहां सीमेंटीकरण और कंस्ट्रक्शन रोकना होगा। आसपास साल के पौधे लगाने होंगे। अमरकंटक के आसपास 35 से 40 वर्ग किमी क्षेत्र को कैचमेंट घोषित करना चाहिए। नर्मदा की सहायक नदियां गायत्री, सावित्री, आरंडी, वैतरणी आदि को भी बचाना होगा। साल का वृक्ष नर्मदा के रिचार्ज का बड़ा स्त्रोत है।

Related Articles