
- कुपोषण के खिलाफ जंग की कमान अब गरीबों के हाथ…
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। कुपोषण मप्र के लिए कलंक बना हुआ है। इस कलंक को मिटाने के लिए सरकार हर साल अरबों रुपए खर्च करती है, लेकिन कुपोषण बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में कुपोषण के खिलाफ सरकार की जंग निरंतर जारी है। अब सरकार ने इस जंग की कमान गरीबों के हाथ में देने जा रही है। यानी प्रदेश में ईंट भट्टों, खेतों व निर्माण कार्यों में मजदूरी करने वाली महिलाएं अब 97 हजार 135 आंगनबाड़ी केंद्रों के 97 लाख से ज्यादा बच्चों, गर्भवती एवं धात्री माताओं के स्वास्थ्य का जिम्मा संभालने जा रही हैं।
गौरतलब है कि प्रदेश में पोषण आहार बनाने के लिए सरकार ने सात (देवास, धार, होशंगाबाद, शिवपुरी, रीवा, मंडला और सागर) पोषण आहार संयंत्र स्थापित किया है। इन संयंत्रों की कमान महिला स्व-सहायता समूहों को दिया जा रहा है। ये महिलाएं हर माह सात सौ करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार करेंगी। इसी महीने से महिलाओं के समूह देवास जिले के संयंत्र का काम संभाल लेंगे। अगले चरण में नवंबर माह में समूहों को धार जिले का संयंत्र सौंप दिया जाएगा। इन संयंत्रों से होने वाली आमदनी की 95 फीसदी राशि संयंत्रों से जुड़े समूहों की महिला सदस्यों को लाभांश के रूप में दी जाएगी।
लाखों परिवारों को मिलेगा रोजगार
जानकारी के अनुसार राज्य में 45 हजार गांवों में तीन लाख 33 हजार स्व-सहायता समूह हैं। इनसे 38 लाख परिवार जुड़े हैं। इनमें से ज्यादातर परिवारों को अब स्थाई रोजगार मिलने जा रहा है। कुछ परिवार की महिलाएं सीधे संयंत्रों से जुड़ेंगी, तो ज्यादातर महिलाओं को भविष्य में अपने क्षेत्रों में आंगनबाड़ी केंद्रों तक पोषण आहार पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। हालांकि इस पर अंतिम निर्णय अभी होना है। ज्ञात हो कि सात संयंत्रों के संचालन के लिए सात महासंघ बनाए गए हैं। प्रत्येक महासंघ के कार्यक्षेत्र में पांच से नौ जिले हैं और प्रत्येक जिले के समूह के सदस्य महासंघ से सीधे जुड़े हैं।
दोगुना कमाएंगी महिलाएं
सरकार की कोशिश है कि पोषण आहार नेटवर्क से अधिक से अधिक महिलाओं को जोड़ा जाएगा। इसके लिए समूहों के माध्यम से पोषण आहार संयंत्रों से जुड़ीं महिलाओं को रोजगार के अवसर बढ़ाने की कवायद चल रही है। भविष्य में संयंत्रों में उपयोग होने वाला कच्चा माल (तेल, शकर, मूंगफली सहित अन्य) भी समूहों के माध्यम से खरीदने पर विचार चल रहा है। इस पर भी लगभग सहमति बन गई है। ऐसे में दिनभर मजदूरी कर 150 से 250 रुपए कमाने वाली महिलाओं को अपने गांव और घर में ही 400 से 500 रुपए रोज का रोजगार मिल जाएगा और संयंत्रों का लाभांश अलग से।
महामारी में दिखा महिलाओं का हौसला
कोरोना संक्रमण काल में महिलाओं ने जिस तरह सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया उससे मुख्यमंत्री काफी प्रभावित हुए हैं। वर्ष 2020 में देशभर में अचानक लॉकडाउन के बाद अन्य राज्यों से लौटे परिवारों की महिलाओं को समूहों ने मास्क, सैनिटाइजर, पीपीई किट, साबुन, फिनाइल सहित अन्य उत्पाद बनाने का काम दिया। इससे गृहस्थी चल पड़ी, तो महिलाओं ने फिर रोजगार की तलाश में कहीं और जाना मुनासिब नहीं समझा और वे अपने गांव में ही रहकर काम में जुट गईं। कोरोना की स्थिति से उबरने लगे, तो काम भी कम पड़ने लगा, ऐसे में सरकार ने सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों की गणवेश (ड्रेस) सिलने का काम सौंप दिया। इसलिए महिलाएं पूरी शिद्दत से समूहों से जुड़ गई हैं। अब सरकार इन महिलाओं को पोषण आहार के नेटवर्क से जोड़ने जा रही है।