
- प्रदेश कांग्रेस में नए गुट की दिख रही संभावना
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। खंडवा लोकसभा उपचुनाव भाजपा व कांग्रेस दोनों की वैसे तो प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ है, लेकिन इस बीच अचानक कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव द्वारा जिस तरह से पहले चुनाव लड़ने से इंकार करने के बाद अपने दर्द को सार्वजनिक रुप से बयां करना और खंडवा चुनाव के पार्टी की और से प्रभारी बनाए गए मुकेश नायक द्वारा एक सभा में जिस तरह से उनको लेकर भगवान राम के त्याग से तुलना की गई उसके राजनैतिक मायने तलाशे जाने लगे हैं। हालांकि इसे अप्रत्यक्ष रूप से अब कमलनाथ पर निशाना साधने के रूप में देखा जा रहा है।
दरअसल कांग्रेस पार्टी में इन दोनों ही नेताओं को नाथ के विरोधी के रुप में माना जाता है। कमलनाथ की लगभग 15 माह की सरकार में यह दोनों नेता पूरी तरह से उपेक्षित भी रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि अब यह नेता प्रदेश में पार्टी के अंदर नया गुट बनाने की तैयारी में हैं। उनके इन बयानों को इसी रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है। जिस तरह से सार्वजनिक रुप में इन दोनों नेताओं द्वारा बयान दिए जा रहे हैं उससे राजनैतिक प्रेक्षकों का मानना है कि इसका फायदा अप्रत्यक्ष रुप से भाजपा को मिल रहा है। इसकी वजह से कहीं इस सीट पर कांग्रेस को प्रतिकूल परिणामों का सामना न करना पड़े। यह बात अलग है कि पार्टी हाईकमान की वजह से कमलनाथ को अपने मंत्रिमंडल में अरुण यादव के भाई सचिन को शामिल करना पड़ा था।
दरअसल ऐसा पहली बार देखने को मिला है कि अरुण यादव जैसे कद्दावर नेता द्वारा जिस चुनाव की तैयारी बीते कई माह से की जा रही हो और चुनाव आते ही उन्हें चुनाव लड़ने अचानक कदम पीछने खींचने पड़े हों। कहा तो यह भी जा रहा है कि उनके द्वारा अपनी साख बचाने के लिए यहां तक कहना पड़ा कि वे पारिवारिक कारणों से चुनाव नही लड़ रहे हैं, वे चाहते हैं कि उनकी जगह किसी नए आदमी को मौका दिया जाए। खंडवा लोकसभा के सांसद नंदकुमार सिंह चैहान की कोराना की वजह से हुई मुत्यु के बाद से ही अरुण यादव सक्रिय हो गए थे। वे लगातार हर बूथ पर अपनी टीम बनाने से लेकर क्षेत्र की जनता के सुख दुख में शामिल हो रहे थे। यही नहीं खंडवा सीट रिक्त होने के बाद से ही वे अपना अधिकांश समय इलाके में ही दे रहे थे। इस बीच वे कभी -कभी ही भोपाल और दिल्ली जा रहे थे, वह भी अपनी दावेदारी पक्की करने की कवायद के लिए। उन्हें अहसास हो गया था कि प्रदेशाध्यक्ष गुट के नेता नहीं चाहते हैं कि उन्हें उम्मीदवार बनाया जाए और उनकी वजह से टिकट मिलना भी मुश्किल है, लिहाजा उन्होंने अपनी साख बचाने के लिए चुनाव से पारिवारिक कारणों को बताकर हटना ही बेहतर समझा। अब उनका गाहे-बगाहे सार्वजनिक रूप से दर्द छलक ही आता है। उनका बीते रोज दर्द छलका तो वे यह कहने से पीछे नहीं रहे कि हर बार पार्टी जो निर्देश देती है, वो मैं करता हूं। हर बार फसल मैं उगाता हूं, किसी को दे देता हूं। 2018 में भी ऐसा ही हुआ, कहा- तुम्हारी फसल दे दो, मैंने कहा हां साहब ले लो। फिर उगा लेंगे। यह दर्द उनका बुरहानपुर जिले में वे खंडवा लोकसभा सीट पर उपचुनाव के मद्देनजर आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित करते हुए छलका। इस दौरान वे यहीं ही नहीं रुके बल्कि उन्होंने यह भी कह दिया कि जब मैंने पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर खंडवा उपचुनाव नहीं लड़ने की इच्छा जताई तो मीडिया में तो अफवाह फैल गई कि अरुण यादव पार्टी से बाहर जा रहे हैं। मेरी ही पार्टी में मेरी चिंता करने वाले नेताओं ने ही मेरे बाहर जाने की अफवाह उड़ा दी।
पूर्व केंद्रीय मंत्री यादव ने नेताओं को चेतावनी दी कि वे कहीं जाने वाले नहीं हैं। इसी कांग्रेस पार्टी में रहेंगे। उधर इसके दो दिन पहले जिस तरह से सार्वजनिक सभा के दौरान चुनाव प्रभारी बनाए गए पूर्व मंत्री मुकेश नायक ने अरुण यादव को लेकर कहा था कि यह धरती त्याग, अनुराग, प्रेम और भक्ति की है। उनके द्वारा इस दौरान अरुण यादव की तुलना भगवान श्रीराम से तक कर दी गई। नायक ने कहा कि श्री प्रभुराम की तरह यादव ने भी त्याग किया। उनका कहना है कि वन में पैदल चलते हुए भगवान राम के पैरों में कांटे चुभे, उसी तरह खंडवा में कांग्रेस का मैदानी संगठन खड़ा करने में यादव एक साल तक पैदल चले। इस दौरान उनके पैरों में छाले तक पड़ गए और धूप में लगातार घूमकर परिश्रम करने की वजह से उनका चेहरा तक मलीन पड़ गया। जब चुनाव लड़ने का मौका आया तो उन्होंने किसी और को मौका दे दिया। उन्होंने इस तरह की तुलना मंच पर अरुण यादव की मौजूदगी में ही की। नायक ने उन्हें इस दौरान भगवान राम की तरह त्यागी और परिश्रमी तक बता दिया। यही नहीं उनके द्वारा इस दौरान कहा गया कि जो जीवन में इस तरह का बड़ा त्याग करे उसे प्रोत्साहन मिलना चाहिए और उसकी प्रशंसा भी की जानी चाहिए।
नायक यहीं नहीं रुके बल्कि उनके द्वारा यहां तक कह दिया गया कि उनकी परिपक्ता और खिलाड़ी भावना ही कांग्रेस को जिताएगी। यह बात अलग है कि माना जा रहा है कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरुण यादव भले ही पारिवारिक कारणों का हवाला देकर चुनाव लड़ने से इंकार कर चुके हैं लेकिन सूत्रों का कहना है कि वे पार्टी की अंदरुनी खींचतान का शिकार हो गए हैं। वे इन दिनों पार्टी उम्मीदवार राजनारायण सिंह पुरनी के लिए प्रचार में लगे हुए हैं।
भाजपा का तंज
अरुण यादव द्वारा ट्वीट के माध्यम से जब चुनाव न लड़ने की घोषणा की गई तो उनके इस ट्वीट पर भाजपा प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी ने ट्वीट किया कि कांग्रेस में वे कौन हैं, जो उनका हक लूट लेते हैं। प्रदेश भाजपा के ट्विटर हैंडल से अरुण यादव के इस ट्वीट पर कमेंट किया गया। फिल्म प्रेम रोग के गाने की एक लाइन भी लिखी गई है कि भंवरे ने खिलाया फूल, फूल को ले गया राजकुंवर।
भूपेन्द्र ने दिया यादव को पार्टी में आने का न्यौता
उधर, मंत्री भूपेंद्र सिंह का कहना है कि अरुण यादव के साथ अन्याय हुआ है। खंडवा लोकसभा उपचुनाव की वे छह महीने से तैयारी कर रहे थे। जिसे राजनीति के विषय में नहीं पता, उसे टिकट दे दिया गया। यह पिछड़ा वर्ग और इस वर्ग के नेता अरुण यादव का अपमान है। अरुण यादव को अपने राजनीतिक भविष्य के बारे में विचार करना चाहिए। भाजपा में उनका स्वागत है।
सीट रिक्त होते ही सक्रिय हो गया था नाथ खेमा
खंडवा लोकसभा सीट रिक्त होने के बाद से ही अरुण यादव की बेहद अधिक चुनाव लड़ने की संभावना को देखते हुए कमलनाथ खेमा उनकी दावेदारी कमजोर करने के लिए सक्रिय हो गया था। इसकी वजह से ही नाथ खेमे से जुड़े नेता उपचुनाव में पार्टी प्रत्याशी के लिए अलग-अलग नामों को आगे करने में लग गए थे। इसमें नाथ खेमे को दिग्विजय सिंह के गुट का भी साथ मिलता रहा है। इन दोनों ही नेताओं ने ऐसी बिछात बिछाई की अरुण यादव को खुद ही चुनावी जंग में उतरने से इंकार करना पड़ गया।