आखिर अरुण क्यों हटे पीछे, क्या ह्यूमिलेट हुए, या वरिष्ठ नेताओं के पुत्र मोह में रडार पर है

अरुण यादव

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। खंडवा लोकसभा सीट से कांग्रेस के प्रबल दावेदार माने जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री 46 वर्षीय अरुण यादव के पीछे हटने के बाद कांग्रेस समेत पार्टी व गैर पार्टी के बीच कई सवाल कौंधने लगे। पीसीसी चीफ कमलनाथ व पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को छोड़कर बाकी पूरी पार्टी सकते में है। दरअसल, अरुण के पीछे हटने के कांग्रेस जो भी तर्क पेश कर रही हों, लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों और कांग्रेस थिंक टैंक वर्ग का मानना है कि चूंकि अरुण युवा नेता है और दिग्विजय-कमलनाथ दोनों के पुत्रों विधायक जयवर्धन व सांसद नकुलनाथ की राह में रोड़ा बन सकते हंै, इसलिए उन्हेें आंतरिक रुप से डेमेज किया गया है। बीते  दिनों कमलनाथ ने मीडिया के सामने सार्वजनिक बयान दिया था कि अरुण टिकट की दावेदारी पेश कर रहे हैं, लेकिन वे आज तक मुझसे मिलने तक नहीं आए। वहीं, भले ही दिग्विजय ने अरुण का विरोध नहीं किया हो, लेकिन वे चाहते तो अरुण को मैदान में उतार सकते थे, लेकिन मप्र कांग्रेस में जयवर्धन-नकुल के पैरेलल किसी अन्य का कद नहीं बढ़े, इसलिए अरुण को ह्यूमिलेट किया गया है। अरुण इस बात से सहमत नहीं है, लेकिन वे मायूस है और उन्होंने आंतरिक भितरघात की आशंका के चलते ही खुद को पीछे खींच लिया है। कांग्रेस प्रदेश संगठन महामंत्री राजीव सिंह ने बताया कि यह उनका निजी निर्णय है कि वे चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं।
मजबूत पृष्ठभूमि फिर भी हटे पीछे
जबकि अरुण की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी राजनीतिक है और वे मप्र में सक्रिय राजनीति में अपना दखल रखते हैं। उनके भाई सचिन भी मंत्री रह चुके हैं और विधायक है। दिवंगत पिता सुभाष यादव का क्षेत्र में दबदबा है। पीसीसी के पास भी अरुण के अलावा कोई दूसरा विकल्प यहां नहीं था। अब विकल्प पर विचार किया जा रहा है। अरुण यहां से पूर्व में एक चुनाव जीत चुके और एक बार हार चुके हैं। फिर भी इस पर उपचुनाव में उम्मीदवार ही नहीं बनना और दिग्विजय-कमलनाथ का इसको लेकर मौन रहना कई सवालों को जन्म दे रहा है।
यह भी है कारण
महज सवा दो साल बाद 2024 में लोस चुनाव होना है। चुनाव जीत भी गए तो केंद्र में कोई पद नहीं मिलता। हारते तो 2024 में टिकट की दावेदारी करने पर पार्टी व विरोधियों/दूसरे दावेदारों का तर्क होता कि लगातार दो चुनाव हारने वाले को फिर उम्मीदवार क्यों बनाया जा रहा।  साथ ही पार्टी ने चुनाव में होने वाले खर्च में मदद करने से दिल नहीं खोला। दूसरा बड़ा कारण, भाजपा उम्मीदवार के साथ क्षेत्रीय लोगों की सहानुभति।  
युवा नेता बाधक हैं, पुत्रों के लिए
खाटी कांग्रेसियों का दबी जुबान में कहना है कि नेता पुत्रों (मप्र कांग्रेस की सेकेंड जनरेशन (नेता पुत्रों) के लिए कांग्रेस के युवा जीतू पटवारी, अरुण यादव, राहुल सिंह, मीनाक्षी नटराजन स्पीड ब्रेकर हैं। इसके बाद कुणाल चौधरी, हनी बघेल, जैसे युवा नेताओं को भी वरिष्ठ नेता फ्रंटलाइन में देखना ही नहीं चाहते हैं। इन नेताओं की सीधे गांधी परिवार तक पहुंच है और मप्र के बुजुर्ग कांग्रेस नेताओं के बिना किसी संरक्षण के ये पार्टी में फ्रंटलाइन जैसा काम कर रहे हैं, इसलिए रडार पर भी यही हैं।
नाथ का बेटा आगे बढ़ेगा या दिग्विजय का
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कहा कि कांग्रेस में परिवारवाद हावी रहा है। दिल्ली से लेकर हर प्रदेश में पार्टी नेता अपने परिवार के लोगों को ही बढ़ाने में लगे रहते हैं।  उनके दायरे से बाहर का कोई व्यक्ति उन्हें बर्दाश्त नहीं होता, चाहे वह अरुण यादव हों, या कोई और। उसे वे किसी भी कीमत पर बढ़ने नहीं देना चाहते। जिस तरह राष्ट्रीय स्तर पर गांधी परिवार के बाहर का कोई व्यक्ति आगे नहीं बढ़ सकता, उसी तरह मध्यप्रदेश में भी या तो कमलनाथ का बेटा आगे बढ़ेगा, या फिर दिग्विजयसिंह का बेटा। कांग्रेस के ये बड़े नेता अपने परिवार के दायरे से बाहर के अरुण यादव जैसे नेताओं को आगे बढ़ने नहीं देंगे, उन्हें बाहर निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। यही कांग्रेस का मूल चरित्र है।

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