
- अफसरों की लापरवाही आदिवासी छात्रों पर पड़ रही भारी
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में इन दिनों आदिवासी राजनीति का केंद्र बने हुए हैं। सरकार आदिवासियों को साधने के लिए सौगातों की बरसात कर रही है। वहीं दूसरी तरफ अफसरों की लापरवाही से लाखों आदिवासी छात्रों पर भारी पड़ रही है। जानकारी के अनुसार जनजातीय कार्य विभाग के अफसरों की लापरवाही के चलते प्रदेश में 9वीं और 10वीं के 3 लाख 46 हजार विद्यार्थियों को 75 करोड़ रुपए की छात्रवृत्ति केन्द्र में एक साल से अटकी है।
दरअसल, इस राशि के लिए विभाग ने केन्द्र सरकार को प्रस्ताव ही नहीं भेजा। इससे छात्रों को पढ़ाई में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। आदिवासी आश्रम, छात्रावास और ई स्कूल विद्यालयों में कक्षा 9वीं एवं 10वीं के करीब 1.78 लाख बालक तथा 1.79 लाख बालिकाओं के लिए सीटें आरक्षित हैं। इन्हें एक साल में प्रति छात्र 400 और छात्रा को 600 रुपए की छात्रवृत्ति दी जाती है, लेकिन इस वर्ष करीब 75 करोड़ रुपए केन्द्र से अभी तक नहीं मिले हैं जबकि राज्य सरकार ने अपने हिस्से की 25 करोड़ की राशि जारी कर दी है। इसके अलावा कक्षा 11वीं एवं 12वीं में अध्ययनरत 1,65,602 विद्यार्थी हैं। इनके लिए केन्द्र से 260 करोड़ रुपए मिलने थे। इसके एवज में 198.34 करोड़ रुपए की राशि ही रिलीज की गई है। वहीं पहली से 8वीं तक पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति के रूप में 97.57 करोड़ की राशि जारी हुई है।
छात्रवृत्ति नहीं मिलने से आ रही समस्या
अफसरों की लापरवाही से छात्रवृति नहीं मिलने से छात्रों को आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पढ़ाई के लिए दूसरों से उधार पैसे लेने पड़ते हैं। फीस जमा नहीं करने को लेकर परेशानियों सामना करना पड़ता है। किताबें नहीं खरीद पाते और न ही कपड़े सिलवा पाते हैं। विधायक ओमकार सिंह मरकाम कहते हैं कि केंद्र सरकार से छात्रवृत्ति का पैसा नहीं मिलने की वजह से छात्र- छात्राओं के अभिभावकों ने कई बार इसकी शिकायत जिला स्तर पर की है, लेकिन अफसरों की लापरवाही की वजह से प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजे ही नहीं गए, जिससे छात्रवृत्ति नहीं मिली है। वहीं जनजातीय कार्य विभाग की प्रमुख सचिव डॉ. पल्लवी जैन गोविल का कहना है कि आदिवासी छात्रों को छात्रवृत्ति का भुगतान सरकार पहले अपने हिस्से से कर देती है। केंद्र से फंड मिलने के बाद इसका समायोजन किया जाता है। फिर भी पूरे मामले को मैं दिखवाती हूं, कहां मामला अटक रहा है।