
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। राज्य सरकार ने भोपाल स्मार्ट सिटी लिमिटेड कंपनी के सीईओ आदित्य सिंह को करोड़ों रुपए की गड़बड़ी के आरोप में पद से हटा दिया है। उन्हें मंत्रालय में उप सचिव के तौर पर अटैच किया गया है। बता दें कि आदित्य सिंह द्वारा स्मार्ट सिटी भोपाल के अंतर्गत करोड़ों रुपए की जमीन अपने चहेतों को ही आवंटित करने के आरोप लगे थे।
इस मामले में आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) को शिकायत मिली थी। जिस पर ईओडब्ल्यू द्वारा जांच की जा रही है। जांच की कार्यवाही पर कोई असर न पड़े इसलिए राज्य सरकार ने आदित्य सिंह को स्मार्ट सिटी भोपाल के सीईओ पद से हटाकर मंत्रालय में अटैच कर दिया है। यह मामला भोपाल में स्मार्ट सिटी लिमिटेड कंपनी द्वारा करोड़ों की जमीन नीलाम करने से जुड़ा हुआ है। वहीं नीलामी की शर्तों में हेराफेरी कर कई नामी बिल्डर्स को फायदा पहुंचाने का आरोप है। यही नहीं जांच के घेरे में दो आईएएस अफसर भी आए हैं।
यह शिकायत उन बिल्डरों की ओर से की गई है जिन्हें शर्तें पूरी करने के बाद भी स्मार्ट सिटी में जमीन नहीं मिल सकी है। आरोप है कि नीलामी के पहले जमीन पर निर्माण की जो शर्तें थी उन्हें नीलामी के बाद जमीन आवंटित होते ही बदल दिया गया। यह भी आरोप है कि अधिकारियों ने बिल्डर्स से सांठ-गांठ करके जमीन हासिल कर ली है जबकि अन्य बिल्डर्स ने भी सभी शर्तों को पूरा किया था लेकिन उन्हें वंचित रहना पड़ा है।
ईओडब्ल्यू ने दिया था नोटिस
उल्लेखनीय है कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की शिकायतें मिलने पर ईओडब्ल्यू ने आदित्य सिंह को नोटिस भेजकर दस दिनों में जमीन की नीलामी प्रक्रिया से जुड़ी तमाम जानकारी मांगी थी। जब यह मामला सरकार के संज्ञान में आया तो तत्काल प्रभाव से आदित्य सिंह को हटाने का काम किया गया है। दरअसल यह सब इसलिए किया गया ताकि उनके खिलाफ चल रही जांच प्रभावित ना हो।
ऐसे लगी शासन को करोड़ों की चपत
बता दें कि स्मार्ट सिटी एरिया में सौ एकड़ जमीन की करीब पंद्रह सौ करोड़ में नीलामी की जा रही है। नीलामी प्रक्रिया में गड़बड़ी और घोटाले की शिकायत ईओडब्ल्यू में की गई थी। उसके बाद ईओडब्ल्यू को प्राथमिक जांच में जमीन नीलामी में गड़बड़ी के सबूत मिले हैं। जो शिकायत मिली है उसमें टीटी नगर एरिया के प्लाट नंबर 79 (ए), 80 और 83 की बिक्री में गड़बड़ी की बात कही गई है। इन प्लाटों का बेसिक प्राइस 63.80 करोड़, 70.75 करोड़ और 73.96 करोड़ रखा गया था। दिलचस्प है कि केवल दो टेंडर आने पर ही प्लॉट को बेच दिया गया जबकि नियमानुसार कम से कम तीन टेंडर आने पर ही ऐसा किया जा सकता है। यह प्लाट प्राइस से केवल आठ से नौ फीसदी अधिक पर बेच दिए गए। ऐसे में शासन को करीब 35 करोड़ का नुकसान होने का आरोप है।