
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र का मालवा निमाड़ इलाका इन दिनों जहरीली शराब से होने वाली मौतों को लेकर देशभर में बदनामी का सबब बना हुआ है। इस इलाके में स्थित प्रदेश का सबसे बड़ा शहर इंदौर में हालात तो यह हैं कि एक साल में ही एक अरब रुपए की नकली विदेशी शराब और करीब 60 करोड़ कीमत की देशी शराब की बिक्री की जाती है। दरअसल यह पूरा खेल आबकारी विभाग के अफसरों की मिली भगत से खेला जाता है। यहां पदस्थ आबकारी विभाग के उपायुक्त राजनारायण सोनी की अगुवाई वाले अमले द्वारा शराब तस्करों और उसकी अवैध विक्रय करने वालों पर कार्रवाई ही नहीं की जाती है, लिहाजा शहर में अवैध शराब को कारोबार तेजी से बढ़ रहा है।
हालत यह हो गई है कि हाल ही में दो बीयर बारों से जहरीली शराब तक बेच डाली गई, जिससे पांच लोगों की मौत हो गई, लेकिन मजाल है कि शासन-प्रशासन के अलावा सरकार उन पर अब तक कोई कार्रवाई कर सका हो। यही वजह है कि अब तो सोनी के बारे में यह तक कहा जाने लगा है कि वे अपने रसूख की वजह से सरकार तक पर भारी पड़ रहे हैं। यह हाल तब हैं जब स्वयं मुख्यमंत्री ने घोषणा की थी कि माफिया को दस फुट नीचे गाड़ दिया जाएगा और जहरीली शराब से होने वाली मौत के मामलों में अफसरों को ही जिम्मेदार माना जाएगा।
शहर में हुई इन पांच मौतों के बाद भी आबकारी अमला सक्रिय नहीं हुआ लेकिन पुलिस ने ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए जरुर शहर के कई इलाकों से नकली शराब का जखीरा बरामद किया है। इस कार्रवाई के बाद हरकत में आए आबकारी अमले को भी इसी तरह की कार्रवाई करने पर अब मजबूर होना पड़ रहा है।
…और शराब माफिया के राजदार ने तोड़ा दम
इंदौर शहर के शराब माफिया के राजदार और जहरीली शराब कांड के मुख्य आरोपी विदुर नगर निवासी राहुल तायड़े उर्फ बंटी आधी रात को द्वारिकापुरी थाने में सरेंडर करने के बाद संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। पुलिस का दावा है कि वह थाने में जहर खाने के बाद आया था। इसकी वजह से थाने में आने के पहले ही उसे उल्टियां होने लगी थीं। उसे अस्पताल पहुंचाया गया जहां उसकी मौत हो गई। दरअसल इसने ही शहर के सपना और पैराडाइज बार में रॉयल स्टैग ब्रांड के नाम पर शराब सप्लाई की थी। इस मामले में फिलहाल उसके दोस्तों का तो यहां तक कहना है कि संभव है कि शराब माफिया के ही लोगों ने जहर खिलाकर भेज दिया हो , क्योंकि अगर वह मुंह खोल देता तो उनके सभी राज खुल जाते। मुनाफे के चक्कर में नकली और जहरीली शराब परोस कर लोगों की जान लेने वाले पैराडाइज बार और सपना बार के संचालकों को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है। इस बीच जिला प्रशासन द्वारा दोनों ही बार संचालकों पर रासुका लगाने की तैयारी के साथ ही उनकी संपत्ति की तलाश भी की जाने लगी है। इस बीच बार संचालक विकास बढ़ियां और योगेश उर्फ योगी यादव ने खुलासा किया है कि अपने एक साथी प्रवीण पिता सत्यनारायण यादव निवासी न्यू गोविंद कॉलोनी बाणगंगा और पंकज पिता धन प्रकाश सूर्यवंशी निवासी वाल्मीकि नगर बाणगंगा इंदौर से नकली शराब खरीदते थे।
यह है इंदौर में शराब का गणित
बीते साल शहर में शराब की 175 दुकानों की नीलामी से सरकार को 908.44 करोड़ रुपए का राजस्व मिला था, जिसमें 582.59 करोड़ विदेशी शराब और 325 .84 करोड़ रुपए देशी शराब से। इससे स्पष्ट है कि शराब के धंधे में 64.6 फीसदी हिस्सेदारी विदेशी शराब की है जबकि 35.6 फीसदी हिस्सेदारी देशी शराब की है। अगर आबकारी और पुलिस का अमला मिलकर शहर में बिकने वाली अवैध देशी और विदेशी शराब की तस्करी और बिक्रय पर रोक लाग दे तो सरकार को मिलने वाले राजस्व में 25 फीसद तक की वृद्धि हो जाएगी। अगर आबकारी विभाग के सूत्रों की माने तो इंदौर में नकली शराब की सालाना खपत 160 करोड़ से अधिक की है। इसके में यदि देशी और विदेशी शराब का अनुपात देखा जाए तो इंदौर में सालाना 102 करोड़ की विदेशी शराब और करीब 60 करोड़ की देशी शराब कि अवैध बिक्री होती है। देशी शराब को लाहन, यूरिया, स्प्रिट और केमिकल मिलाकार खुलेआम बनाया जाता है। इसके बाद भी सहायक आयुक्त राज नारायण सोनी और उनकी टीम इन पर कार्रवाई क्यों नहीं करती है , समझा जा सकता है।
आबकारी अमला क्यों नहीं उठाता यह कदम
– शराब फैक्ट्रियों से निगरानी के बाद भी अवैध रुप से शराब कैसे बड़ी संख्या में बाहर आ जाती है। ऐसे मामलों में आबकारी अफसरों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती।
– शहर में लगभग हर दिन कच्ची और अवैध रूप से बिकने वाली शराब पकड़ने की कार्रवाई की जाती है लेकिन उन्हें नकली शराब क्यों नहीं मिलती ।
– ब्रांडेड शराब की बोतलों की गिनती और उस पर निगरानी क्यों नहीं की जाती है।
– जहरीली शराब से मौत के बाद पुलिस कार्रवाई हुई तो आबकारी अमले को ताबड़तोड़ नकली शराब बेचने के ठिकाने कैसे मिल गए।
इंदौर में पदस्थ होते ही करोड़पति कैसे बन जाते हैं
इंदौर शहर में पदस्थ होने के बाद आबकारी विभाग के अफसर न केवल करोड़पति बन जाते हैं बल्कि उनका रसूख भी ऐसा हो जाता है कि आला अफसरों से लेकर सरकार तक में बैठे लोगों का भी उन्हें खुलकर साथ मिलने लगता है। यही वजह है कि इस शहर में पदस्थ रहे तमाम अफसरों पर लोकायुक्त की कार्रवाई से लेकर करोड़ों रुपए के राजस्व नुकसान के मामले की जांच बैठी , इसके बाद भी न तो इन अफसरों को लूप लाइन में भेजा जा सका और न ही उन पर अन्य तरह की ही कार्रवाई की गई है। ऐसे अफसरों में आलोक खरे, पराक्रम सिंह चंद्रावत, नवल सिंह जामौद और संजय दुबे के नाम शामिल हैं। इनमें से आलोक, चंद्रावत और जामौद के घरों पर तो लोकायुक्त के छापों में करोड़ों रुपए की संपत्ति तक मिल चुकी है