
- पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और पूर्व केन्द्रीय मंत्री रह चुके यादव को पार्टी में कमलनाथ के विरोधी के रूप में माना जाता है…
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। निमाढ़ अंचल की खंडवा लोकसभा सीट पर सांसद नंदकुमार सिंह चौहान की मृत्यु के बाद अब उपुचनाव होना है। इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी के सबसे मजबूत दावेदार अरुण यादव को कमलनाथ गुट के नेताओं से बड़े तरीके से घेर लिया है, जिसकी वजह से अब उनके टिकट पर संशय के बादल छाने लगे हैं। पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और पूर्व केन्द्रीय मंत्री रह चुके यादव को पार्टी में नाथ के विरोधी के रुप में माना जाता है। अब इस सीट पर प्रत्याशी को लेकर कांग्रेस नेता ही आपस में उलझ गए हैं।
इसकी वजह से वे अब एक दूसरे पर कटाक्ष करने से भी बाज नहीं आ रहे हैं। दरअसल यह वो सीट है जिस पर अरुण यादव का खानदानी प्रभाव माना जाता है, यह बात अलग है कि इस सीट पर वे एक चुनाव हार चुके हैं, लेकिन कांग्रेस के पास अब भी उनसे प्रभावशाली कोई नेता इस सीट के लिए नहीं है। यही वजह है की सीट रिक्त होने के बाद से ही न केवल यादव इस सीट पर सक्रिय बने हुए हैं, बल्कि उनके समर्थक भी बीते कुछ दिनों से उनका नाम बतौर प्रत्याशी खूब उछल रहे थे। इसी वजह से उनका नाम प्रत्याशी के रूप में लगभग तय ही माना जा रहा था, लेकिन इस बीच जिस तरह से उनके नाम को लेकर हाल ही में कमलनाथ ने यह कहा कि अभी कुछ भी तय नहीं हुआ है, इससे उनके नाम को लेकर संशय बन गया है। फिलहाल उनके इस बयान को यादव के विरोध में बहुत सोची समझी रणनीति के हिस्सा के रूप में देखा जा रहा है। इस बीच स्थानीय नेता भी यादव के विरोध में खड़े हो चुके हैं। वे सभी नाथ को अपनी भावनाओं से अवगत करा चुके हैं। इसके पीछे एक यह भी कारण माना जा रहा है। फिलहाल नाथ के इस बयान के बाद से यादव व नाथ के बीच दूरियां बढ़ती दिखनी शुरू हो गई हैं। शायद यही वजह है कि यादव बीते दिन प्रदेश प्रभारी मुकुल वासनिक की मौजूदगी में हुई बैठक में नहीं आए। इस बैठक में पूर्व प्रदेशाध्यक्षों को भी बुलाया गया था।
इन चार सीटों पर हो रहा पार्टी में विरोध
खंडवा की जिन पांच विधानसभा सीटों पर यादव का पार्टी के अंदर से विरोध हो रहा है उसमें बुरहानपुर, भीकनगांव, बड़वाह और मांधाता विधानसभा सीट शामिल है। यह वो विधानसभा सीटें हैं जहां पर कभी यादव समर्थक क्षत्रपों की ही चलती थी, लेकिन समय के साथ उनका प्रभाव कम होता गया और उसकी भरपाई के लिए यादव नए लोगों को अपने साथ जोड़ने में विफल रहे। इसकी वजह से विरोधियों की ताकत में इजाफा होता गया। बुरहानपुर सीट पर यादव के समर्थक अजय रघुवंशी स्थानीय स्तर पर बेहद कमजोर हो चुके हैं। इस सीट पर उनके विरोधी सुरेंद्र सिंह शेरा ने ना सिर्फ निर्दलीय रूप से चुनाव जीता बल्कि कांग्रेस के एक प्रभावशाली नेताओं को भी अपने साथ करने में सफलता पा ली है। हालांकि पहले उन्हें श्रीमंत समर्थक माना जाता था, लेकिन वे उनके साथ नहीं गए।
नाथ उन्हें उपकृत कर पाते इसके पहले ही उनकी सरकार गिर गई। यही वजह है कि अब शेरा अपनी उसी वफादारी का इनाम उप चुनाव में पत्नी को टिकट के रूप में चाह रहे हैं। क्षेत्र के तहत आने वाली दूसरी सीट है भीकनगांव। यहां पर प्रभावशाली रहे तोताराम महाजन अरुण के पिता सुभाष यादव के बेहद करीबी माने जाते थे, उनकी दखलंदाजी पंधाना तक में रहती थी। अरूण यादव सांसद बने तो उनकी यह दखलंदाजी और बढ़ गई थी, जिसकी वजह से कई नेता नाराज हो गए थे। इस पर यादव ने ध्यान नहीं दिया, जिसकी वजह से झुमा सोलंकी सहित तमाम स्थानीय नेता यादव के विरोध में आ चुके हैं। क्षेत्र की तीसरी सीट है बड़वाह। इस सीट पर सुभाष यादव के बेहद करीबी पूर्व सांसद ताराचंद पटेल का दबदबा रहा है।
अब उनकी पार्टी के साथ ही इलाके में भी पकड़ कमजोर हो चुकी है। यहां पर सचिन बिड़ला सहित तमाम नेता यादव के विरोध में हैं। इसी तरह से चौथी सीट मांधाता से भले ही यादव समर्थक नारायण पटेल विधायक चुने गए थे, लेकिन उनके द्वारा पैंतरा बदलकर श्रीमंत के साथ भाजपा ज्वॉइन कर लेने से यादव का प्रभाव बेहद कम हो चुका है। खास बात यह है कि इस सीट पर इसके बाद हुए उप चुनाव में वे भाजपा के टिकट पर जीत हासिल कर दोबारा विधायक बन गए। यहां पर कांग्रेस प्रत्याशी वरिष्ठ नेता राजनारायण सिंह के पुत्र उत्तमपाल सिंह को हार का सामना करना पड़ा। इसकी वजह से वे खुद और उनके समर्थक भी यादव से नाराज हो गए।