
भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। पेगासस प्रोजेक्ट के तहत हो रहे खुलासे में जिस तरह से केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल और उनके डेढ़ दर्जन लोगों की जासूसी होने का खुलासा किया गया है उससे राजनैतिक गलियारों में यह चर्चा बनी हुई कि आखिर सबसे ज्यादा जासूसी प्रहलाद पटेल की ही क्यों की गई है? पटेल की गिनती मप्र के बड़े नेताओं में की जाती है। वे पिछड़ा वर्ग से आते हैं और उन्हें राजनीति में पूर्व मुख्यमंत्री उमाभारती का भी बेहद करीबी माना जाता है। पटेल वर्तमान में न केवल केन्द्रीय मंत्री हैं , बल्कि जिस समय उनकी जासूसी की गई है उस समय वे केन्द्र में मंत्री बन चुके थे। इस खुलासे में जो दूसरा सनीसनीखेज खुलासा किया गया है वह उनके बेहद करीबी सहयोगियों में शामिल लोगों को भी जासूसी के मामले में नहीं छोड़ा गया है।
हाल ही में हुए मंत्रिमंडल के पुनर्गठन में उन्हें स्वतंत्र प्रभार से डिमोशन कर महज राज्यमंत्री के रूप में ही मंत्रिमंडल में रखा गया है। पहले जहां उनके पास पर्यटन व संस्कृति जैसे महत्वपूर्ण विभाग का जिम्मा था, वहीं अब उनके पास जल शक्ति विभाग दिया गया है। जासूसी के मामले का खुलासा होने के बाद हालांकि पटेल ने चुप्पी साध रखी है। मोदी मंत्रिमंडल के जिन दो लोगों के जासूसी होने का खुलासा किया गया है उसमें दूसरा नाम अश्विनी का है, हालांकि उनकी जासूसी उस समय की गई , जब वे भाजपा के साथ नहीं थे। यही वजह है कि इस मामले में सर्वाधिक चर्चा में प्रहलाद ही बने हुए हैं। उनके अलावा उनसे जुड़े जिन लोगों की जासूसी होने का खुलासा किया गया है उनमें उनके निजी सचिव आलोक मोहन नायक राजकुमार सिंह आदित्य जाचक मीडिया सलाहकार नितिन त्रिपाठी उनका रसोईया, माली आदि शामिल है। जासूसी का शिकार होने वालों में प्रमुख रूप से पटेल का नाम शामिल होने की वजह अब राजनैतिक विश्लेषकों द्वारा तलाशी जा रही हैं। दरअसल केन्द्र में मंत्री रहते उनकी और उनके सहयोगियों की जासूसी होना आम आदमी समझ नहीं पा रहा है।
इसकी वजह उनकी संघ की पृष्ठभूमि होने के साथ ही भाजपा का निष्ठावान कार्यकर्ता होना है। खास बात यह है कि 2009 में हत्या के प्रयास के एक मामले में उनके बेटे और भतीजे को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था तब प्रहलाद ने कहा था कि कानून अपना काम करेगा। लगभग 2 महीने जेल में रहने के बाद हाईकोर्ट ने प्रबल को जमानत दी। इस मामले के बावजूद मई 2019 को केंद्रीय मंत्रिमंडल में उन्हे जगह दी गई थी। इसके बाद भी उनकी जासूसी होना लोगों की समझ से परे है।
वरिष्ठ सांसद और भाजपा नेता हैं पटेल
छात्रसंघ अध्यक्ष रहने के बाद भाजपा की राजनीति में आए अभी पांचवी बार सांसद हैं। उनकी गिनती देश के वरिष्ठ नेताओं में की जाती है। खास बात यह है कि वे केन्द्र में दूसरी बार मंत्री भी बनाए गए हैं। इसके बाद भी उनकी और उनके सभी करीबियों की एक साथ जासूसी होने की वजह समझ नहीं आ रही है। यह बात अलग है कि उन्हें इस समय सरकार ,संगठन के साथ ही संघ द्वारा उपेक्षित की जा चुकी पूर्व केन्द्रीय मंत्री उमा भारती का बेहद करीबी माना जाता है। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के साथ रहने के कारण एक समय उन्हें संघ के भीतर अपने विरोध का सामना करना पड़ चुका है। चूंकि पटेल 2005 में भाजपा छोड़कर उमा भारती के साथ जन शक्ति पार्टी में जा चुके हैं। यह बात अलग है कि उसके तीन साल बाद ही उन्होंने भाजपा में आकर घर वापसी कर ली थी। माना जा रहा है कि उनकी उमा से करीबी होने की एक वजह भी जासूसी हो सकती है। उनकी खासियत यह है कि वे देश के इकलौते ऐसे सांसद हैं जो चार अलग-अलग लोकसभा क्षेत्र से एक ही पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं।
लगातार चर्चा में बने हुए हैं पटेल
दमोह उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी राहुल लोधी को पार्टी के गढ़ में ही मिली करारी हार के बाद पार्टी नेताओं को हार का जिम्मेदार बताने और दिग्गज नेता जयंत मलैया और उनके करीबियों पर कार्रवाई के लिए मोर्चा खोलने और उसके बाद वरमूडा पॉलिटिक्स करने की वजह से लंबे समय तक चर्चा में बने रहे। वह मामला शांत हुआ ही था कि वे एक बार फिर मोदी मंत्रिमंडल में कद कम होने की वजह से चर्चा में आ गए थे। इस मामले में चर्चाओं का दौर अभी समाप्त ही नहीं हुआ था कि अब जासूसी का शिकार होने वालों में उनका नाम आने के बाद वे एक बार फिर चर्चाओं में आ गए हैं।