ऑफ द रिकॉर्ड/शिवराज जी प्राइवेट स्कूल वाले कर रहे हैं मनमानी

  • नगीन बारकिया
शिवराज सिंह चौहान

शिवराज जी प्राइवेट स्कूल वाले कर रहे हैं मनमानी
मप्र में स्कूलों में शिक्षा ग्रहण कर रहे भानजे-भानजियों की माताओं यानि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बहनों का आज अपने भाई से यह सवाल है कि जब कोरोना के चलते स्कूलों में पढ़ाई होना ही नहीं है तो आखिर स्कूल जल्दी खुलवाने की कौनसी जरूरत आन पड़ी थी। अभी स्कूल खुले ही नहीं है और पालकों के पास फीस जमा करने के संबंध में स्कूल से फोन भी आना शुरू हो गए। स्कूल की ओर से न केवल इस साल की फीस बल्कि यदि बाकी है तो पिछले साल की फीस भी जमा करने को कहा जा रहा है। ट्यूशन फीस के साथ यूनिफार्म के पैसे भी मांगे जा रहे हैं। सब कुछ स्कूल शुरू होते ही जमा कराना है। फीस के इस झमेले के बाद पढ़ाई कब शुरू होगी यह मौसम पर निर्भर है। तो क्या मामाजी ने स्कूल खोलने के आदेश केवल फीस जमा करने के लिए ही दिए हैं। क्या उन पर स्कूल खोले जाने का कोई दबाव था, क्योंकि वैसे तो होना यह चाहिए था कि पहले कॉलेज खोले जाने थे और माहौल देखकर फिर स्कूलों को खोला जाना था। स्कूल खोले जाने की बात इसलिए भी गले नहीं उतर रही कि स्वयं शिवराज और पीएम मोदी जब लगातार चेतावनियां जारी कर कह रहे हैं कि कोरोना अभी खत्म नहीं हुआ है तथा प्रोटोकाल का पालन करना जारी रखें तब स्कूल खोलकर क्यों बच्चों के जीवन के साथ खिलवाड़ करने की कोशिश की जा रही है। वह भी तब जब विश्व स्वास्थ्य संगठन तीसरी लहर की भविष्यवाणी करते हुए आगामी सौ सवा सौ दिन काफी अहम बता रहा है। यदि ऐसा हुआ तो फिर से  लॉकडाउन की स्थिति से गुजरना पड़ सकता है। ऐसे में इन नन्हे छात्रों का क्या होगा? इस तरह से तीसरी लहर को तो हम स्वयं ही बुलावा दे रहे हैं। हमारे यहां बच्चों के टीकाकरण भी नहीं हो पा रहे हैं जबकि पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र में एक दिन से लेकर 18 साल तक के बच्चों को निशुल्क इम्युनिटी बूस्टर टीके लगाए जा रहे है। क्या हमारे पास ऐसी कोई तैयारी है, बिल्कुल नहीं। इसलिए उचित तो यही होगा कि फिलहाल सरकार स्कूल खोले जाने के आदेश वापस ले और पर्याप्त संतुष्टि के बाद ही इन्हें खोला जाए। जहां तक फीस का सवाल है सरकार अपनी आकस्मिकता निधि या ऐसे ही किसी कोष का उपयोग इस कार्य के लिए करे जैसे कि उद्योग धंधों आदि में किया जाता है ताकि न पालकों पर बोझ आए और न स्कूल संचालकों पर।

जनसंख्या नीति पर शिवसेना का समर्थन, नीतीश का विरोध
शिवसेना नेता संजय राउत ने पार्टी के मुखपत्र सामना में अपने साप्ताहिक कॉलम में जनसंख्या नियंत्रण पर योगी आदित्यनाथ के मसौदे का स्वागत किया और कहा कि मुख्यमंत्री को इस कदम के लिए बधाई दी जानी चाहिए। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा बिल का विरोध करने पर राउत ने कहा कि अगर नीतीश विरोध करते हैं तो भाजपा को नीतीश सरकार से अपना समर्थन वापस लेना चाहिए। महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के एक साथ वापस आने की अफवाहों के बीच संजय राउत ने लिखा है कि बिहार और उत्तर प्रदेश दोनों को अधिक जनसंख्या के कारण नुकसान उठाना पड़ा है। इसलिए इन राज्यों में जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए कानूनी कदम उठाए जाने चाहिए।

जदयू को तलाश है अपने नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की
जनता दल यू का केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा होने और उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह के मंत्री पद की शपथ ले लेने के बाद अब जदयू में राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद खाली हो गया है जिसके लिए उचित नाम की तलाश शुरू हो गई है। वैसे तो सिंह भी मंत्री के साथ अध्यक्ष बने रह सकते थे लेकिन पार्टी एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत का पालन करने के लिए कटिबद्ध है। इस हेतु पार्टी ने 31 जुलाई को दल की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक दिल्ली में बुलाई है। बैठक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलावा राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सभी 75 सदस्य शामिल होंगे।

सिद्धू की नियुक्ति पर सवाल- क्या हाईकमान दबाव में है?
पंजाब में कांग्रेस हाईकमान ने नवजोत सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपकर फौरी तौर पर तो संकट टाल दिया है लेकिन यह साफ दिखाई दे रहा है कि संकट न केवल बरकरार है बल्कि इसके तार अन्य प्रदेशों में भी बढ़ते हुए लग रहे हैं। बताया यह गया है कि सिद्धू की नियुक्ति पर कैप्टन की सहमति है लेकिन वास्तविकता में ऐसा लगता नहीं है। कई नेता इसे पार्टी का एकतरफा फैसला मान रहे हैं। पार्टी के अंदर यह बात जोर पकड़ रही है कि कांग्रेस सही ढंग से पंजाब विवाद को हल करने में विफल रही है। यदि सिद्धू को ही जवाबदारी देना थी तो इतनी देर क्यों लगाई। लगता है नेतृत्व किसी दबाव में काम कर रहा है। पार्टी के वरिष्ठ नेता हरिकेश बहादुर कहते हैं कि पार्टी का रुख बहुत गैर जिम्मेदाराना रहा है। इसका असर दूसरे प्रदेशों में भी होगा और कलह बढ़ सकती है खासकर राजस्थान में। इसके साथ ही छत्तीसगढ़, बिहार, पश्चिम बंगाल और केरल सहित कई प्रदेशों में कांग्रेस अंदरुनी झगड़ों से जूझ रही है।  सिद्धू की नियुक्ति से पंजाब की कलह खत्म होगी या बढ़ेगी, यह वक्त ही तय करेगा।  

Related Articles