
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के खजाने में सबसे अधिक राजस्व देने वाले आबकारी महकमे पर अब कुछ प्रभावशाली राजनेताओं की नजर लगी हुई है। यही वजह है कि वे इस विभाग की करीब दो दशक पुरानी व्यवस्था में बदलाव कराने में लगे हुए हैं। वे इस व्यवस्था में बदलाव करवाकर अपने लोगों के हाथों में आबकारी के वेयरहाउसों की कमान चाहते हैं। खास बात यह है कि इन राजनेताओं के रसूख के चलते सरकार भी व्यवस्था में बदलाव करने के लिए तैयार हो गई है। इससे अब शराब के वेयरहाउस निजी हाथों में देने का रास्ता खुलना तय हो गया है। बताया जा रहा है कि इसके लिए अधिकारियों की कमेटी गठित कर दी गई है। सरकार द्वारा किए जाने वाले इस व्यवस्था परिवर्तन की वजह से शराब ठेकेदारों के सिंडीकेट की ही तरह वेयरहाउस संचालकों की मनमानी भी पूरी तरह से बढ़ जाएगी। वेयरहाउस सरकारी नियंत्रण से बाहर होने की वजह से उनमें वही ब्रांड रखा जाएगा, जिनमें संचालकों को अधिक मुनाफा होगा। जिसकी वजह से लोगों को उनकी पसंद के अनुसार ब्रांड की शराब नहीं मिल पाएगी और उन्हें वेयर हाउस संचालकों की पसंद की ही शराब का सेवन करने पर मजबूर होना पड़ेगा। इसके अलावा वेयरहाउस संचालकों द्वारा कंपनियों से मनमाना किराया लिया जाएगा। इसकी वजह से पहले से ही महंगी मिलने वाली शराब की कीमतों में भी इजाफा होगा। यही नहीं अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में वेयर हाउस में दो नंबर की शराब भी रखने की संभावना बनी रहेगी। फिलहाल प्रदेश में वेयरहाउसों के संचालन का जिम्मा आबकारी विभाग के पास है। विभाग द्वारा शराब कंपनियों से वेयर हाउस में शराब रखने के एवज में किराया लिया जाता है। व्यवस्था के तहत शराब ठेकेदारों द्वारा जरूरत के हिसाब से चालान के जरिए निर्धारित फीस जमा करके वेयर हाउस से शराब ली जाती है। इस दौरान वेयरहाउस से शराब की पेटियां निकलने से लेकर शराब दुकान तक पहुंचने तक की निगरानी ऑनलाइन की जाती है। वर्तमान में प्रदेश के हर संभाग में शराब के दो-दो वेयरहाउस संचालित किए जा रहे हैं।
बैंस ने ही बनाई थी यह व्यवस्था
खास बात यह है कि पुरानी व्यवस्था को मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस ने वर्ष 2002 में आबकारी आयुक्त रहते बनाया था। जिसके तहत ही शराब के वेयरहाउस का संचालन सरकार के हाथों में दिया गया था। इसके पहले तक शराब के वेयरहाउसों का संचालन निजी हाथों में ही था। उस समय उनकी मनमानी के चलते ही सरकार ने वेयरहाउस का संचालन अपने हाथों में ले लिया था। बैंस अब प्रदेश के प्रशाससनिक मुखिया हैं, जिसकी वजह से बड़ा सवाल यह बना हुआ है कि क्या सीएस बैंस अपनी ही बनाई हुई व्यवस्था में बदलाव करने के पक्ष में रहेंगे।
और बदल दिया गया समिति का अध्यक्ष
आबकारी वेयरहाउसों को निजी हाथों में देने को लेकर सरकार द्वारा पहले जो समिति गठित की गई थी उसका अध्यक्ष पहले उज्जैन में पदस्थ आबकारी उपायुक्त वीके सक्सेना को बनाया गया था। इसके बाद अचानक उन्हें हटाकर अपर आबकारी आयुक्त डॉ गिरीश कुमार मिश्रा को कमेटी की कमान सौंप दी गई।
भ्रष्टाचारी आबकारी उपायुक्त को जेल
तत्कालीन जिला आबकारी अधिकारी पराक्रम सिंह चंद्रावत को आय से अधिक संपत्ति के मामले में न्यायालय द्वारा जेल भेज दिया गया है। उनके साथ ही आरोपी बनाई गई उनकी पत्नी विभावरी को इस मामले में जमानत मिल गई है। दरअसल बीते रोज लोकायुक्त ने कोर्ट में चालान पेश किया गया था। इस मामले में लोकायुक्त पुलिस द्वारा करीब 9 हजार पेज का चालान पेश किया गया है। खास बात यह है कि महू में उनके पिता नरेन्द्र सिंह चंद्राववत की हत्या कर दी गई थी , जिसके बाद पराक्रम सिंह को अनुकंपा नियुक्ति दी गई थी। उनके पिता पुलिस में निरीक्षक थे। पुलिस की जगह आबकारी विभाग में अनुकंपा नियुक्ति देने के लिए कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने इसके लिए कैबिनेट में प्रस्ताव लाकर मुहर लगाई थी। यही नहीं उनके पिता को प्रदेश सरकार नें शहीद का दर्जा भी दिया था। शहीद का दर्जा मिलने की वजह से उन्हें इसी कोटा से इंदौर में पेट्रोल पंप भी आवंटित किया गया था जिस का संचालन पराक्रम सिंह की पत्नी विभावरी करती हैं। गौरतलब है कि वे कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे महेंद्र सिंह कालूखेड़ा के छोटे भाई थे।