
- साहित्यकार प्रेम शंकर शुक्ला की कुछ कविताओं की शिकायत पहुंची मंत्री के द्वार
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। कुदरत की छाया में कविता रचने वाले प्रेमशंकर शुक्ला भले ही प्रकृति को अपनी संवेदना के सबसे निकट पाते है, लेकिन भारत भवन के इस मुख्य प्रशासनिक अधिकारी की कुछ कविताओं पर बवाल मचा हुआ है। शुक्ला की कुछ कविताओं पर पहले सोशल मीडिया पर बखेड़ा खड़ा किया गया और अब मप्र की संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर के पास शिकायत पहुंच गई है।
दरअसल, बहुकला केंद्र भारत भवन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी और साहित्यकार प्रेम शंकर शुक्ला की कुछ कविताओं में नारी देह के अंगों का उपमाओं के रूप में उल्लेख मिलता है। इसको लेकर भोपाल की कई साहित्यिक संस्थाओं के प्रतिनिधि साहित्यकार खड़े हो गए हैं। इसको लेकर साहित्यकारों ने मंगलवार को संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर के चार इमली स्थित निवास पर पहुंच कर ज्ञापन सौंपा है। हालांकि प्रवास के चलते मंत्री तो नहीं मिली लेकिन उनके पीए ने साहित्यकारों का ज्ञापन लिया और पूरे प्रकरण को सुना। मंत्री उषा ठाकुर से उनके पीए ने अखिल भारतीय साहित्य परिषद की राष्ट्रीय मंत्री डॉ.साधना बलवटे की फोन पर बात कराई। मंत्री ने आश्वासन दिया कि साहित्यकारों की मांग का सम्मान होगा और उचित कार्रवाई भी की जाएगी। इस अवसर पर अन्य साहित्यकारों में गौरीशंकर शर्मा गौरीश, गोकुल सोनी, घनश्याम मैथिल आदि उपस्थित थे।
स्थानीय साहित्यकारों की उपेक्षा का आरोप: जानकारों का कहना है कि शुक्ला पर स्थानीय साहित्यकारों की उपेक्षा का आरोप है। वे प्रदेश के साहित्यकारों को दरकिनार कर बाहरियों को महत्व देते हैं। साहित्यिक संस्थाओं के प्रतिनिधि साहित्यकारों ने भी मंत्री को सौंपे ज्ञापन में कविताओं पर आपत्ति के अलावा प्रेम शंकर शुक्ला के प्रशासनिक रवैए पर भी सवाल खड़े किए हैं। ज्ञापन में लिखा है कि भारत भवन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी प्रेम शंकर शुक्ला ने बीते 10 वर्षों में भोपाल व मप्र के गिने-चुने साहित्यकारों को ही भारत भवन की साहित्यिक सभाओं में अवसर दिया। प्रतिनिधि साहित्यकारों ने लिखा कि शुक्ला ने दिल्ली, मुंबई, पंजाब,कोलकाता इत्यादि शहरों के अधिक से अधिक साहित्यकारों को आमंत्रित किया और प्रदेश में साहित्यकारों को अनदेखा किया है।
नारी का अपमान या भारत भवन में वर्चस्व की जंग
प्रेम शंकर शुक्ला की कुछ कविताओं का लेकर उठे विवाद पर साहित्यिक जगत में चर्चा है कि यह नारी के अपमान का मामला है या भारत भवन में वर्चस्व की जंग। दरअसल मंत्री से शिकायत में कहा गया है कि शुक्ला की कविताओं को आपत्तिजनक बताने का आधार नारी का अपमान है। साहित्यकारों का कहना है कि शुक्ला ने अपनी कविताओं में कुछ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया है जिससे नारी अपमानित हो रही है और साहित्यिक जगत में इस तरह की कविताएं अनुचित है। साहित्यकारों ने कहा कि शुक्ला को उनके पद, साहित्यिक जिम्मेदारियों व जवाबदारियों का ख्याल रखना चाहिए था। उधर, जानकारों का कहना है कि यह नारी अपमान का मामला न होकर भारत भवन में वर्चस्व की जंग है।
नाभि पृथ्वी की अंतिम गहराई
प्रेम शंकर शुक्ला को प्राकृतिक उपमाओं का कवि माना जाता है। लेकिन उनकी कुछ कविताओं में नारी अंगों का इस तरह समावेश किया गया है जिसका विरोध सोशल मीडिया के बाद अब साहित्यकारों ने शुरू कर दिया है। प्रेम शंकर शुक्ला की जिन कविताओं पर आपत्ति उठाई गई है उनमें अंगराग शीर्षक से -‘नाभि पृथ्वी की अंतिम गहराई है, योनि सुख-रंध्र, उरोज सबसे ऊंचे पहाड़, जिनके भीतर सांसों के झरने बजते हैं’ शामिल है। इसके अलावा कहना भी शीर्षक से -‘तुम्हारी नाभि के अंधेरे में मेरी तर्जनी भीग जाती है हंसी के उजाले में निगाह,’ मीठी पीर शीर्षक से ‘(कंचन) जंघाएं अलसाई पड़ी हैं योनि जागती है सुख की तलब में’ और चित्र की आदि पालथी में बैठे हैं शिव-पार्वती शीर्षक से-‘आदि पालथी में शिव की जांघ पर पार्वती का पांव, पार्वती की जांघ पर शिव का पांव, आधे होंठ से पार्वती-आधे होंठ से शिव पूरी करते हैं मुस्कान’ शामिल हैं। कवि ने इन पंक्तियों को किस भाव में लिखा है यह तो वही जाने, लेकिन अन्य साहित्यकारों को इसमें नारी का अपमान नजर आ रहा है।
शुक्ला बोले पद से हटवाने की साजिश
सोशल मीडिया के बाद अब मंत्री के यहां पहुंचे विवाद पर प्रेम शंकर शुक्ला का कहना है कि यह मेरे खिलाफ साजिश है। कुछ लोग मुझे पद से हटवाना चाहते हैं। वह कहते हैं कि वर्ष 2018 में मेरा एक संग्रह जन्म से ही जीवित है पृथ्वी में अंगराग, कहना भी, मीठी पीर, अनावरण, रचा पान और केलि कविताएं प्रकाशित हुई थी। इन्हीं कविताओं पर आपत्ति उठाई जा रही है। यही घटनाक्रम कुछ महीने पहले आशी दुबे, नीलांबुजा शुक्ला और मनस्वी दीक्षित नाम की फेसबुक आईडी से भी किया गया था और उस दौरान भी इन्हीं कविताओं को डाला गया था। क्योंकि मैं 2018 में इन कविताओं को अपनी वॉल से शेयर कर चुका हूं। यह तीनों आईडी अपने आप फेसबुक से गायब हो गई इसी तरह इस बार भी जीतेंद्र श्रीवास्तव नाम की आईडी से यह कविताएं अपलोड की गई थी जबकि इसी नाम की दो आईडी हैं इससे सीधा समझ आता है कि दूसरी आईडी फेक है। मेरी अनुमति के बिना मेरी प्रकाशित कविताओं को जीतेंद्र श्रीवास्तव कैसे साझा कर सकते हैं। मैं इसकी शिकायत साइबर क्राइम में कर रहा हूं और पहले के भी जो प्रकरण है उनकी शिकायत भी करूंगा क्योंकि मुझे अभी ही सभी प्रकरणों का पता चला है।