सरकारी स्कूलों से छात्रों का हो रहा मोहभंग, लगातार घट रही संख्या

सरकारी स्कूलों
  • निजी स्कूलों की अपेक्षा सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा नहीं मिलने से छात्रों का ड्रॉपआउट रेट है अधिक

    भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम।
    मध्यप्रदेश में शिक्षा का स्तर कितना गिर गया है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश में छात्रों का सरकारी स्कूलों से लगातार मोहभंग होता जा रहा है। छात्र अब सरकारी स्कूलों के बजाय निजी स्कूलों में एडमिशन ले रहे हैं। दरअसल इसका खुलासा प्रदेश सरकार द्वारा शिक्षा मंत्रालय को दिए गए वर्ष 2018-19 और 19-20 के आंकड़ों संबंधी रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक साल में ही सरकारी स्कूलों से एक लाख पैंसठ हजार से अधिक छात्र ड्राप आउट हो चुके हैं। वहीं दूसरी ओर प्राइवेट स्कूलों में करीब पौने छह लाख से ज्यादा छात्रों ने एडमिशन लिया है। यही नहीं कई क्षेत्रों में तो सरकारी स्कूलों की शिक्षा की स्थिति बहुत ही खराब है। यही वजह है कि बाइस हजार स्कूल बंद हो चुके हैं। जबकि दो हजार नए प्राइवेट स्कूल खुल गए हैं। ऐसे में अगर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षा स्तर नहीं सुधारा गया तो आने वाले दिनों में स्थिति और खराब हो जाएगी। यही नहीं प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री का भी मानना है कि सरकारी स्कूलों की स्थिति अच्छी नहीं है। गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा नहीं मिलने से छात्रों का ड्रॉपआउट रेट अधिक है। हालांकि उनका यह भी कहना है कि सरकार  योजना पर काम कर रही है। सीएम राइज मॉडल स्कूल बच्चों को निजी स्कूलों से बेहतर शिक्षा देंगे।
    सीएम राइज स्कूल देंगे निजी स्कूलों को टक्कर  
    स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों के माने तो प्रदेश में 9200 सीएम राज्य स्कूल खोले जाएंगे। इन स्कूलों विश्वस्तरीय सुविधाएं देने का दावा किया जा रहा है। ये स्कूल शिक्षा और सुविधाओं के मामले में निजी स्कूलों को टक्कर देंगे। यही नहीं प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर इन स्कूलों में नर्सरी और पीजी की कक्षाएं भी संचालित होंगी। हर छात्र के लिए परिवहन की व्यवस्था होगी। एक विद्यालय एक परिसर योजना में कई स्कूलों को आस-पास के स्कूलों में मर्ज कर दिया गया है। दक्षिण कोरियाई मॉडल लागू करने की तैयारी भी चल रही है। इसके साथ ही इस दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले। वही छठवीं कक्षा से ही छात्रों को व्यवसायिक शिक्षा से जोड़ने की भी कोशिश सरकार द्वारा की जा रही है।
    ऐसे घटते गए स्कूल और छात्र
    प्रदेश में दो साल पहले यानी 2018-19 में जहां एक लाख 22 हजार 56 सरकारी स्कूल थे और इन स्कूलों में 9285196 छात्र और शिक्षकों की संख्या तीन लाख तेईस हजाए चार सौ पचहत्तर थी। वहीं प्राइवेट स्कूलों की संख्या सिर्फ 29 हजार एक सौ बयासी थी और इनमें पढ़ने वाले छात्र 67 लाख चार हजार 433 थे। और शिक्षकों की संख्या मात्र दो लाख 44 हजार 502 थी जबकि इसके अगले वर्ष में यानी वर्ष  2019-20 में 22,645 सरकारी स्कूल कम हो गए। वहीं एक लाख पैंसठ हजार से ज्यादा छात्र भी कम हो गए। शिक्षकों की संख्या भी महज तीन लाख बढ़ हजार तीन सौ छह रह गई। जबकि दूसरी ओर इसी वर्ष में दो हजार नए प्राइवेट स्कूल खुल गए। यही नहीं छात्रों की संख्या भी पांच लाख 83 हजार से अधिक हो गई। और शिक्षक भी चालीस हजार बढ़ गए।
    क्या है विशेषज्ञों की राय
    बहरहाल विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने के लिए सरकार जो भी प्रयास कर रही है वह नाकाफी है। मौटेतौर पर देखें तो सरकार मिड डे मील, यूनिफॉर्म, किताबें और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी बुनियादी जरूरतों से ही आगे नहीं बढ़ पा रही है। स्कूलों को आपस में मर्ज कर बेहतर शिक्षा की जगह कमजोर तबके के छात्रों को शिक्षा से ही दूर कर दिया है। दरअसल सरकार को इस बारे में ठोस कदम उठाने की जरूरत है ताकि विद्यार्थी प्राइवेट स्कूलों की ओर न जाकर सरकारी स्कूलों में एडमिशन लें और शिक्षा प्राप्त करें।

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