
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल को बरमूडा पॉलिटिक्स करना महंगा पड़ गया है। उन्हें बीते रोज किए गए केन्द्रीय मंत्रिमंडल के पुनर्गठन में स्वतंत्र प्रभार की जगह महज राज्यमंत्री बनाकर उनका डिमोशन कर दिया गया है। इसकी वजह से उनका न केवल केन्द्रीय मंत्रिमंडल में कद घट गया है, बल्कि उन्हें कामकाज में सुधार करने की नसीहत भी दे दी गई है। दरअसल बीते कुछ माह से वे बेहद चर्चा में बने हुए थे। बरमूडा पॉलिटिक्स के अलावा जिस अन्य कारण से पटेल चर्चा में रहे हैं उसमें दमोह उपचुनाव के परिणाम के बाद उनके द्वारा प्रदेश के ही वरिष्ठतम नेताओं में शामिल जयंत मलैया के खिलाफ खोला गया मोर्चा है। इस मामले में हालांकि पहले वे तो बाद में मलैया उन पर भारी पड़ चुके हैं। पटेल की कार्यप्रणाली और चुनावी प्रचार में खेले गए जातिगत दांव से पार्टी को बड़ा नुकसान दमोह उपचुनाव में तो उठाना ही पड़ा है साथ ही जिले की राजनीति में लोधी बनाम अन्य की स्थिति बन चुकी है। यही नहीं उनका पर्यटन व संस्कृति मंत्री होने का फायदा भी बीते दो सालों में प्रदेश को प्रभावी रुप से नहीं मिल सका है। इन सभी वजहों से संघ में उन्हें लेकर नाराजगी बनी हुई थी। अब केन्द्र सरकार द्वारा उनका विभाग भी बदला जा चुका है। उन्हें अब फूड प्रोसेसिंग और जल शक्ति विभाग में राज्यमंत्री बना दिया गया है। इस वजह से अब उन्हें मप्र में उनके लोकसभा क्षेत्र से सटे बेतवा- केन नदी जोड़ प्रोजेक्ट से निपटने की नई चुनौती का सामना करना पड़ेगा। दरअसल केन्द्र में मंत्री बनने के बाद भी प्रहलाद पटेल की प्रदेश में सक्रियता तो नहीं बढ़ाई, बल्कि वे सजातीय नेताओं का बड़ा गुट खड़ा करने के प्रयासों में लग गए थे। यही वजह रही की भाजपा के अपने ही मजबूत गढ़ दमोह में उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इसी रणनीति के तहत पटेल ने न केवल अपने बेहद करीबी कांग्रेस विधायक राहुल लोधी को पहले भाजपा में शामिल कराया बल्कि कई नेताओं को दरकिनार करवाकर उन्हें पार्टी का उपचुनाव में प्रत्याशी भी बनवाया था। इस वजह से प्रदेश भाजपा का एक धड़ा उनसे नाराज तो था ही उसके बाद उनके द्वारा जिस तरह से पार्टी के ही नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोल दिया गया था उससे भी केन्द्रीय संगठन खुश नहीं था। इस पूरे घटनाक्रम के बाद दिल्ली में जब प्रदेश भाजपा के प्रमुख नेताओं में शामिल प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा, प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत और सह संगठन मंत्री हितानंद को उनके द्वारा मुलाकात करने अपने सरकारी बंगले के दर पर बुलाया गया तो वे न केवल बरमूडा पहन कर लॉन में मिले, बल्कि उनकी इस मुलाकात की फोटो भी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो गयी। इसकी वजह से वे खूब चर्चा में बने रहे थे। इसके कुछ दिनों बाद ही उनका दूसरा फोटो भी बरमूडा में ही वायरल हुआ था, जिसमें वे कैलाश विजयवर्गीय के साथ मुलाकात कर रहे थे। उनकी यह कार्यशैली संघ को रास नहीं आई थी। दरअसल भाजपा व संघ में परंपरा है कि संगठन के लोग किसी भी मंत्री के घर इस तरह से मुलाकात के लिए नहीं बुलाए जाते हैं बल्कि मंत्री उनसे मिलने खुद या तो दफ्तर जाते हैं या फिर उनके निवास पर। यही नहीं संस्कृति विभाग होने के बाद भी वे इस मामले में संघ की मंशानुसार भी काम नहीं कर पा रहे थे। पटेल के इस कदम से संघ बेहद नाराज बताया जा रहा था। उनका मंत्रिमंडल में डिमोशन की एक बड़ी वजह इसे भी माना जा रहा है। इसके अलावा प्रदेश को इस पुनर्गठन में दो नए मंत्री भी मिले हैं। इनमें से एक श्रीमंत तो दूसरे वीरेन्द्र खटीक हैं। इन दोनों ही चेहरों को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। इनमें से श्रीमंत का तो पहले से ही मंत्री बनना तय था। दरअसल उनकी वजह से ही प्रदेश की सत्ता से कांग्रेस की असमय विदाई और भाजपा की वापसी हो सकी है। दूसरे मंत्री वीरेंद्र खटीक की जरुर किस्मत पूर्व केन्द्रीय मंत्री और मौजूदा कर्नाटक के राज्यपाल थावर चंद गहलोत की वजह से लगी है। गहलोत की जगह खटीक को एक दलित चेहरे के रुप में मौका दिया गया है। श्रीमंत और खटीक उन इलाकों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो पड़ौसी राज्य उप्र से लगे हुए हैं। उप्र में इसी साल के अंत में आम विधानसभा के चुनाव होने हैं, ऐसे में इन दोनों ही मंत्रियों का फायदा पार्टी उप्र में भी देख रही है।
तोमर और श्रीमंत के बीच सामंजस्य होगी बड़ी चुनौती
पुनर्गठन में जिस तरह से श्रीमंत को कैबिनेट मंत्री बनाकर नागरिक उड्डयन विभाग का प्रभार देकर महत्व दिया गया है , उससे यह तो तय है कि अब भाजपा में ग्वालियर -चंबल की राजनीति में दो पावर सेंटर बन गए हैं। इस इलाके में अब तक भाजपा के सबसे बड़े नेता केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर संगठन व सत्ता के सबसे बड़े केन्द्र रहा करते थे, लेकिन श्रीमंत के भाजपा में आने के बाद से दूसरा शक्ति केन्द्र श्रीमंत के रुप में तेजी से उभर रहा है। इसकी बानगी उपचुनाव के बाद मंत्रिमंडल के विस्तार और फिर प्रभार के रुप में सामने आ चुकी है। माना जा रहा है कि इन दोनों ही नेताओं के बीच अब प्रदेश की सत्ता व संगठन को समांजस्य बनाने की बड़ी चुनौती रहेगी।
जातिगत समीकरण के चलते ही नहीं हुए बाहर
मोदी मंत्रिमंडल पुनर्गठन में स्वतंत्र प्रभार से महज राज्यमंत्री तक ही सीमित किए गए नेताओं में शामिल प्रहलाद पटेल इन विवादों के बाद भी मंत्रिमंडल में सिर्फ जातिगत समीकरणों की वजह से बने रहने में सफल रहे हैं। दरअसल वे लोधी समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस समाज को साधे रखने के प्रयासों में ही उन्हें बरकरार रखा गया है। दरअसल उप्र में खासतौर पर बुंदेलखंड अंचल में लोधी समाज बहुतायत में है। उप्र में कुछ माह बाद ही विधानसभा के आम चुनाव भी होने हैं।