
- प्रदेश के आंगनवाड़ी केंद्रों में बच्चे, गर्भवती महिलाएं, धात्री माताओं और किशोरी बालिकाओं को पोषण आहार दिया जाता है…
भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश में हर विभाग में माफिया फलफूल रहा है। फिर चाहे सरकार कांग्रेस की रही हो या भाजपा की नेताओं की चापलूसी और अधिकारियों की उदासीनता, अकर्मण्यता के कारण इनका रसूख हमेशा सत्ता पर हावी रहा है। महिला बाल विकास विभाग के अंतर्गत पोषण आहार का मामला भी सालों से रसूखदारों के कब्जे से बाहर नहीं आ पा रहा है। जबकि ठेकेदारी प्रथा के चलते विभाग में भ्रष्टाचार के आरोप हमेशा से लगते रहे हैं। यह भ्रष्टाचार मीडिया के माध्यम से भी चर्चाओं में रहा है। यही नहीं ठेकेदार लॉबी से पार पाने के लिए सरकार के आला अफसर नाकाम साबित हो रहे हैं। यह स्थिति तब है जब महिला स्व सहायता समूहों के हाथ में पोषण आहार की जिम्मेदारी देने के लिए सात प्लांट बनकर तैयार हो चुके हैं। इसके साथ ही आजीविका मिशन के माध्यम से इनके महासंघ भी बनाए गए हैं। कांग्रेस के कार्यकाल में यह प्लांट एमपी एग्रो को दिए गए थे। एमपी एग्रो में ठेकेदारों के माध्यम से काम होता है। इससे अप्रत्यक्ष रूप से कमांड ठेकेदारों के हाथ ही रही। पिछले साल सत्ता परिवर्तन के बाद एक बार फिर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी और पोषण आहार में ठेकेदारी प्रथा खत्म कर यह काम स्व सहायता समूहों के माध्यम से कराए जाने की बात कही गई।
अब इसमें बदलाव के लिए प्रस्ताव कैबिनेट में जाना है। इसमें व्यवस्था एमपी एग्रो से लेकर पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को दी जानी है। लेकिन ठेकेदारों के रसूख और दबाव के चलते यह प्रस्ताव कैबिनेट तक नहीं पहुंच पा रहा है। ज्ञात हो कि आंगनवाड़ी केंद्रों में छह माह से तीन वर्ष तक के बच्चे, गर्भवती महिलाएं, धात्री माताओं और किशोरी बालिकाओं को पोषण आहार दिया जाता है।
सीएम शिवराज ने 2016 में की थी घोषणा
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने पिछले कार्यकाल में वर्ष 2016 में पोषण आहार की जिम्मेदारी स्व सहायता समूहों को देने की घोषणा की थी। हालांकि इस पर वे अमल ही नहीं कर पाए और 2018 के चुनाव में भाजपा सत्ता से बाहर हो गई थी। यही वजह है कि जब पिछले साल घटनाक्रम के बाद प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ और फिर भाजपा सत्ता में आई तो उम्मीद की जा रही थी कि यह काम ठेकेदारों से वापस लेकर स्व सहायता समूहों को सौंप दिया जाएगा लेकिन ठेकेदारों का रसूख अब भी सत्ता पर भी हावी दिखाई दे रहा है। बता दें कि राज्य के बजट में इस बार पोषण आहार के लिए 1495 करोड़ का रुपए का प्रावधान किया गया है।
सरकार की व्यवस्था ही कुपोषित हो गई
प्रदेश में पोषण आहार नीति का हल नहीं निकल पा रहा है। दरअसल सरकार और प्रशासन तंत्र की लापरवाही के चलते व्यवस्था ही कुपोषित हो गई। वर्ष 2016 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की थी कि ठेकेदारों को हटाकर पोषण आहार की जिम्मेदारी स्व सहायता समूहों को दी जाएगी। इस आशय का फैसला कैबिनेट में भी हुआ था, लेकिन विभाग में ठेकेदारों के रसूख के चलते यह नीति अब तक अमल में नहीं आ सकी। जबकि सरकार ने पोषाहार संयंत्र भी बना लिए है लेकिन उन्हें शुरू करने की हिम्मत सरकार नहीं कर पा रही है।
ठेकेदारी प्रथा के चलते न कुपोषण मिट रहा न भ्रष्टाचार
बता दें कि विभाग में पिछले 14 सालों से ठेकेदारी प्रथा चल रही है। और इसमें हमेशा ही भ्रष्टाचार और घोटाले के आरोप भी लगते रहे हैं। इसकी पुष्टि आयकर विभाग की टीम द्वारा मारे गए छापों में भी हो चुकी है। यदि स्व सहायता समूहों को यह काम मिलेगा तो लाखों महिलाओं को रोजगार मिल सकेगा। दूसरी ओर प्रदेश में कुपोषण की स्थिति चिंताजनक है। एक सर्वे के मुताबिक राज्य में सत्तर हजार से अधिक बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। इनमें नवजात से लेकर छह वर्ष तक के बच्चे शामिल है। इसके अलावा चार लाख से भी अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। बहरहाल राज्य में पोषाहार नीति लागू होने से कुपोषण के संकट से निपटने में मदद मिल सकती है। चूंकि ठेकेदारी प्रथा में हमेशा ही भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं फिर भी सरकार इस प्रथा को बदलने में कोई रुचि अब तक नहीं दिखा पाई है।