संदेहास्पद लेनदेन के दो सौ से अधिक मामले ईओडब्ल्यू की जांच में

 ईओडब्ल्यू
  • अधिकारी-कर्मचारियों की कमी के चलते जांच के काम नहीं बढ़ पा रहे हैं आगे…

    भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम।
    प्रदेश की जांच एजेंसियों लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू के पास शिकायतों का अंबार लगा है। हालांकि जिन शिकायतों पर पहले से कार्यवाही  चल रही थी वह भी कोरोना संकट काल की वजह से पेंडिंग हो गई है।
    अकेले राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) में ही करीब चार हजार से अधिक मामलों की जांच चल रही है। इनमें दो सौ से अधिक शिकायतें तो वो हैं जिनमें संदेहास्पद लेन-देन हुआ है। इसके अलावा प्रदेश में भ्रष्टाचार के मामले, आय से अधिक संपत्ति के मामले और पद का दुरुपयोग मामले में पेंडिंग शिकायतों की संख्या भी हजारों में है। हालांकि शिकायतों का बड़ी संख्या में पेंडिंग होने का एक बड़ा कारण अधिकारी और कर्मचारियों की कमी भी है। पर्याप्त स्टाफ नहीं होने की वजह से जांच आगे नहीं बढ़ पाती। वहीं ईओडब्ल्यू के डीजी अजय शर्मा का कहना है कि पुराने मामलों के निराकरण के लिए प्राथमिकता दी जा रही है। पिछले आठ-दस सालों से लंबित प्रकरणों का निराकरण पहले कराया जा रहा है, ताकि शिकायतों के आंकड़ों की संख्या कम हो सके।
    लगभग चार दर्जन पद हैं रिक्त
    राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो में स्टाफ की कमी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश में जितने पद स्वीकृत हैं। उनमें से बड़ी संख्या में कई पद लंबे समय से रिक्त पड़े हैं। यहां एडीजी, पुलिस अधीक्षक, एआईजी, डीएसपी, निरीक्षक और एसआई के कई पदों को भरा जाना है। बड़ी संख्या में जांच अधिकारियों के पद रिक्त होने के कारण जांच नहीं हो पा रही हैं। दिलचस्प है कि सबसे खराब हालात तो  ईओडब्ल्यू भोपाल की संभागीय के है। यहां शिकायत, जांच, अपराधों की विवेचना, संदेहास्पद लेन-देन के मामलों की जांच के लिए सिर्फ दो डीएसपी और छह निरीक्षक ही उपलब्ध है जबकि मौजूदा स्थिति में करीब साढ़े पांच सौ से अधिक मामले जांच में है। यही कारण है कि अफसरों की कमी की वजह से यहां से स्थानांतरित निरीक्षकों को कार्यमुक्त नहीं किया जा रहा है। कुछ इसी तरह के हालात सागर संभाग की नई इकाई के भी हैं। ब्यूरो की तीन साल पहले ही खुली इस इकाई में ना तो निरीक्षक है और ना ही डीएसपी। यहां पुलिस अधीक्षक के अलावा कुछ उप निरीक्षक और निचले स्तर पर प्रधान आरक्षक और आरक्षक ही तैनात है। ऐसे में यहां दर्ज होने वाली रजिस्टर्ड शिकायतों एवं लेनदेन के संदेहास्पद मामलों को जांच के लिए जबलपुर संभागीय इकाई को भेज दिया जाता है।
    जांच में लगेगा वर्षों का समय
    विभागीय अधिकारियों की मानें तो ईओडब्ल्यू में वर्तमान में पेंडिंग शिकायतों की संख्या चार हजार से अधिक है। एक शिकायत की जांच में करीब-करीब एक सप्ताह का समय लगता ही है। इस तरह एक अधिकारी एक साल में सिर्फ 50 शिकायतों की ही जांच कर सकता है। यदि चालीस अधिकारियों से इनकी जांच कराई जाए तो एक साल का समय लगेगा।  वर्तमान स्थिति में ईओडब्ल्यू में सिर्फ चालीस डीएसपी और निरीक्षक ही उपलब्ध है। यदि इन अधिकारियों से रजिस्टर्ड शिकायतों की जांच कराई जाए तो रेगुलर दर्ज होने वाले पांच सौ मामलों और तीन सौ के करीब प्राथमिकी जांच तथा दो सौ संदेहास्पद लेन-देन के मामलों की जांच के लिए कोई अधिकारी ही नहीं है।
    निरीक्षक-डीएसपी के पद भरे जाने की दरकार
    सूत्रों की माने तो ईओडब्ल्यू में जिस तरह शिकायतों की हर साल संख्या बढ़ रही है, उस हिसाब से लगभग पांच सौ निरीक्षक-डीएसपी उपलब्ध होना चाहिए क्योंकि अपराध, शिकायतों की जांच का जिम्मा इन्हीं अधिकारियों पर रहता है। वहीं प्रकरणों की मॉनिटरिंग से संबंधित काम का जिम्मा पुलिस अधीक्षक, एआईआई और डीजी के पास होता है। व्यवस्था के मुताबिक गम्भीर मामलों की जांच उप निरीक्षकों को नहीं दी जाती है। यही वजह है कि उन्हें जमीन पर अवैध कब्जा, भूखंड खरीदी के नाम पर धोखाधड़ी, अड़ीबाजी जैसे मामलों की शिकायतों की जांच दी जाती है। साथ ही प्रधान आरक्षक और आरक्षक का काम समंस और वारंटों की तामीली का रहता है।

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