सरकारी बिजली उत्पादन प्लांट हो रहे कुप्रबंधन के शिकार

बिजली उत्पादन प्लांट

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। प्री-मानसून की बारिश के चलते प्रदेश में इन दिनों बिजली की मांग बेहद कम होने के बाद भी बिजली उत्पादन कंपनी सरकारी प्लांटों की जगह निजी प्लांटों से बिजली की जमकर खरीदी कर रही है। इसकी वजह है सरकारी बिजली प्लांटों का कुप्रबंधन का शिकार होकर बंद हो जाना। दरअसल प्रदेश के आधे थर्मल प्लांट तो पूरी तरह से बंद पड़े हुए हैं और जिनमें उत्पादन हो रहा है उनसे भी महज उनकी क्षमता से करीब 70 फीसदी कम बिजली का उत्पादन किया जा रहा है। लगभग यही हाल पन बिजली योजनाओं का है, जबकि इस साल अभी भी बिजली उत्पादन के काम आने वाले बांधों में पानी पूर्व की सालों की तुलना में अधिक भरा हुआ है। हालत यह है कि प्रदेश को रोशन करने के लिए निजी क्षेत्र से महंगे दामों में जमकर बिजली की खरीद की जा रही है। दरअसल प्रदेश के जो सोलह में से आठ प्लांट बंद हैं उसकी वजह है कोयले की कमी और उनमें आई तकनीकी खराबी। इनमें से कई प्लांटों की इंकाईयां तो कई -कई माह से बंद पड़ी हुई हैं। प्रदेश में बिजली उत्पादन की खराब हालत इससे ही समझी जा सकती है कि 16 में से आठ थर्मल प्लांटों मेें ही बिजली उत्पादन किया जा रहा है। इन आठ प्लांटों की क्षमता कुल 5,400 मेगावाट की है , लेकिन उनसे उत्पादन महज 1,450 मेगावाट तक सीमित बना हुआ है।

दरअसल बिजली कंपनी पर करीब कोयला आपूर्ति करने वाली कोल कंपनियों का 750 करोड़ रुपए का बकाया है यह राशि न मिलने की वजह से कोल कंपनियों ने कोयला आपूर्ति में कटौती कर दी है। जिसकी वजह से कोयला का संकट बना हुआ है। कोयले की कमी इससे ही समझी जा सकती है कि अमरकंटक और बिरसिंहपुर प्लांट में 10-10 दिन, सारणी में पांच दिन एवं संत श्री सिंगाजी प्लांट में महज सात दिन का कोयला है। कुल सवा पांच लाख टन स्टाक में है, जबकि हर दिन की कोयला खपत 52 हजार टन है। कोयल भंडार मानकों के हिसाब से यह कोयला बहुत ही कम है। यही नहीं कुछ प्लांटों की यूनिट आठ-आठ माह से तकनीकि खराबी की वजह से बंद पड़ी हुई हैं। इनके सुधार में भी कोई रुचि नहीं ली जा रही है। इसके चलते मांग के अनरुप बिजली उत्पादन नहीं होने की वजह से निजी प्लांटों से महंगी दर पर बिजली खरीदकर आपूर्ति की जा रही है। इस  कारण से कंपनियों की आर्थिक सेहत तेजी से बिगड़ रही है, जिसका खमियाजा उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ेगा। पहले से ही आर्थिक संकट का सामना कर रही बिजली कंपनियां अपने घाटे की पूर्ति के लिए हर साल बिजली के दामों में वृद्धि कराने में लगी रहती हैं। जिस कारण से मप्र देश के उन राज्यों में शामिल है जहां पर सर्वाधिक महंगी दर पर बिजली मिलती है।

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