पुरुष ‘पोस्टर ब्वॉय’…..महिलाओं पर नसबंदी का दारोमदार!

नसबंदी

सेंटर फॉर एडवोकेसी एवं सृजन फाउंडेशन की रिपोर्ट में खुलासा

मप्र सहित देशभर में कोरोना संक्रमण के कारण भले ही जनगणना 2021 नहीं हो पाई है, लेकिन इस बीच सामने आई टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफआर) यानी प्रजनन दर ने जनसंख्या नियंत्रण के दावों की पोल खोल दी है। सेंटर फॉर एडवोकेसी एवं सृजन फाउंडेशन की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि मप्र्र में पुरुषों के असहयोगी रवैए के कारण प्रजनन दर अधिक है। आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में प्रतिवर्ष लगभग साढ़े तीन लाख नसबंदी ऑपरेशन होते हैं लेकिन इसमें पुरुष नसबंदी की संख्या 5 प्रतिशत से भी कम है। यानी मप्र में परिवार नियोजन का दारोमदार महिलाओं पर है।

विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
मप्र की बढ़ती जनसंख्या सरकार के लिए नई चुनौती के रूप में सामने आ रही है। प्रदेश की जनसंख्या वृद्धि की दर देश ही नहीं पूरी दुनिया के औसत से ज्यादा है। प्रदेश की जनसंख्या वृद्धि दर यानी टीएफआर 2.3 है, जबकि देश का 2.2 और दुनिया का टीएफआर 2.4 है। देश के अन्य राज्यों से तुलना करें तो जनसंख्या वृद्धि में मप्र्र पांचवें नंबर पर आता है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ का टीएफआर मप्र्र से कम है। भारत में जनसंख्या की गणना हर 10 साल में होती है। लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण इस बार अभी तक जनगणना नहीं हो पाई है। फिर भी जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम पर काम करने वाले सेंटर फॉर एडवोकेसी एवं सृजन फाउंडेशन का अनुमान है कि 2021 में मप्र्र की जनसंख्या 8,50,02,417 हो गई है। जिसमें पुरुषों की अनुमानित संख्या 44,019,895 और महिलाओं की अनुमानित संख्या 40,982,522 है। भारत की जनगणना पिछली बार 2011 में हुई थी। 2011 की जनगणना के अनुसार मप्र्र की कुल जनसंख्या 7 करोड़ 26 लाख 26 हजार 809 थी। जो कि भारत की कुल जनसंख्या का 6.00 प्रतिशत है। जिसमें से पुरुषों की जनसंख्या 3 करोड़ 76 लाख 10 हजार 983 थे, जबकि महिलाओं की जनसंख्या 3 करोड़ 50 लाख 15 हजार 826 थी। इस तरह 10 साल में मप्र्र की जनसंख्या में करीब 1,23,75,680 लोगों की बढ़ोत्तरी हुई है। जिसमें पुरुषों की संख्या 9408912 और महिलाओं की संख्या 5966696 है।
नसबंदी का जिम्मा महिलाओं के कंधे पर: जनसंख्या नियंत्रण देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। देश के कुछ राज्य ऐसे हैं जहां पर जनसंख्या वृद्धि की दर ज्यादा है। इन राज्यों में मप्र्र भी शुमार है। प्रदेश की कुल प्रजनन दर भले ही कम होकर राष्ट्रीय स्तर से अधिक पहुंच गई हो वहीं प्रदेश के 25 जिले ऐसे हैं जहां पर जनसंख्या वृद्धि दर प्रदेश से दोगुनी तक है। इन 25 जिलों में पन्ना और शिवपुरी सबसे आगे हैं। इन जिलों को केंद्र सरकार ने अपनी मिशन परिवार विकास में भी शामिल किया है। प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग की ताजा रिपोर्ट हैरान करने वाली है। परिवार नियोजन में प्रदेश के सिर्फ पांच फीसदी पुरुषों की रुचि है। चौंकाने वाली बात ये भी है कि सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी प्रदेश के सिर्फ आधा फीसदी पुरुष ही नसबंदी ऑपरेशन करवाते हैं। जबकि सरकार पुरुष नसबंदी को बढ़ावा देने के लिए कई जतन कर रही है। प्रोत्साहन राशि बढ़ाकर तीन हजार कर दी गई है। महिलाओं को दो हजार रुपए मिलते हैं। प्रसव के तुरंत बाद यदि महिला नसबंदी ऑपरेशन करवा लें तो उसे भी प्रोत्साहन राशि स्वरूप तीन हजार रुपए दिए जाते हैं। इसमें महिला को दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि सहित डॉक्टर फीस, आंगनवाड़ी या आशा कार्यकर्ता का इनसेंटिव, नाश्ते का पैसा सहित अन्य खर्च शामिल है। पुरुष नसबंदी पर ज्यादा पैसा दिया जाता है। सबसे ज्यादा नसबंदी करने वाले डॉ. ललित मोहन पंत बताते हैं कि देश के 29 में से 19 राज्यों ने यह लक्ष्य हासिल कर लिया है। वहां का टीएफआर 2.1 प्रतिशत से नीचे आ गया है। मप्र्र को यह लक्ष्य हासिल करना है। हालांकि विडंबना यह है कि जो पुरुष और महिला नसबंदी ऑपरेशन करवा रहे हैं उन्हें वर्तमान में प्रोत्साहन राशि नहीं मिल रही है। इस संबंध में जिम्मेदारों का कहना है कि पिछले लगभग 1 साल से प्रदेश सरकार की तरफ से इस मद में राशि ही प्राप्त नहीं हुई है। महिला डॉक्टरों के अनुसार नसबंदी का लक्ष्य निजी अस्पतालों को भी दिया जाता है। आमतौर पर ऑपरेशन के जरिए होने वाले प्रसव के दौरान महिला से नसबंदी के लिए सहमति ली जाती है और सहमति मिलने पर नसबंदी कर दी जाती है। यही वजह है महिलाओं की नसबंदी का लक्ष्य प्राप्त हो जाता है। अधिकारियों के अनुसार प्रजनन दर में प्रदेश के आगे रहने की सबसे बड़ी वजह है पुरुषों का असहयोगी रवैया। आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में प्रतिवर्ष लगभग साढ़े तीन लाख नसबंदी ऑपरेशन होते हैं लेकिन इसमें पुरुष नसबंदी की संख्या 5 प्रतिशत से भी कम है।

प्राथमिकता में जनसंख्या नियंत्रण नहीं
सेंटर फॉर एडवोकेसी एवं सृजन फाउंडेशन मझगवां (कटनी ) की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मप्र्र में सरकार की प्राथमिकता में जनसंख्या नियंत्रण कभी नहीं रहा है। यही वजह है कि प्रदेश में जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। अब हालत यह है कि मप्र्र की फर्टिलिटी दर राष्ट्रीय औसत से अधिक हो चुकी है। यही वजह है कि मप्र्र को उन राज्यों में शामिल कर लिया गया है, जहां पर जनसंख्या वृद्धि दर अधिक बनी हुई है। इसे जनसंख्या नियंत्रण के लिए अच्छे संकेत नहीं माने जा रहे हैं। इसमें प्रमुख भूमिका उन दो दर्जन जिलों की है जिनकी जनसंख्या वृद्धि दर प्रदेश से दोगुनी है। प्रदेश में जिन दो जिलों में सबसे कम वृद्धि दर है उनमें मुरैना व खंडवा जिले हैं। इसके उलट पन्ना व शिवपुरी जिले ऐसे हैं जो प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि दर में सबसे आगे हैं। अगर सरकारी रिपोर्ट को देखें तो उसमें प्रदेश की फर्टिलिटी दर 2.3 फीसदी बताई गई है, जबकि देश की दर 2.2 फीसदी है। यही वजह है कि अब केन्द्र सरकार द्वारा अधिक दर वाले जिलों में दर में कमी लाने के लिए मिशन परिवार के तहत टीएफआर को 2.1 तक लाना। हालांकि यह काम बड़ी चुनौती वाला माना जा रहा है। जनसंख्या नियंत्रण बहुत आवश्यक है। एक सर्वे के अनुसार लडक़े की चाह में भी संतानों की संख्या बढ़ रही है। इससे हमें पता लगता है कि लैंगिक समानता कितनी जरूरी है। और भी ऐसे कई कारण है जिनसे जनसंख्या बढ़ रही है। हमें उन्हीं कारणों को मिटाना है बस। अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि रोजगार, भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को उपलब्ध करवाने में बाधक है। सरकार को ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों के लोगों को परिवार नियोजन की शिक्षा प्रदान करनी चाहिए। गर्भनिरोधक विधियां कम कीमत पर उपलब्ध होनी चाहिए। सामाजिक संगठनों और सरकार को लोगों को बालिका सशक्तिकरण के बारे में जागरूक करना चाहिए। अंतत: सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जनसंख्या का पूरा कार्यबल देश के विकास में शामिल हो।

एक परिवार में दो से अधिक बच्चे
जनसंख्या नियंत्रण सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। इस चुनौती से निपटना इस समय सरकार के लिए सबसे ज्यादा जरुरी है। प्रदेश का पूरा अर्थशास्त्र जनसंख्या के आधार पर ही तय होता है। विकास की गति, जीडीपी, प्रति व्यक्ति आय और संपन्नता का सीधा संबंध प्रदेश की जनसंख्या से ही है। प्रदेश की प्रजनन दर 2.3 है यानी एक परिवार में औसतन दो से ज्यादा बच्चे होते हैं। गांव में प्रति परिवार 3 बच्चे और शहर में 2.1 बच्चे होते हैं। वर्ष 2011 की जनगणना में मप्र्र की कुल आबादी 7,26,26,809 दर्ज की गई थी। परंतु जनगणना के 10 साल बाद सर्वे और आंकड़ों की माने तो 2021 में प्रदेश की जनसंख्या 8,50,02,417 हो गई है। चूंकि यह आंकड़े पूर्ण रूप से आंकी गई जनसंख्या के नहीं है, परन्तु अनुमानित जनसंख्या इतनी ही है। अगर इस राज्य की जनसंख्या वृद्धि दर देखें तो हम पाएंगे कि वह 24.34 प्रतिशत है। जो जनसंख्या के विस्फोट को दर्शाता है।
जनसंख्या वृद्धि में अव्वल राज्य
बिहार 3.2
मेघालय 3.0
उत्तर प्रदेश 3.0
नागालैंड 2.7
राजस्थान 2.6
छत्तीसगढ़ 2.4
मध्य प्रदेश 2.3
महाराष्ट्र 1.7
दिल्ली 1.6
जम्मू-कश्मीर 1.6

ग्रामीण क्षेत्र में जनसंख्या वृद्धि ज्यादा
प्रदेश में शहरों की अपेक्षा गांवों में जनसंख्या वृद्धि दर ज्यादा है। बढ़ती जनसंख्या का कारण कारण कम साक्षरता, परिवार नियोजन के प्रति अरुचि और बच्चों के जन्म में कम अंतराल रखना है। ग्रामीण क्षेत्रों का टीएफआर 3 है जबकि शहरी क्षेत्र में ये आंकड़ा 2.1 है। यानी ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के बीच 0.9 का बड़ा अंतर सामने आता है। सरकार अपने एक्शन प्लान में ग्रामीण क्षेत्रों को ही ज्यादा फोकस कर रही है। भोपाल की प्रजनन दर पिछले पांच साल से 2 पर स्थिर है, जो प्रदेश ही नहीं बल्कि देश की प्रजनन दर से भी 0.2 कम है। प्रजनन दर के मामले में भोपाल पूरे प्रदेश में पहले नंबर पर है। सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस )के अनुसार देश की प्रजनन दर 2.2 है जबकि प्रदेश की प्रजनन दर 2.7 है। 2011-12 में भोपाल की प्रजनन दर 2.1 थी। एनएचएम के अधिकारियों के अनुसार भोपाल की प्रजनन दर बेहतर इसलिए है क्योंकि यहां शहरी और शिक्षित आबादी का प्रतिशत ज्यादा है। सरकारी और अस्पतालों की संख्या ज्यादा है। यहां फैमिली प्लानिंग के ट्रेम्परेरी साधन आसानी से उपलब्ध हैं।

25 जिलों में जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम फेल
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो प्रदेश के 25 जिलों में जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम प्रभावहीन रहा है। तमाम कवायद के बाद भी नियंत्रण की स्थिति दिखाई नहीं दे रही है। इन जिलों में हर महिला औसतन तीन बच्चे को जन्म दे रही है। खास बात यह है कि इन जिलों में सरकार द्वारा अतिरिक्त बजट देकर मिशन परिवार विकास का कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है। ये जिले हैं-सतना, रीवा, सीधी, पन्ना, शिवपुरी, विदिशा, छतरपुर, दमोह, सीहोर, डिंडोरी, गुना, रायसेन, उमरिया, सागर, कटनी, शाजापुर, टीकमगढ़, नरसिंहपुर, राजगढ़, रतलाम, मुरैना, खंडवा, खरगोन, झाबुआ व हरदा जिला शामिल हैं। इनमें से सबसे खराब स्थिति पन्ना की है। जिले का टीएफआर प्रदेश में सबसे ज्यादा है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े के अनुसार पन्ना में टीएफआर 4.1, सतना में 3.6 है। रीवा व सीधी में एक समान स्थिति है। यहां टीएफआर 3.4 है। जिन जिलों में टोटल फर्टिलिटी रेट 2.1 से अधिक है, वहां जागरुकता की सबसे अधिक कमी सामने आई है। शहरी क्षेत्र की तुलना में ग्रामीण क्षेत्र में लोग परिवार नियोजन अपनाने में पीछे हैं। पारिवारिक कारण व लगातार बेटियां होने पर बेटे की चाह भी इसका बड़ा कारण है। एक, दो या तीन लड़कियों के होने के बाद भी बेटा हो, इसलिए भी परिवार नियोजन को कम अपनाया जा रहा है। वहीं लोग ऑपरेशन से डरते हैं।

ये है 25 जिलों की प्रजनन दर
पन्ना 4.1
शिवपुरी 4
बड़वानी 3.9
विदिशा 3.9
छतरपुर 3.8
सतना 3.6
दमोह 3.5
सीहोर 3.5
डिंडोरी 3.4
गुना 3.4
रायसेन 3.4
रीवा 3.4
सीधी 3.4
उमरिया 3.4
सागर 3.3
कटनी 3.2
शाजापुर 3.2
टीकमगढ़ 3.2
नरसिंहपुर 3.1
राजगढ़ 3.1
रतलाम 3.1
खरगौन 3.1
मुरैना 3
खंडवा 3
सिवनी 3

एक साल में 2.5 लाख नसबंदी
साल 2020-21 में सरकारी कार्यक्रम के तहत करीब 2.5 लाख नि:शुल्क नसबंदी ऑपरेशन किए गए। इनमें अधिकांश महिलाओं की संख्या थी। नसबंदी कार्यक्रम के प्रति लोगों को आकर्षित करने के लिए सरकार 2000 रुपए देती है। जो 25 जिले मिशन में शामिल हैं उनको प्रति व्यक्ति 3000 तीन हजार रुपए आर्थिक क्षतिपूर्ति के रुप में दिए जाते हैं। इसके अलावा अस्थाई साधनों का वितरण भी किया जाता है हालांकि उसकी आपूर्ति की मांग सिर्फ 12.1 फीसदी है। महिलाएं गर्भ निरोधक गोलियों का इस्तेमाल ज्यादा करती हैं। साल 2013-14 में इन ओसी पिल्स का इस्तेमाल 10 फीसदी था जो साल 2019-20 में 45 फीसदी तक पहुंच गया लेकिन 2020-21 में ये 30 फीसदी पर आ गया। परिवार नियोजन कार्यक्रम पर सरकार बड़ा फंड खर्च करती है। पिछले पांच सालों में इस कार्यक्रम पर करीब 1200 करोड़ का आवंटन हो चुका है जिनमें से 967 करोड़ रुपए खर्च भी किए जा चुके हैं। ये आंकड़ा इस ओर भी इशारा करता है कि परिवार नियोजन के कार्यक्रमों के लिए अभी और फोकस्ड होकर काम करना होगा। लोगों के बीच जागरुकता कार्यक्रम को प्रभावी और मजबूत करने की भी जरुरत है। स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी कहते हैं कि परिवार नियोजन जबरिया नहीं स्वेच्छा से किया जाता है। इसके लिए जनजागरुकता बहुत जरुरी है। हम लगातार लोगों को जागरुक कर रहे हैं।

जनसंख्या विस्फोट का दुष्प्रभाव
देश की वास्तविक समस्या क्या है? गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं, सुरक्षा अभाव, बिजली, पानी, सडक़, अपराध, घूसखोरी, जमाखोरी, महिला अपराध, रूढि़वादिता, धर्मवाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद, दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, बलात्कार, नशाखोरी, प्रदूषण, सरकारी कामकाज, जहरीली हवा, दूषित पानी, ध्वनि प्रदूषण शहरीकरण, मॉब-लिंचिंग, किसान आत्महत्या, कृषि समस्याएं, अर्थव्यवस्था, औसत आय में कमी, यातायात सुविधाओं का अभाव, सार्वजनिक क्षेत्रों का निजीकरण, सेवा समाप्ति या कुछ और? पर देश की प्रमुख समस्याओं की तह में जाकर उनके होने के कारणों की विवेचना करने पर सभी समस्याओं का मूल कारण बढ़ती जनसंख्या ही मिलेगा। आंकड़ों के आधार पर भारत की जनसंख्या विश्व में दूसरे स्थान पर है, पहले स्थान पर चीन है। जबकि सच्चाई यह है कि हमारी जनसंख्या चीन से भी अधिक हो चुकी है। वैश्विक कुल आबादी का लगभग 18 प्रतिशत हिस्सा भारत का है जबकि वैश्विक स्तर का भारत में मात्र 4 प्रतिशत पानी पीने योग्य है। बेरोजगारी दर 9 प्रतिशत के करीब है। विश्व में, जनसंख्या घनत्व (407.7/2) में हमारा स्थान 33वां, प्रजनन दर में 103वां, प्रवासी के रूप में काम करने में पहला स्थान है। अपेक्षित जीवन में हमारा स्थान 130वां, शिशु मृत्युदर में 116वां, सिगरेट की खपत में 12वां, शराब की खपत में 76वां, भुखमरी में 102वां, आत्महत्या में 19वां, स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च में 141वां, ह्यूमन कैपिटल इंडैक्स में 115वां, साक्षरता में 168वां, वल्र्ड हैप्पीनैस रिपोर्ट में 140वां, ह्यूमन डिवैल्पमैंट इंडैक्स में 129वां स्थान है। सामाजिक प्रोग्रैस इंडैक्स में 53वां, होमलैस पापुलेशन में 8वां, बंदूक के स्वामित्व के मामले में दूसरा, लिंग असमानता सूचकांक में 76वां, जानबूझकर हत्या करने के मामले में दूसरा, वैश्विक गुलामी सूचकांक में चौथा, जीडीपी ग्रोथ रेट में 9वां, प्रति व्यक्ति जीडीपी में 122वां, आयात में 11वां, निर्यात में 18वां, विदेशी निवेश प्राप्त करने में 19वां, अरबपतियों की संख्या में तीसरा, न्यूनतम मजदूरी में 64वां, रोजगार दर में 42वां, क्वालिटी ऑफ लाइफ में 43वां, वैश्विक नवाचार में 52वां, इंटरनेट प्रयोग में 141वां, पुरुषों के फुटबॉल के खेल में 104वां, ओलिम्पिक गोल्ड मैडल में 48वां, फिल्म निर्माण में पहला, भ्रष्टाचार में 78वां, डैमोक्रेसी इंडैक्स में 42वां, नोबेल पुरस्कार में 24वां, हवा की गुणवत्ता में 84वां, वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक में 14वां स्थान है। आंकड़ों की आपसी विषमता, यहां तक कि जमीनी आवश्यकताओं की पूॢत में आज भी संघर्षरत एवं सामाजिक, आॢथक मुद्दों पर पिछड़ेपन की मुख्य वजह जनसंख्या विस्फोट का होना है। किसी भी देश के लिए जनसंख्या का महत्व तभी है जबकि उनके लिए जमीनी आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध हों और उन्हें सही मार्ग में प्रेरित कर उत्पादक कार्य करवाया जा सके जिससे देश के विकास के साथ-साथ उनकी स्वयं की जीवनशैली भी बेहतर हो सके। परन्तु भारत में इसका व्यापक अभाव दिख रहा है।

मप्र में जनसंख्या घनत्व
सेंटर फॉर एडवोकेसी एवं सृजन फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार जनसंख्या बढऩे के साथ ही प्रदेश में जनसंख्या घनत्व भी बढ़ा है। जनसंख्या घनत्व से आश्य है कि एक वर्ग किमी क्षेत्र में व्यक्तियों की संख्या। मप्र में यह घनत्व 236 है जो कि राष्ट्रीय स्तर के जनसंख्या घनत्व 382 से कम है। गत दशक प्रदेश का जनसंख्या घनत्व 196 था अर्थात इसमें 40 व्यक्तियों की बढ़ोतरी हुई है। सर्वाधिक घनत्व मैदानी भागों में है। घनत्व का वितरण असमान है। विशेषकर पहाड़ी एवं जनजातीय क्षेत्रों में विरल आबादी है। राज्य के 5 जिलों भोपाल, इंदौर, जबलपुर, मुरैना और ग्वालियर का घनत्व देश से अधिक है। राज्य के 19 जिलों का घनत्व राज्य के औसत घनत्व से अधिक है। पूर्वी मप्र्र में जनसंख्या घनत्व विरल है जबकि पश्चिमी मप्र्र में जनसंख्या घनत्व अधिक है।
प्रदेश में सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व भोपाल का है, यहां एक वर्ग किमी में 855 व्यक्ति रहते हैं। वहीं सबसे कम जनसंख्या घनत्व डिंडोरी का है, यहां एक वर्ग किमी में मात्र 94 व्यक्ति रहते हैं। मप्र्र की सर्वाधिक जनसंख्या ग्रामीण (72.4 प्रतिशत) है, जो राष्ट्रीय औसत (68.8) से अधिक है। पिछले दशक की तुलना में नगरीय जनसंख्या में लगभग 1.10 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई। नगरीय जनसंख्या में राज्य का देश में 8वां स्थान है। मप्र्र की कुल नगरीय जनसंख्या 27.6 प्रतिशत है। वहीं नगरीय-ग्रामीण जनसंख्या का अनुपात 72.28 (राष्ट्रीय औसत 69.31) है। सर्वाधिक ग्रामीण जनसंख्या वाला जिला रीवा (19.70 लाख) है। सर्वाधिक नगरीय जनसंख्या वाला जिला इंदौर (24.24 लाख) है। सर्वाधिक नगरीय जनसंख्या प्रतिशत भोपाल (80.9 प्रतिशत) है।

सशक्त जनसंख्या नीति की आवश्यकता
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी 121 करोड़ थी तथा अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्तमान में यह 130 करोड़ को भी पार कर चुकी है। साथ ही वर्ष 2030 तक भारत की आबादी चीन से भी ज्यादा होने का अनुमान है। ऐसे में भारत के समक्ष तेजी से बढ़ती जनसंख्या एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि जनसंख्या के अनुपात में संसाधन सीमित हैं। इस स्थिति में जनसांख्यिकीय लाभांश जनसांख्यिकीय अभिशाप में बदलता जा रहा है। जनसंख्या वृद्धि ने कई चुनौतियों को जन्म दिया है, जिसमें राष्ट्रीय संसाधनों पर अत्यधिक दबाव बढ़ा है। बढ़ी हुई आबादी में एक हिस्सा रोटी और रोजगार के सीमित अवसरों में अपराध के मार्ग को चुना, तो प्रशासन को भी लॉ एंड ऑर्डर स्थापना में चुनौती पेश हुई है। राष्ट्र की आय का बड़ा हिस्सा लोककल्याणकारी योजनाओं में खर्च हुआ है। इसके बावजूद पर्याप्त सुधार नजर नहीं आ रहे हैं। स्वतंत्र भारत में सबसे पहला जनसंख्या नियंत्रण के लिए राजकीय अभियान वर्ष 1951 में आरंभ किया गया, किंतु इससे सफलता नहीं मिल सकी। इंदिरा गांधी सरकार ने वर्ष 1975 के आपातकाल के दौरान बड़े स्तर पर जनसंख्या नियंत्रण के प्रयास किए। इस अभियान में खामियों के कारण इसका विरोध हुआ। जनसंख्या नियंत्रण के लिए भारत में एक मजबूत कानून आवश्यक हो गया है। इसके तहत 2 से अधिक संतान की स्थिति में सरकारी नौकरी में निर्योग्यता तय हो। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में बदलाव कर 2 से अधिक संतान वाले उम्मीदवारों की चुनाव लडऩे में निर्योग्यता तय हो। लोककल्याणकारी योजनाओं में 2 से अधिक संतान वाले दंपती को जीवन निर्वाह की आवश्यक योजनाओं के अतिरिक्त योजनाओं के लाभ से वंचित किया जए। शिक्षा व जन-जागरूकता अभियान के तहत लोगों को अधिकाधिक जागरूक करने पर जोर दिया जाना। गरीबी ही सभी समस्याओं की जड़ होती है, लिहाजा गरीबी उन्मूलन पर ध्यान दिया जाए। परिवार नियोजन अपनाने वाले लोगों को आर्थिक-सामाजिक संबल व प्रोत्साहन देने वाली स्कीम लाई जाए।

जीवन स्तर में सुधार पर ध्यान दिया जाए
जानकारों का कहना है कि परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाकर तथा उनके जीवन स्तर को ऊंचा उठाकर जनसंख्या वृद्धि को कम किया जा सकता है। ऐसा देखा गया है कि उच्च जीवन स्तर वाले लोग छोटे परिवार को प्राथमिकता देते हैं। यदि विवाह की आयु में वृद्धि की जाए, तो जन्म दर को नियंत्रित किया जा सकता है। महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार तथा उन्हें निर्णय प्रक्रिया में शामिल किया जाए। सरकार को दो बच्चों का कानून लागू करना चाहिए तथा दत्तक ग्रहण को भी बढ़ावा देना चाहिए। किसी भी सरकार का यह दायित्व है कि वह अपनी जनता को प्रर्याप्त आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराए। प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता सीमित है, लेकिन जनसंख्या बेतहाशा बढ़ती जा रही है। अगर जनसंख्या में वृद्धि इसी प्रकार से होती रही, तो वह दिन दूर नहीं है कि हमारे लिए जरूरी चीजों का भी टोटा हो जाएगा। इस स्थिति को देखते हुए सरकार का यह दायित्व है कि वह जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए। इसके लिए सरकार को एक प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून के साथ ही शिक्षा को बढ़ावा देना होगा। जागरूकता बढ़ाने के लिए लगातार विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आवश्यक हैं, जिससे नागरिक स्वत: प्रेरित होकर इसमें सहयोग करें।

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