सीमा पर साहस और समाज में संवेदना

  • शौर्य के उत्सव और जिम्मेदारी को याद दिलाने वाला दिन, सशस्त्र सेना झंडा दिवस आज

प्रवीण कक्कड़
हर वर्ष 7 दिसंबर को भारत ‘सशस्त्र सेना झंडा दिवस’ मनाता है। एक ऐसा गौरवपूर्ण अवसर जब राष्ट्र अपने वीर सेनानायकों को नमन करता है। यह दिन केवल कैलेंडर की तारीख नहीं, बल्कि देश के धडक़ते दिल का वह पल है, जिसमें हम उन सैनिकों, वायुयोद्धाओं और नौसैनिकों के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, जिन्होंने हमारे आज की रक्षा के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।
जब लाल, गहरा नीला और हल्का नीला रंग वाला प्रतीक-झंडा देशभर में दिखाई देता है, तो वह महज़ तीन रंग नहीं होता। वह हमारी श्रद्धा, हमारे सम्मान और राष्ट्रीय कर्तव्य का मौन संदेश होता है – मानो कह रहा हो: हम अपने रक्षकों को कभी नहीं भूलेंगे।
सशस्त्र सेना झंडा दिवस केवल एक औपचारिकता नहीं, यह वह अवसर है जब पूरा देश अपने सैनिकों के अद्वितीय शौर्य, सर्वोच्च त्याग और सतत सेवा को नमन करता है। यह दिन हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के कवच का सम्मान है और उस कवच की देखभाल का हमारा दायित्व भी।
इतिहास की आधारशिला – एक राष्ट्रीय संकल्प
इस दिवस की नींव स्वतंत्रता प्राप्ति के शुरुआती वर्षों में रखी गई। 28 अगस्त 1949 को रक्षा मंत्री की अध्यक्षता में बनी समिति ने अनुभव किया कि जो वीर राष्ट्र-रक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं, उनके और उनके परिवारों के लिए स्थायी जीवन-सहायता और सम्मानजनक व्यवस्था बनाना राष्ट्र का नैतिक कर्तव्य है। इसी संकल्प के साथ तय हुआ कि 7 दिसंबर को प्रतिवर्ष Armed Forces Flag Day मनाया जाएगा। तब से यह दिवस सम्मान, सहयोग और राष्ट्रीय एकता का जीवंत प्रतीक बन चुका है।
सम्मान से आगे, जिम्मेदारी तक
झंडा दिवस केवल भावनात्मक अभिव्यक्ति नहीं, यह ठोस राष्ट्र निर्माण का काम है, जो तीन मुख्य आधारों पर आधारित है—
1) वित्तीय सहयोग- युद्ध में घायल या दिव्यांग सैनिकों और उनके परिवारों की सहायता।
2) कल्याण- सेवारत सैनिकों, उनके आश्रितों और पूर्व सैनिकों की चिकित्सा, शिक्षा और जीवन सुरक्षा।
3) पुनर्वास- सेवानिवृत्त सैनिकों और वीरगति प्राप्त परिवारों के सम्मानपूर्ण पुनर्वास का मार्ग।
झंडों, बैज, स्टिकर्स और कार-फ्लैग से प्राप्त राशि केंद्रीय सैनिक बोर्ड व राज्य सैनिक बोर्डों के माध्यम से सीधे इन कार्यों में लगाई जाती है।
राष्ट्रव्यापी सहभागिता- एक संवेदना, एक संकल्प
यह दिन सक्रिय भागीदारी का उत्सव है। शहर से लेकर गांव तक झंडे-बैज वितरित होते हैं। हर नागरिक से यथाशक्ति दान लिया जाता है। स्कूल, कॉलेज, संस्थान कार्यक्रम आयोजित करते हैं। समाज सैनिक परिवारों तक पहुँचता है और उनका मान बढ़ता है। यह लेन-देन मात्र आर्थिक नहीं – भावनात्मक और नैतिक संबंध का सूत्र है।
सेना और नागरिक – भरोसे का अटूट बंधन
जब कोई नागरिक झंडा खरीदता है, तो वह केवल पैसा नहीं देता।
वह एक वचन देता है –  जब सैनिक सीमा पर खड़ा है, तब हम उसके परिवार के साथ खड़े हैं।
यह दिवस हमें याद दिलाता है – स्वतंत्रता सस्ती नहीं होती। उसकी कीमत सैनिक चुकाते हैं, और उस त्याग का सम्मान हम सबका धर्म है।
सम्मान के साथ जवाबदेही – हमारा नागरिक धर्म
हम अक्सर अपने सैनिकों पर गर्व करते हैं, पर झंडा दिवस हमें सिखाता है देशभक्ति केवल गर्व नहीं, यह जिम्मेदारी भी है। हमारा छोटा सहयोग किसी सैनिक की बेटी की शिक्षा बन सकता है। किसी दिव्यांग सैनिक की स्वाभिमान की रोशनी बन सकता है। किसी परिवार के जीवन में सम्मान का सहारा बन सकता है। यह केवल सहायता नहीं- राष्ट्र-निर्माण की सनातन परंपरा है।
एक दिन नहीं, जीवन भर का संकल्प
यह दिवस हमें प्रतिज्ञा देता है कि हम अपने सैनिकों को कभी नहीं भूलेंगे। शहीद परिवारों के प्रति संवेदना को धर्म मानेंगे। पूर्व सैनिकों के सम्मान में सक्रिय रहेंगे। बच्चों और युवाओं को सैनिक प्रेरणा देंगे। क्योंकि राष्ट्र की रक्षा केवल सीमा पर नहीं होती – वह हमारे समाज, व्यवहार और कृतज्ञता में भी होती है।
हम सब सिपाही हैं अलग-अलग मोर्चों पर
सीमा पर खड़ा जवान हमारे देश की भौतिक ढाल है, और हम समाज में रहकर उसकी नैतिक ढाल बनते हैं। जवान सीमा पर, और हम समाज में – दोनों मिलकर राष्ट्र की अजेय ढाल हैं।
एक सामूहिक प्रतिज्ञा
इस Armed Forces Flag Day पर आइए संकल्प लें— सैनिकों व उनके परिवारों की सेवा को अपना राष्ट्र-धर्म मानेंगे। जागरूकता फैलाएंगे, हर वर्ष सम्मान-दान करेंगे, हर दिन कृतज्ञता का भाव रखेंगे। क्योंकि 7 दिसंबर केवल तिथि नहीं – यह सैनिकों की गरिमा और हमारे राष्ट्रीय चरित्र का प्रतीक है।
जय जवान, जय हिंद
(लेखक पूर्व पुलिस अधिकारी हैं)

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