- कई विभागों में तबादलों का आंकड़ा 2 फीसदी में ही सिमटा
- गौरव चौहान

मप्र में तबादलों की समय-सीमा समाप्त होने के बाद अब मंत्रियों और अफसरों के बीच का विवाद सामने आने लगा है। दरअसल, कई विभागों में तबादला मंत्री-अफसरों के बीच उलझकर रह गया है। प्रदेश सरकार ने इस बार 47 दिन तक तबादलों से प्रतिबंध हटाया था। इस अवधि में ज्यादातर विभागों ने सूचियां जारी कर दीं, लेकिन कुछ विभाग आखिरी समय तक सूची जारी करने की जद्दोजहद करते रहे। इस वजह से मंत्री और विभागीय अधिकारियों के बीच तकरार की स्थिति भी बनी। तबादलों की लिस्ट से मंत्रियों के अलावा विधायक और कर्मचारी भी नाराज दिख रहे हैं। कई विभागों में तबादलों का आंकड़ा 2 फीसदी तक ही रहा है। तबादलों को लेकर मंत्री और अधिकारियों के बीच टकराव की स्थिति तब सामने आई जब 17 जून को कैबिनेट में मंत्रियों ने मुख्यमंत्री के सामने कहा कि अधिकारी मनमर्जी से तबादला कर रहे हैं। हालांकि कैबिनेट में इस बात को आगे नहीं बढ़ाया गया। इसके बाद सामने आया कि जो मंत्री तबादलों को लेकर अधिकारियों पर अनसुनी का आरोप लगा रहे हैं, वे पहले ही सूची जारी करवा चुके हैं, लेकिन वे ऐसे अधिकारियों का भी तबादला करवाना चाहते हैं, जो दागी हैं।
प्रदेश में तबादलों से बैन हटने के बाद 1 मई से 30 मई तक तबादले किए जाने के आदेश हुए थे। इसके बाद तबादलों की तारीख 17 जून तक बढ़ाई गई। अब तबादलों की समय सीमा खत्म हो गई। इसके बाद मंत्रियों और विभागीय अफसरों के बीच की तनातनी सामने आने लगी है। है। कुछ मंत्रियों ने तो मुख्यमंत्री तक को शिकायत कर दी है कि तबादलों में अफसरों ने उनकी बात को अनसुना किया है। तबादलों की लिस्ट से मंत्रियों के अलावा विधायक और कर्मचारी भी नाराज दिख रहे हैं। कई विभागों में तबादलों का आंकड़ा 2 फीसदी तक ही रहा है। तबादला आदेश जारी करने के दौरान अफसरों ने यह कहकर मंत्री के यहां से आए नाम रिजेक्ट कर दिए कि तीन फॉर्मूले में फिट नहीं बैठते। ये फार्मूले पारस्परिक तबादला, गंभीर बीमारी कैंसर या ब्रेन ट्यूमर तथा तीसरा महिला का अपने परिवार से दूर पदस्थ होना बताया गया। इसके चलते मंत्रियों के यहां से आए तबादले नहीं किए गए। वहीं दूसरी ओर आजीविका मिशन, आरईएस, पंचायत राज समेत अन्य विभागाध्यक्ष कार्यालयों में इस फॉर्मूले को अनदेखा कर तबादले हुए। अफसरों की मनमानी के चलते तबादले की तारीख खत्म होने के बाद भी तबादलों के आदेश जारी होते रहे। तबादलों की इस प्रक्रिया से नाजरा होकर स्वास्थ्य मंत्री ने तो तबादलों से किनारा ही कर लिया था। उन्होंने अपने बंगले पर तबादलों के संबंध में संपर्क नहीं करने का नोटिस चस्पा करा दिया था। उनके यहां अधिकांश मामलों में तबादलों से संबंधित आवेदन ही उनके स्टाफ ने नहीं लिए।
कई जरुरत के तबादले भी नहीं कर पाए
मप्र में तबादलों से छूट की अवधि बढऩे के बाद भी प्रदेश के कई सरकारी विभागों में तबादला सूचियां जारी ही नहीं हो पाई और कई विभाग जरुरत के अनुसार तबादले नहीं कर पाए। कई विभागों में मंत्रियों और अफसरों के बीच समन्वय न होंने से तबादले नहीं हो पाए और कई मंत्रियों की यह शिकायत भी रही कि उन्हें पर्याप्त समय नहीं मिल पाया इसलिए तबादले नहीं हो पाए। कुछ मंत्रियों की मांग पर भी तबादले से छूट की अवधि चौथी बार नही बढ़ी। राज्य सरकार ने कैबिनेट से तबादला पॉलिसी को मंजूरी देते हुए पहले एक माह के लिए तबादलों से छूट प्रदान की थी इसके बाद मंत्रियों की मांग पर एक बार फिर इस अवधि में इजाफा किया। लेकिन कई मंत्रियों और अफसरों में तालमेल न हो पाने से समय पर सूची जारी नहीं हो पाई तो कहीं देरी से तबादलों पर काम शुरु होने के कारण विभागों के अधिकारियों को पर्याप्त समय नहीं मिल पाया। इस बीच प्रधानमंत्री के आगमन और भाजपा के प्रशिक्षण वर्ग में मंत्रियों की व्यस्तता के चलते उनके अनुमोदन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई। जिसके कारण तबादला सूचियां फाइनल होंने में देरी हुई और कई विभागों में प्रक्रिया पूरी न होने के कारण तबादला सूचियां तैयार तो हुई लेकिन जारी नहीं हो पाई।
गंभीर बीमार कर्मचारियों के भी तबादले नहीं हो पाए
हैरत की बात यह है कि अधिकारियों की मनमानी से गंभीर बीमार कर्मचारियों के भी तबादले नहीं हो पाए। दरअसल अधिकारियों ने सिर्फ कैंसर को ही गंभीर बीमारी माना। हार्ट के मरीज, चलने में असमर्थ और कई तरह की गंभीर बीमारियों से पीडित मरीजों को उनकी मनचाही जगह पर तबादला नहीं मिला। इसके अलावा पति-पत्नी को एक ही जगह स्थानांतरण करने के कई मामले में भी अनसुलझे रह गए। सूत्रों की माने तो राजस्व विभाग में दस प्रतिशत तबादले किए जाने थे, लेकिन विभाग के अफसरों ने तय क्राइटएरिया का हवाला देते हुए मंत्री करन सिंह वर्मा की ही कई सिफारिशों को अनदेखा कर दिया। मंत्री ने जो सूची भेजी, उसमें भारी काट-छांट करते हुए नाम मात्र के तबादले किए गए। बताया जाता है कि राजस्व विभाग में तहसीलदार, प्रभारी तहसीलदार और नायब तहसीलदार, प्रभारी नायब तहसीलदार, पटवारी के सिर्फ ढाई प्रतिशत ही तबादले किए गए हैं। तबादले को लेकर सबसे अधिक तवज्जो सरकार ने स्कूल महकमे को दी। इसी महकमे के कारण दूसरे विभागों को सात दिन का समय तबादलों के लिए मिल गया था। इस विभाग के लिए सरकार ने अलग से तबादला नीति जारी की थी, जिसके बाद तबादलों की तारीख 17 जून तक तक बढ़ाई गई थी, लेकिन यह विभाग आखिरी तारीख खत्म होने के बाद भी तबादलों की सूची जारी नही कर पाया। इस विभाग में जितने तबादले होने थे, नहीं हो पाए। बाद में अधिकारियों ने पोर्टल में दिक्कत होने का बहाना बनाकर पल्ला झाड़ लिया। अब अधिकारी तबादलों की तारीख फिर से बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। हालांकि अब तक इसको लेकर सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया है। सूत्रों के मुताबिक ऊर्जा विभाग में भी तबादलों को लेकर आखिरी तक घमासान चलता रहा। इस विभाग में मंत्री के बताए हुए नामों को अफसरों ने गंभीरता से नही लिया। कुछ अन्य विभागों में भी तबादलों को लेकर विधायकों की सिफारिशे अफसरों ने दरकिनार कर दी। इसकी शिकायत उन्होंने मुख्यमंत्री से की है।