दागदारों के हाथ में भोपाल-इंदौर का स्वास्थ्य

स्वास्थ्य
  • दोनों नवनियुक्त सीएमएचओ पर आर्थिक अनियमितता के आरोप

    भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र सरकार ने गत दिनों स्वास्थ्य विभाग में बड़ा फेरबदल करते हुए कई जिलों के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएमएचओ) सहित कुल 41 चिकित्सकों, विशेषज्ञों और प्रशासनिक अधिकारियों का तबादला कर दिया है। ये तबादले सामान्य प्रशासन विभाग की तबादला नीति वर्ष 2025 के तहत किए गए हैं। इन्हें प्रशासनिक कार्य सुविधा की दृष्टि से तत्काल प्रभाव से लागू किया गया है। जिसके अनुसार, भोपाल का नया सीएमएचओ डॉ. मनीष शर्मा को बनाया गया है। वे अब तक ग्वालियर में प्रभारी उप संचालक, कार्यालय क्षेत्रीय संचालक के पद पर पदस्थ थे। वहीं इंदौर का प्रभार डॉ. माधव हसानी को दिया गया है। इन दोनों पर आर्थिक अनियमितता के आरोप हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिरकार सरकार ने प्रदेश के दोनों प्रमुख जिलों में दागियों के हाथ में स्वास्थ्य की कमान क्यों सौंपी है। जानकारी के अनुसार, प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग को स्वच्छ छवि वाले वरिष्ठ चिकित्सक नहीं मिल रहे। राजधानी भोपाल और दूसरे बड़े शहर इंदौर में ऐसे चिकित्सकों को सीएमएचओ बना दिया गया है जिनकी छवि ठीक नहीं है। प्रदेश के सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण इन दोनों जिलों में आर्थिक अनियमितताओं में लिप्त पाए गए अधिकारियों की नियुक्ति पूरी प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर रही है। इसी तरह अन्य जिलों में भी अधिकतर प्रभार उन्हीं को दिया गया है, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। उल्लेखनीय है कि गत 7 जून को लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग ने 13 जिलों में प्रभारी सीएमएचओ बनाए हैं। जिसमें भोपाल का प्रभार डॉ. मनीष शर्मा को दिया गया है, ग्वालियर में भी सीएमएचओ रह चुके डॉ. शर्मा क्षय रोग विशेषज्ञ हैं। उनके विरुद्ध ईओडब्ल्यू में जांच जारी है। जबकि इंदौर का प्रभार डॉ. माधव हसानी को दिया गया है। इन पर लोकायुक्त में शिकायत दर्ज हो चुकी है। इनके प्रमोशन पर हमेशा सवाल खड़े होते रहे हैं। तमाम शिकायतें हुई हैं, जांच भी जारी है। आर्थिक अनियमितताओं को लेकर जांच के अधीन इन दोनों अधिकारियों को प्रदेश की राजधानी और आर्थिक राजधानी में सीएमएचओ जैसा महत्वपूर्ण प्रभार देना विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की मंशा पर भी सवाल खड़े कर रहा है।
    दोनों अफसरों पर गंभीर आरोप
    भोपाल और इंदौर में सीएमएचओ की नियुक्ति विवादों में फंसती आ रही है। इसकी बड़ी वजह यह है कि दोनों अफसरों पर गंभीर आरोप लगे हैं। भोपाल के वर्तमान एवं ग्वालियर के तत्कालीन म मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मनीष शर्मा पर ईओडब्ल्यू में 11 मार्च 22 की प्रकरण क्रमांक 872/2022 दर्ज हुआ है। यह प्रकरण शिकायत क्रमांक 401/2022 के आधार पर दर्ज हुआ। लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग ने 7 जुलाई को कार्रवाई के लिए पत्र लिखा गया जो संचालनालय स्वास्थ्य सेवाएं के यहां आवक क्रमांक 1819 पर दर्ज है। वर्तमान में जांच जारी है। इंदौर में सिविल सर्जन के पद पर रहते हुए डॉ. माधव हसानी के विरुद्ध 21 मई 2016 को हुई शिकायत के बाद 16 जून 2016 को लोकायुक्त ने पत्र जारी किया था। फर्जी बिल बनाने के मामले में 26 मई 2020 को लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग ने शासकीय राशि के गबन में वित्तीय हानि की आधी राशि करीब 30 हजार 100 रुपए वसूली अधिरोपित की गई। लोकायुक्त की जांच में मामला सही निकलने पर डॉ. हसानी पर वसूली के साथ ही असंचयी प्रभाव वसे से एक वेतनवृद्धि रोकने का दंड लगाया गया। विभाग ने हानि की वसूली करके जवाब लिया और दोषमुक्त कर दिया। 20 नवंबर 2024 को इंदौर में ही उप संचालक के पद पर पदस्थापना के दौरान लोकायुक्त में प्रकरण विचाराधीन होने के कारण शिकायत एवं अन्य वित्तीय प्रभार से मुक्त करने का आदेश क्षेत्रीय संचालक डॉ. शाजी जोसेफ ने जारी किया।
    वरिष्ठ चिकित्सकों में नाराजगी
    भोपाल और इंदौर में सीएमएचओ के पर की गई नियुक्तियों को लेकर वरिष्ठ चिकित्सकों में भी नाराजगी है। नाम न छापने की शर्त पर प्रदेश के दो वरिष्ठ चिकित्कों ने बताया कि स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग में एमएमआर और आईएमआर को दरकिनार कर दिया गया है। किसी भी दोषी अधिकारी पर पूर्व से प्रकरण प्रचलित होने पर सीएमएचओ जैसे महत्वपूर्ण पद सहित अन्य पदों पर पदस्थ न करने का नियम है, लेकिन यह नियम विभाग के अधिकारियों ने नजर अंदाज कर दिया। सात जून को जारी हुई लिस्ट में से जिन्हें सीएमएचओ बनाया गया है, वे न तो कैडर में पदोन्नत हैं और न ही सीनियर हैं। 90 प्रतिशत जूनियर चिकित्सकों को क्षेत्रीय संचालक, सीएमएचओ, सिविल सर्जन जैसे महत्वपूर्ण पदों का प्रभार दिया गया है। मप्र स्वास्थ्य कर्मचारी संघ के जिलाध्यक्ष शेखर जोशी का कहना है कि हमने विभाग से मांग की है कि डॉ. हसानी पर लगे आरोप में जिस तरह से छूट दी गई है, वह अगर नियम में आता है तो गबन या आर्थिक अनियमितताओं में विचाराधीन अन्य कर्मियों को भी इसका लाभ मिलना चाहिए। लेकिन अगर यह छूट गलत है तो डॉ. हसानी हो या अन्य कोई और उनको दण्डित किया जाना चाहिए।

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