मनोरंजन के नाम पर… उड़ाया भद्दा मजाक

  • सम सामयिकता के नाम पर पीएम मोदी की उड़ाई गई  खिल्ली
  • गौरव चौहान
भद्दा मजाक

कलाकार, कवि अक्सर सरकार, नेता, अफसर, सरकारी व्यवस्था पर कटाक्ष करते रहते हैं, लेकिन किसी सरकारी संस्था द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मनोरंजन के नाम पर प्रधानमंत्री और संवेदनशील मामलों का भद्दा मजाक उड़ाना चिंता का विषय है। दरअसल, केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय एवं मप्र संस्कृति संचालनालय के सहयोग से आयोजित 21 वे रंग आलाप महोत्सव में ऑपरेशन सिंदूर को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की गई। परोक्ष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राओं को भी निशाना बनाया गया। यही नहीं बाबा रामदेव की भी खिल्ली उड़ाई गई।
दरअसल, रविन्द्र भवन में 4 जून से रंग आलाप महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। हम थियेटर द्वारा केंद्र एवं मप्र सरकार के सहयोग से आयोजित इस पांच दिवसीय आयोजन में बीते दिन 11 वीं सदी में लिखे गए हास्य चूड़ामणि नाटक का मंचन किया गया। विहान ड्रामा वर्कस द्वारा प्रस्तुत इस ऐतिहासिक नाटक के मंचन में सम सामयिक सन्दर्भ के नाम पर प्रधानमंत्री की विदेशी यात्राओं पर आपत्तिजनक टिपण्णी की गई। यात्राओं को सैर सपाटा बताकर मजाक उड़ाया गया। काले धन को लेकर कहा गया कि कुछ बाबाओं के पास सुरक्षित है नाटक के जरिये बाबा रामदेव की बायीं आंख को आधार बनाकर भगवा धारी बाबाओं को लेकर वामपंथी नैरेटिव को आगे बढ़ाया गया। बाबा की आंख को बार-बार दबाकर अभिनेता कहता है कि चलो अब बाबांजली टूथपेस्ट बनाते हैं। च्यवनप्राश बनाते हैं। अच्छे दिन के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक नारे की भी सम सामयिकता के नाम पर खिल्ली उड़ाई गई। इस नाटक में हेमंत देवलेकर एवं श्वेता केतकर ने अभिनय किया।
विषयवस्तु को लेकर आपत्ति
बेशक क्लासिकल रचनाओं को वर्तमान सन्दर्भ में सामाजिक संदेश के लिए उपयोग किया जाना कला का धर्म है, लेकिन रविन्द्र भवन में चल रहे इस आयोजन में जिस तरह से राजनीतिक मामलों को एक वर्ग विशेष की वैचारिकी के साथ प्रस्तुत किया गया है वह महत्वपूर्ण है। हास्य चूड़ामणि एक बेहतरीन सामाजिक संदेश देने वाली रचना है लेकिन आयोजकों ने करीब 20 मिनिट का शो इसके साथ केवल राजनीतिक उपहास के लिए जोड़ा। आयोजकों के दुस्साहस का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नाटक में ऑपरेशन सिंदूर को भी निशाना बनाया गया। बार बार कहा गया आओ सिंदूर ले आओ। यह कला की आड़ में बेहद ही गैर जिम्मेदाराना रवैया था। भोपाल के संस्कृतिकर्मी राकेश सेन ने इस आयोजन की विषयवस्तु को लेकर आपत्ति दर्ज कराई है। उनका कहना है कि पुराने नाटक या अन्य साहित्य को समसामयिकता के नाम पर विकृत करके प्रस्तुत किया जाना गलत है। कल यही काम रामायण और महाभारत के साथ भी किया जा सकता है। सामाजिक हास्य के जरिये समाज में संदेश दिया जाना गलत नही लेकिन राजनीतिक एजेंडा साधना गलत है।

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