- इसी माह से शुरू होनी थी प्रक्रिया
- गौरव चौहान

मप्र में प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के चुनाव पिछले 12 वर्षों से लंबित हैं। अब एक बार फिर इन चुनावों को टाल दिया गया है। सरकार ने समितियों के पुनर्गठन की प्रक्रिया का हवाला देकर चुनावी प्रक्रिया को आगे बढ़ा दिया है। सहकारिता विभाग की योजना अनुसार, हर पंचायत में एक नई साख सहकारी समिति गठित की जानी है। राज्य में परीक्षण के बाद करीब 650 नई समितियां बनाए जाने का निर्णय लिया गया है, लेकिन अब तक सिर्फ 189 समितियों का गठन ही पूरा हुआ है।
प्रदेश की 4,500 से अधिक सहकारी समितियों के चुनाव अंतिम बार 2013 में कटाए गए थे, जिनका कार्यकाल 2018 में समाप्त हो गया। नियमानुसार चुनाव प्रक्रिया कार्यकाल समाप्त होने से छह महीने पूर्व शुरु हो जानी चाहिए थी, लेकिन राजनीतिक कारणों, विधानसभा चुनाव, और किसान कर्जमाफी जैसी वजहों से चुनाव बार-बार टलते रहे। इस मुद्दे पर जबलपुर और ग्वालियर हाई कोर्ट की खंडपीठों में याचिकाएं दाखिल हुई, जिसके बाद राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण ने मई से सितंबर 2025 के बीच चुनाव कराने का कार्यक्रम घोषित किया था। लेकिन अब सरकार फिर से अदालत पहुंची और नई समितियों के गठन की अधूरी प्रक्रिया का हवाला देते हुए चुनाव टालने की अनुमति मांगी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
नई समितियों के गठन का हवाला
दरअसल, सहकारिता मंत्रालय ने प्रत्येक पंचायत स्तर पर एक साख सहकारी समिति गठित करने के लिए कहा है। प्रदेश में परीक्षण करने के बाद लगभग साढ़े छह सौ समितियां बनाने का निर्णय हुआ है। इनमें से अभी मात्र 189 समितियां गठित करने की प्रक्रिया पूरी हुई है। इसे देखते हुए चुनाव टाल दिए गए। उधर, कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकार समितियों की कमान किसानों के हाथों में सौंपना ही नहीं चाहती है, इसलिए किसी न किसी बहाने से बार-बार चुनाव टाले जा रहे हैं। प्रदेश की साढ़े चार हजार प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के चुनाव आखिरी बार 2013 में हुए थे, जिनका कार्यकाल 2018 में समाप्त हुआ। नियमानुसार छह माह पहले चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जानी चाहिए थी, लेकिन विधानसभा चुनाव, किसान कर्ज माफी और अन्य कारणों से चुनाव प्रक्रिया लगातार टलती रही। चुनाव नहीं होने के कारण हाई कोर्ट की जबलपुर व ग्वालियर खंडपीठ में कई याचिकाएं दायर हुईं।
घोषित हुआ था चुनाव कार्यक्रम
महाधिवक्ता कार्यालय के सुझाव पर राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी ने मई से सितंबर 2025 के बीच चुनाव का कार्यक्रम घोषित किया। यह प्रक्रिया प्रारंभ हो पाती इसके पहले सरकार फिर हाई कोर्ट पहुंच गई और चुनाव आगे बढ़ाने की अनुमति मांगी। इसका आधार सहकारिता मंत्रालय के नई समितियों के गठन के दिशानिर्देश पर प्रचलित प्रक्रिया को बनाया। हाई कोर्ट ने इसे स्वीकार कर लिया और एक बार फिर चुनाव टल गए। जबकि, चार चरण में प्रस्तावित कार्यक्रम में यह व्यवस्था रखी गई थी कि पहले चरण में उन समितियों को ही शामिल किया जाएगा, जो पुनर्गठित हो चुकी हैं। फिर जैसे-जैसे पुनर्गठन की प्रक्रिया होती जाएगी, वैसे-वैसे पुनर्गठित समितियों को शामिल किया जाता रहेगा।
दिग्विजय ने सीएम को लिखा पत्र
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सहकारिता के चुनाव न कराने पर आपत्ति जताते हुए मुख्यमंत्री मोहन यादव को पत्र लिखा है। उन्होंने कहा कि प्रदेश के विकास में सहकारी संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। विगत 12 सालों से चुनाव ही नहीं कराए गए हैं। उच्च न्यायालय द्वारा चुनाव न कराने पर राज्य सरकार पर पेनाल्टी लगाने के बाद भी चुनावी प्रक्रिया अभी तक शुरू नही की गई है। प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों से लेकर जिला और शीर्ष संस्था अपेक्स बैंक तक सरकारी तंत्र के हवाले कर दिया गया है। उन्होंने मांग की कि सभी समितियों के चुनाव तीन माह के भीतर कराए जाएं ताकि लोकतांत्रिक व्यवस्था से निर्णय हों और निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास सहकारी समितियों की कमान आ सके। सहकारिता चुनावों को बार-बार टालना न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी है, बल्कि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था के मूल स्तंभ किसानों को निर्णय की शक्ति से दूर रखने का संकेत भी है। अब देखना होगा कि सरकार अगले तीन महीनों में इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाती है या यह सिलसिला जारी रहता है।