9 साल बाद खुलने लगी प्रमोशन की राह

  • अब कृषि विभाग में भी अफसरों की समिति बनाई गई

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
मप्र में प्रमोशन प्रक्रिया पिछले 9 साल से रुकी हुई है। इस दौरान करीब 1 लाख से ज्यादा अधिकारी और कर्मचारी बिना प्रमोशन के ही रिटायर हो चुके हैं। निचले स्तर से लेकर वरिष्ठ पदों तक पदोन्नति की राह में कानूनी और प्रशासनिक बाधाएं बनी हुई हैं। लेकिन अब प्रदेश में प्रमोशन की राह धीरे-धीरे खुलने लगी है। इसी कड़ी में विधि विधायी विभाग में मिला प्रमोशन अन्य डिपार्टमेंट में पदोन्नतियों की राह आसान कर रहा है। अब कृषि एवं किसान कल्याण विभाग में यह प्रक्रिया शुरू करने के लिए कमेटी बनाई गई है।  गौरतलब है कि 14 मार्च को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने विधानसभा में बयान दिया था कि जल्द ही कर्मचारियों के प्रमोशन का रास्ता साफ होने वाला है। सूत्रों के अनुसार, सरकार ने प्रमोशन प्रक्रिया को लेकर तीन क्राइटेरिया तय कर लिए हैं। पहला, प्रमोशन प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अधीन होगी। दूसरा, प्रक्रिया में सभी संवर्गों का संतुलन रखा जाएगा। तीसरा, विभागवार रिक्तियों और पात्रता के अनुसार चरणबद्ध ढंग से प्रमोशन किए जाएंगे। मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि सरकार जल्द ही विस्तृत गाइडलाइन जारी कर सकती है, ताकि सुप्रीम कोर्ट की शर्तों का पालन करते हुए प्रमोशन की प्रक्रिया शुरू की जा सके।
प्रपोजल अग्रेषित नहीं हो पाया
विधि विधायी विभाग की तर्ज पर अब कृषि एवं किसान कल्याण विभाग में यह प्रक्रिया शुरू करने के लिए कमेटी बनाई गई है। 21 मार्च को इसके माध्यम से प्रस्ताव शासन को पहुंचना था, लेकिन विधानसभा में बजट पर चर्चा होने के कारण यह प्रपोजल अग्रेषित नहीं हो पाया है। इसके लिए किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग के संचालक द्वारा आदेश जारी किया गया है। जिसमें मप्र उच्च न्यायालय के पारित निर्णय के आधार पर प्रथम और द्वितीय श्रेणी के अधिकारियों को प्रमोशन देने की तैयारी की जा रही है।  इस पत्र में यह भी कहा गया कि जिस प्रकार विधि एवं विधायी विभाग में प्रमोशन दिए गए हैं। ठीक उसी प्रकार की प्रक्रिया अपनाई जाएगी। इसके लिए कमेटी बनी है। इस समिति में संयुक्त संचालक किसान कल्याण डीएल कोरी को अध्यक्ष बनाया गया है। इस समिति द्वारा प्रमोशन प्रस्तावों का परीक्षण किया। फिर इसे शासन को भेज दिया गया है। पिछले करीब 9 साल से प्रतिबंध होने के कारण हर अधिकारी और कर्मचारी प्रमोशन चाह रहा है। इसलिए पहले प्रथम और द्वितीय श्रेणी पदों पर पदोन्नतियों पर काम हुआ है। प्रथम श्रेणी अधिकारी ऊंचे पदों पर जाएंगे तो इनकी जगह द्वितीय श्रेणी अफसर को प्रमोट किया जाएगा। द्वितीय श्रेणी के जो पद खाली होंगे। इन पर तृतीय श्रेणी को लाया जाएगा। फिर इनके स्थान पर चतुर्थ श्रेणी को योग्यता और वरिष्ठता के आधार पर रखा जाएगा।
प्रथम और द्वितीय श्रेणी के लिए ही कमेटी
सिर्फ प्रथम और द्वितीय श्रेणी के अधिकारियों को प्रमोशन देने की तैयारी पर विवाद छिड़ गया है। कृषि विकास एवं ग्रामीण कृषि अधिकारी इसके खुलकर विरोध में आ गए हैं।  इस कैडर का कहना है कि जो आदेश जारी हुआ। उसमें उनका उल्लेख क्यों नहीं किया गया। यह स्थिति स्पष्ट की जानी चाहिए। इस पर विभाग में अधिकारियों का कहना है कि गठित समिति सभी वर्ग के अधिकारी और कर्मचारियों के लिए बनाई गई है। जब ऊपर से पद खाली होंगे तभी तो निचले स्तर पर लोक सेवकों को मौका मिलेगा। कृषि विभाग में गठित समिति की अनुशंसा पर प्रारंभिक तौर पर डेढ़ सौ अधिकारियों को लाभ मिलेगा। विभाग में 70 उप संचालक हैं, जो प्रथम श्रेणी में आते हैं। जबकि क्लास टू ऑफीसर की पात्रता रखने वाले 80 सहायक संचालक काम कर रहे हैं। इसके अलावा तृतीय श्रेणी में वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी, कृषि विकास अधिकारी और ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी और लिपिकीय अमला हैं। अध्यक्ष मप्र कृषि विस्तार अधिकारी संघ धमेन्द्र पाटीदार का कहना है कि कृषि विभाग प्रमोशन के लिए बनाई गई कमेटी में प्रथम और द्वितीय श्रेणी को पदोन्नति देने का उल्लेख है तो तृतीय श्रेणी को क्यों छोड़ा गया है। इसका जवाब विभाग को देना चाहिए। सभी को प्रमोशन की जरूरत है। उप संचालक अजय कौशल का कहना है कि जो कमेटी बनाई गई है, वह सभी कैडर के लिए है। सभी के लिए प्रस्ताव तैयार करेगी। जब प्रमोशन से ऊपरी स्तर से पद रिक्त होंगे, तभी तो निचले संवर्गों के लोग पदोन्नति से यहां पहुंच पाएंगे।  
सरकार की तैयारी
 मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने संकेत दिए हैं कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों और सभी वर्गों के संतुलन के साथ प्रमोशन की प्रक्रिया फिर से शुरू करने की दिशा में बढ़ रही है। सरकार तीन अहम क्राइटेरिया के आधार पर योजना बना रही है, ताकि एक संतुलित और कानूनी रूप से मजबूत समाधान सामने लाया जा सके। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि प्रमोशन की प्रक्रिया शुरू होती है तो इससे जहां वर्षों से अटके अधिकारियों और कर्मचारियों को राहत मिलेगी, वहीं सरकार को प्रशासनिक स्तर पर रिक्त पदों को भरने में भी मदद मिलेगी। यह मुद्दा आगामी चुनावों से पहले सरकार के लिए भी बेहद संवेदनशील है। सरकार प्रमोशन प्रक्रिया को लेकर सतर्कता बरत रही है ताकि किसी भी वर्ग में असंतोष न फैले। अब सभी की निगाहें इस बात पर हैं कि सरकार कोर्ट के फैसले की दिशा में आगे बढक़र  इस जटिल मुद्दे को किस तरह सुलझाती है।

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