
- भारतीय वन स्थित सर्वेक्षण रिपोर्ट 2023 की रिपोर्ट में खुलासा
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। बुंदेलखंड में दिनों-दिनों कम हो रहा वन क्षेत्र अब चिन्ता का विषय बन रहा है। सरकार वन क्षेत्र को बढ़ाने के लिए पौधारोपण अभियान चलाकर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रही है। इसके बावजूद बीते सालों में प्रदेश के बुंदेलखंड में जंगल जमकर जमीन में तब्दील हुए हैं। इसका खुलासा भारतीय वन स्थित सर्वेक्षण रिपोर्ट 2023 में हुआ है। वहीं रिपोर्ट के अनुसार विंध्य क्षेत्र में शामिल ऊर्जा राजधानी सिंगरौली सर्वाधिक वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचाने वाले जिलों में अग्रणी बनकर उभरा है। बीते 2 सालों में यहां 34.83 प्रतिशत कमी दर्ज की गई है। इसके बाद यहां के शहडोल में 13.67 और उमरिया में 5.07 प्रतिशत की कमी आई है। वहीं, मालवा के बुरहानपुर में सर्वाधिक 31.4 प्रतिशत और धार- बड़वानी में 19-19 प्रतिशत वन क्षेत्र कम हुआ है। हरदा में यह कमी 8.86 प्रतिशत दर्ज की गई है।
कभी बुंदेलखंड का इलाका एक घने वन क्षेत्र के तौर पर जाना जाता था। लोगों के जीवन का आधार वृक्ष थे। अचार, महुआ, तेंदू ,आम और आंवला ऐसे वृक्ष थे जो यहां के लोगों की आय के मुख्य श्रोत थे। वनों में पाई जाने वाली जड़ी बूटियां लोगों के हर मर्ज की दवा थी। लेकिन बुंदेलखंड इलाके में वनों के विनाश में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। वनों के विनाश का ही परिणाम है की जल स्तर में तेजी से गिरावट हुई, बीहड़ो का विस्तार हुआ। अतीत में जो हरियाली लोगों को लुभाती थी आज उसकी जगह वीरानी छाई है। भूमि की नमी समाप्त हो गई है और मानव व अन्य जीव बून्द-बून्द पानी के लिए मोहताज है।
25 प्रतिशत तक वनअच्छादित क्षेत्र में कमी
भारतीय वन स्थित सर्वेक्षण रिपोर्ट 2023 की रिपोर्ट के अनुसार बीते दो सालों के दौरान प्रदेश में जहां 25 प्रतिशत तक वनअच्छादित क्षेत्र में कमी आई है, वहीं दमोह और सागर जिलों में तो 85.29 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की गई है। भारतीय वन स्थिति सर्वेक्षण रिपोर्ट 2023 की मानें तो मप्र के वनाच्छादित क्षेत्रों में सबसे ज्यादा दमोह जिले में 85.29 प्रतिशत जंगल कम हुआ है। इसके बाद 71.38 प्रतिशत कमी के साथ इस अंचल का संभागीय मुख्यालय सागर रहा है। जबकि 2021 के सर्वेक्षण के मुकाबले यहां के छतरपुर में महज 12.02 प्रतिशत जंगलों में कमी आई है। इतना ही नहीं छिंदवाड़ा जिले में 21.58, कटनी 32.22 और सिवनी में 34.25 प्रतिशत की गिरावट के साथ महाकोशल क्षेत्र भी जंगलों की बर्बादी के केंद्र के तौर पर उभरकर सामने आया है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के 14 जिलों में सघन वन क्षेत्र समाप्त हो गए हैं। इनमें ग्वालियर चंबल में आने वाला मुरैना, भिंड और दतिया के साथ मालवा के धार, बड़वानी, झाबुआ, इंदौर, नीमच, शाजापुर, और उज्जैन भी शामिल है। प्रदेश के राजगढ़ और रतलाम जिले को भी सघन वन क्षेत्रों की सूची में स्थान नहीं दिया गया है। भोपाल संभाग की बात करें तो जंगलों के लिये सबसे ज्यादा खतरनाक राजधानी के पड़ोसी विदिशा और रायसेन जिले साबित हुए हैं। हालांकि भोपाल में ही 0. 0.54, सीहोर 04.17, होशंगाबाद 0.70 और राजगढ़ में 1.02 प्रतिशत वनआच्छादित क्षेत्र में कमी आई है। बावजूद इसके विदिशा में 25.42 और रायसेन में 23.23 प्रतिशत वनअच्छादन क्षेत्र कम हो गया है। इन सबके बावजूद भारत वन स्थिति रिपोर्ट- 2023 के अनुसार, मप्र ने एक बार फिर देश में सर्वाधिक वन और वृक्ष आवरण वाले राज्य का स्थान बरकरार रखा है। राज्य का कूल वन और वृक्ष आवरण 85,724 वर्ग किलोमीटर है, जो देश में सबसे अधिक है। इसके साथ ही वनावरण क्षेत्र 77,073 वर्ग किलोमीटर के साथ मध्यप्रदेश अग्रणी रहा है।