
- मकानों, भवनों के बाहर लगाए जाएंगे
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र के शहरों में अब मकानों को अपनी हाईटेक पहचान क्यूआर कोड से मिलेगी। इसमें एक यूनिक आईडी नंबर सभी मकानों को मिलेगा, जिससे प्रॉपर्टी टैक्स की पूरी जानकारी रहेगी और लोगों को टैक्स जमा करने के लिए दफ्तरों के चक्कर नहीं काटने होंगे। इस डिजिटल नंबर के जरिए प्रॉपर्टी टैक्स के अलावा अन्य सुविधाएं यूनिक डिजिटल प्लेट को स्कैन करने से मिलेगी। यह क्यूआर कोड हर मकान पर चस्पा किया जाएगा। निकायों के कर्मचारी इसको स्कैन कर उक्त मकान के बकाया कर जानकारी ले सकते हैं। प्रदेश में राजधानी सहित प्रदेशभर के शहरी क्षेत्रों में अब क्यूआर कोड से ही प्रॉपर्टी टैक्स की वसूली की तैयारी की जा रही है। नगरीय प्रशासन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस व्यवस्था के बाद प्रदेश के नगरों, शहरों की सभी इमारतों के मालिक अब प्रॉपर्टी टैक्स भरने से नहीं बच पाएंगे। इसके लिए मकानों, भवनों के बाहर क्यूआर कोड लगाए जाएंगे। प्रत्येक में उस संपत्ति के टैक्स, बकाया आदि की पूरी जानकारी होगी। इसे संपत्ति मालिक के साथ ही नगरीय निकाय का कर्मचारी स्कैन कर टैक्स पेमेंट की स्थिति देख सकेगा। इससे पहले निगम प्रशासन को टैक्स जमा करने के लिए लोगों को कई बार नोटिस जारी करना पड़ता है। इसके बावजूद लोग कार्यालय में जाकर शुल्क जमा नहीं कर पाते। कई लोग काम की व्यस्तता के चलते भी कार्यालय नहीं जा पाते थे। लिहाजा, समय पर टैक्स जमा नहीं हो पाता है। दूसरी ओर टैक्स जमा नहीं होने के कारण निगम प्रशासन की आर्थिक स्थिति भी खराब हो रही है।
35 लाख से अधिक घरों पर लगेंगे क्यूआर कोड
क्यूआर कोड राज्य के 35 लाख से अधिक घरों, इमारतों पर लगाए जाएंगे। निकायों को अपने खर्च पर यह कार्य करना पड़ सकता है। नगरीय निकायों को उनके क्षेत्र में बने घर, कॉम्पलेक्स व अन्य तरह के निर्माणों से संपत्ति कर के साथ ही जलकर की वसूली का अधिकार दिया गया है। यह और इससे जुड़े अन्य उपकर निकायों की आय का प्रमुख हिस्सा हैं। टैक्स कलेक्शन से मिली राशि में से ही पार्षदों को विकास कार्यों के लिए पैसा दिया जाता है। इसके अलावा बुनियादी जरूरत के अन्य काम किए जाते हैं। प्रदेश के किसी भी निकाय में करों की 100 फीसदी वसूली नहीं हो पाती है। स्थिति यह है कि कई भवन मालिक टैक्स जमा नही करते हैं। निकायों की ओर से नोटिस थमाने, कुर्की आदि की कार्रवाई के बाद ही बकाया राशि जमा करते हैं। यह एक्शन निकाय सभी बकायादारों के खिलाफ नहीं ले पाते हैं। नतीजा, टारगेट के मुकाबले 50 से 80 प्रतिशत टैक्स ही वसूल हो पाता है। भोपाल और इंदौर जैसे बड़े शहरों में यही स्थिति है। राजधानी में पांच लाख से अधिक संपत्तियां है। वहीं इंदौर में यह आंकड़ा सात लाख के पार है। भोपाल की बात करें तो पुराने शहर सहित कुछ अन्य इलाकों में वसूली में काफी दिक्कत होती है। निगम कर्मचारियों को विरोध का सामना करना पड़ता है। कई मामले थाने तक पहुंच जाते हैं। जलकर वसूली का हाल और खराब है। राजधानी में सालाना जलप्रदाय पर जितना खर्च होता है, वो जलकर से नहीं निकल पाता है। नगरीय विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय भी सभी सभी क्षेत्रों से वसूली न होने पर नाराजगी जता चुके हैं।
100% टैक्स कलेक्शन पर जोर
नगरीय निकायों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। इनको वित्तीय तौर से मजबूत बनाने के लिए राज्य सरकार का जोर भी 100 प्रतिशत टैक्स कलेक्शन पर है। इसके लिए जियोग्राफिकल इंर्फोमेशन सिस्टम (जीआईएस) की मदद से सर्वे कर सभी मकानों, दुकानों, भवनों को प्रॉपर्टी टैक्स की जद में लाया जा रहा है। भोपाल, इंदौर, सागर और मुरैना समेत 212 निकायों में यह पूरा हो चुका है। जीआईएस सर्वे के पहले भोपाल में 4.09 लाख संपत्तियां दर्ज थी। इनसे संपत्ति कर के तौर पर 126 करोड़ रुपए की डिमांड निकलती थी। सर्वे के बाद प्रॉपर्टी की संख्या बढ़ कर 5.11 लाख पहुंच गई। ऐसे में नगर निगम ने 200 करोड़ रुपए वसूलने का लक्ष्य रखा था। सर्वे से 74 करोड़ रुपए मांग बढ़ गई। वहीं इंदौर में संपत्तियां 5.8 लाख से बढ़ कर 7.23 लाख हो गई। इस आधार पर डिमांड भी 251 करोड़ की जगह 289 करोड़ हो गई।