
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आए रामनिवास रावत को आखिरकार विभाग की जिम्मेदारी मिल गई। रावत को वन एवं पर्यावरण विभाग का दायित्व सौंपा गया है। अभी वन एवं पर्यावरण विभाग की जिम्मेदारी नागर सिंह चौहान निभा रहे थे। अब उनका कद घटा दिया गया है। नागर सिंह चौहान से वन एवं पर्यावरण विभाग छीनकर रामनिवास रावत को दिया गया है। वर्तमान में नागर सिंह चौहान के पास सिर्फ अनुसूचित जाति एवं कल्याण विभाग बचा है। माना जा रहा है कि विवादों के कारण चौहान का कद कम किया गया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपने इस एक कदम से अन्य मंत्रियों को संदेश दे दिया है कि सरकार में किसी को मनमानी करने की छूट नहीं मिलेगी।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मंत्रिमंडल विस्तार के साथ ही मंत्रियों को संदेश दे दिया था कि सुशासन सरकार की प्राथमिकता है। रामनिवास को वन एवं पर्यावरण विभाग सौंपकर मुख्यमंत्री ने क्या काबीना के अन्य साथियों को सख्त संदेश दे दिया है? यह सवाल इसलिए राजनीतिक हलकों में चर्चाओं का विषय बना हुआ है क्योंकि मुख्यमंत्री के स्पष्ट निर्देशों के बाबजूद वन मंत्री रहे चौहान ने अपने निजी स्टाफ में एक विवादित अधिकारी की सेवाएं जारी रखी हुई हैं। सरकार गठन के बाद से ही मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कर दिया था कि कोई भी मंत्री पुराने और विवादित अधिकारियों को अपना विशेष सहायक एवं ओएसडी नहीं बनाएगा। चौहान ने वित्त सेवा के अधिकारी रंजीत सिंह चौहान को बगैर सक्षम अनुमति के अपना विशेष सहायक बनाकर काम लेना शुरू कर दिया था। रंजीत सिंह पूर्व में उमंग सिंघार के स्टाफ में भी रहे हैं। रंजीत सिंह वित्त विभाग से बगैर अनुमति के पिछले 6 महीने से चौहान के बंगले पर काम कर रहे थे। सामान्य प्रशासन विभाग ने भी रंजीत सिंह की सेवाएं वन मंत्री के स्टाफ में देने से इनकार कर दिया था। इस बीच मंत्री चौहान के दबाव में पिछले दिनों एसीएस वित्त ने रंजीत सिंह को एनओसी देने के लिए अलग से फाइल चलाई थी।
वन विभाग के अफसर भी नाराज
सूत्रों का कहना है कि वन मंत्री रहते नागर सिंह चौहान ने अपने आसपास ऐसे लोगों का कॉकस बना लिया था, जो वन विभाग के अफसरों के कामकाज में भी हस्तक्षेप करने लगे थे। प्रदेश के आईएफएस अफसरों ने भी रंजीत सिंह की कार्यशैली को लेकर मुख्यमंत्री तक गंभीर शिकायतें दर्ज कराई थी। मुख्यमंत्री द्वारा वन विभाग की जिम्मेदारी नागर सिंह से लेकर रामनिवास रावत को सौंपने के निर्णय को एक सन्देश के रूप में भी देखा जा रहा है, क्योंकि वन मंत्री की कार्यशैली को लेकर संगठन से भी शिकायतों के स्वर उठ रहे थे। वैसे मुख्यमंत्री चाहते तो अपने पास के विभागों से कोई भी विभाग रामनिवास रावत को दे सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा न करते हुए नागर सिंह चौहान के वजन को कम करना उचित समझा।
अन्य मंत्रियों को संदेश
राजनीतिक प्रेक्षक यह मानकर चल रहे हैं कि मुख्यमंत्री कैबिनेट की छवि को लेकर सख्त सन्देश देना चाहते हैं। इस फेरबदल के साथ डॉ. मोहन यादव ने एक साथ दो संदेश दे दिए हैं। पहला किसी भी कीमत पर सरकार की छवि से समझौता नहीं किया जाएगा, दूसरा सीएमओ यानी मुख्यमंत्री कार्यालय ही शासन में सर्वोच्च प्राधिकारी है इसके निर्देशों की अवहेलना भी स्वीकार नही होगी। मुख्यमंत्री के इस निर्णय के बाद उन सभी मंत्रियों के अनाधिकृत स्टाफ में भी खलबली मच गई है जो बगैर अनुमति के मंत्रियों के बंगले पर काम कर रहे हैं। अक्सर देखने में आता है कि नई सरकार बनते ही भोपाल में अफसरों का एक रैकेट सक्रिय हो जाता है जो वर्षों से मंत्रियों के स्टाफ में सेवाएं दे रहा है। कुछ अधिकारी तो दिग्विजय सिंह सरकार के समय से ही काम कर रहे हैं। इन्ही दागदार अफसरों के कारण मंत्रियों की अक्सर फजीहत होती रहती है। संगठन स्तर पर भी इन्हें लेकर नाराजगी की बात सामने आती रहती है। बेहतर होगा सरकार के स्तर पर मंत्रियों के स्टाफ खासकर विशेष सहायक और ओएसडी की भर्ती के लिए एक मैकेनिज्म विकसित किया जाए।
अब जिलों के प्रभार का इंतजार
रामनिवास रावत को विभाग दिए जाने के बाद अब मंत्रियों को जिलों के आवंटन जल्द होने की उम्मीद जाग गई है। बताया जा रहा है कि मंत्रियों को 15 अगस्त के पहले मंत्रियों को जिलों के प्रभार का बंटवारा हो जाएगा। पिछले दिनों मुख्यमंत्री मोहन यादव ऐलान कर चुके हैं कि मंत्री अपने प्रभार वाले जिलों में झंडा फहराएंगे। पिछले दिनों दिल्ली दौरे के दौरान मुख्यमंत्री पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर चुके हैं। रामनिवास रावत को विभाग दिए जाने के बाद माना जा रहा है कि जल्द ही मंत्रियों की प्रभार वाले जिलों की लिस्ट जारी हो जाएगी।