
- सुप्रीम कोर्ट के फैसले को किया दरकिनार, वन अफसरों में नाराजगी
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में एक बार फिर से वन महकमे नई व्यवस्था बनाने की पहल की गई है। इसको लेकर फिर से विवाद की स्थिति बन गई है। दरअसल यह व्यवस्था पूर्व मं सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय के अतर जाकर शुरु की जा रही है। इससे वन महकमे के अफसरों में बेहद नाराजगी पैदा हो गई नाराजगी का आलम यह है कि वन अफसरों ने एक बार फिर से इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी शुरु कर दी है। दरअसल इसकी वजह है वन अफसरों के कामकाज के मूल्यांकन का जिम्मा आईएएस अफसरों को दिया जाना। इसको लेकर जारी आदेश में अब भारतीय वन सेवा (आइएफएस) के अफसरों के कामकाज के मूल्यांकन के आधार पर लिखी जाने वाली परफॉर्मेंस एनुअल रिपोर्ट भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर यानि की आईएएस लिखेंगे। हालांकि इसके पीेछे जो तर्क दिए जा रहे हैं उसके मुताबिक अब तक आइएफएस की पीएआर विभागीय आइएफएस मुखिया ही स्वीकार करते थे। मुखिया को लगता था कि संबंधित अधिकारी की एसीआर काम के अनुसार कमजोर है या फिर काम ठीक नहीं था फिर भी एसीआर में सब कुछ ठीक बता कर उपकृत कर दिया जाता है। ऐसे में विभागीय मुखिया ही उस पर अंतिम अभिमत लिखते हैं। अब शासन का नया आदेश जारी हुआ तो आइएफएस अफसरों में नाराजगी फैल गई है। इसके बाद अब आइएफएस एसोसिएशन इस आदेश के विरोध में आ गया है। यही वजह है कि कल सोमवार को इस आदेश को लेकर एक बैठक बुलाई है, जिसमें तय किया जाएगा की आगे क्या करना है, गौरतलब है कि करीब 28 साल पहले भी इसी तरह का आदेश जारी किया गया था, लेकिन तब आईएफएस अफसर सुप्रीम कोर्ट चले गए थे, जिसके बाद शासन को अपने फैसले पर रोक लगानी पड़ी थी। अब फिर से उसी तरह का आदेश दोबारा से जारी कर दिया गया है। हाल ही में जारी किए गए आदेश को वन विभाग के उप-सचिव किशोर कुमार कन्याल द्वारा जारी किया गया है। इस आदेश में सभी आइएफएस अफसरों की परफॉर्मेंस एनुअल रिपोर्ट अब अतिरिक्त मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव के पास जाएगी। यह अफसर आईएएस होते हैं। उल्लेखनीय है कि इस नए आदेश के पीछे की वजह विभाग के पूर्व में एसीएस रह चुके जेएन कंसोटिया को बताया जा रहा है। इसकी वजह है उनके ही कार्यकाल में इस प्रस्ताव को तैयार किया गया था। अहम बात यह भी है कि इस आदेश को भी कंसोटिया के रिलीव होने वाले दिन शनिवार को जारी किया गया है।
इस वजह से नाराजगी
दरअसल, इस रिपोर्ट के आधार पर ही सरकारी अफसरों से लेकर कर्मचारियों तक की न केवल पदोन्नति होती है, बल्कि समय -समय पर होने वाली वेतन वृद्धि में भी इसकी भूमिका अहम होती है। इसके अलावा सीआर खराब होने पर सेवाकाल में और भी कई तरह के नुकसान होते हैं।
इनकी सीआर के अधिकार वन बल प्रमुख को
वन विद्यालयों के संचालक, कार्य आयोजना के मुख्य वन संरक्षक, रेंजर्स कॉलेज के प्राचार्य और उप वन संरक्षक, वन संरक्षक और मुख्य वन संरक्षक की पीएआर विभाग के वन बल प्रमुख ही लिखेंगे। सीआर लिखने का जो चैनल सरकार ने शनिवार को जारी किया, वह 1996 में आए गोदावर्मन केस-202/1996 से उलट है। तब कोर्ट ने कहा था कि वन विभाग के अफसरों की सीआर (अब पीएआर) विभागीय प्रमुख को लिखनी चाहिए।