
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। भोपाल सहित प्रदेश के 25 जिलों में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के मानदेय घोटाले की जांच 7 साल में भी पूरी नहीं हो पाई है। जांच के नाम पर अभी तक इसके बावजूद सात वर्षों में भी अब तक इस घोटाले की जांच पूरी नहीं हो पाई है। इस मामले में सिर्फ छोटे कर्मचारियों (लिपिक-लेखापाल) पर कठोर कार्रवाई (बर्खास्ती) हुई, जबकि परियोजना अधिकारियों को सिर्फ निलंबित किया गया।
जबकि बड़े अधिकारियों पर आंच तक नहीं आई है। गौरतलब है कि महिला एवं बाल विकास विभाग ने आरोपितों के खिलाफ अलग-अलग थानों में रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी, मगर संबंधितों की गिरफ्तारी तक नहीं हुई। गौरतलब है कि राजधानी में पकड़ी गई इस गड़बड़ी की जब परतें खुलीं तो प्रदेश के 25 से ज्यादा जिलों में 12 करोड़ रुपए से अधिक का फर्जी मानदेय भुगतान होने का पता चला था। कुछ अधिकारियों ने तो घोटाले की राशि सरकार के खाते में जमा करवा दी और विभाग ने उन्हें बचा लिया। जिन अधिकारियों पर सरकारी राशि का गलत उपयोग करने का आरोप लगाया है और इस मामले में निलंबित हैं, कुछ बहाल भी हो गए। लगभग 70 अधिकारियों और कर्मचारियों के विरुद्ध विभागीय जांच भी अब तक पूरी नहीं हो पाई है।
इनमें कई लोग अपनी बहाली कराने का जोर लगा रहे हैं। किन के खातों में गई राशि, छुपा रहा विभाग सूत्र बताते हैं कि आरोपित अधिकारी फर्जी भुगतान पत्रक बनाकर दूसरी बार का मानदेय अपने परिचितों, रिश्तेदारों के बैंक खातों में जमा करा देते थे। यह बात जांच में तो शामिल हुई, पर विभाग यह बताने से कतरा रहा है कि किन लोगों के खातों में राशि डाली जा रही थी। इसमें बड़े नाम भी शामिल हैं।
ये गड़बड़ियां मिली
महालेखाकार ने भी गड़बड़ी होने की पुष्टि की, तब वित्त अधिकारी से जांच कराई गई और फिर मामला सामने आया। इसमें जिला कार्यक्रम अधिकारी, परियोजना अधिकारी लिपिक और लेखापालों के सहयोग से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को दोहरा मानदेय और केंद्रों के भवनों का किराया दे रहे थे। दरअसल, इस घोटाले की परतें राजधानी के आठ परियोजना क्षेत्रों से खुलनी आरंभी हुई थी।
मानदेय 6 हजार रुपए खाते में एक लाख
कैग के मुताबिक वर्ष 2014-15 से लेकर 2017-18 के दौरान आंगनबाड़ी महिलाओं को 6 हजार रुपए मानदेय मिलता था, लेकिन उनके बैंक खातों में एक लाख 13 हजार रुपए तक के भुगतान मानदेय के रूप में किए गए। कुल 89 बैंक खातों में 9 डाटा एंट्री व कंप्यूटर ऑपरेटरों कीर्ति अग्रवाल, राहुल चंदेल, सुमेधा त्रिपाठी, कृष्णा बैरागी,सुरेंद्र कुमार मौर्य,अर्चना भटनागर, बीना भदौरिया तथा दिलीप जेठानी के खातों में राशि ट्रांसफर की गई थी। एक खाता गोविंदपुरा पीओ में काम करने वाले एक कर्मचारी की बेटी प्रतिमा लोकवानी का था। कैग के रिपोर्ट के मुताबिक भोपाल के तत्कालीन डीपीओ ने बच्चों को दिए जाने वाले फ्लेवर्ड दूध का भुगतान 4 लाख 73 हजार रुपए जिस तारीख और बिल क्रमांक से किया, उसी तारीख और क्रमांक से 14 लाख एक हजार रुपए का भी भुगतान हुआ। जब कैग ने डीपीओ से पूछा तो उन्होंने कहा कि फर्जी हस्ताक्षर से किसी ने ऐसा किया होगा। इस राशि की वसूली करके शासन के खाते में जमा करा दी गई है।