लोकसभा चुनाव: कम मतदान माननीय हलाकान

मतदान

विधानसभा क्षेत्र में पड़े वोट का गणित लगाने में जुटे मंत्री…

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में लोकसभा चुनाव के दो फेज के पड़े कम मतदान ने माननीयों को परेशानी में डाल दिया है। खासकर मंत्री अधिक चिंतित हैं। इसकी वजह यह कि कम मतदान के बाद भाजपा आलाकमान ने साफ और सख्त लहजे में कह दिया है कि जिस मंत्री के क्षेत्र में कम मतदान हुआ है और अगर वहां पार्टी की हार होती है तो उनकी मंत्रिमंडल से छुट्टी कर दी जाएगी। आलाकमान के इस सख्त लहजे के बाद वे मंत्री अपने विधानसभा क्षेत्र में वोट का गणित लगाने में जुट गए हैं कि जिनके संसदीय क्षेत्र में मतदान हो चुका है। गौरतलब है कि प्रदेश में दो फेज में जिन 12 सीटों पर मतदान हो चुका है, वहां 2019 की अपेक्षा करीब 7 फीसदी कम मतदान हुआ है। कम मतदान ने दोनों पार्टियों (भाजपा और कांग्रेस) की चिंता बढ़ा दी है। इसके साथ ही कुछ मंत्रियों की चिंता कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। मंत्रियों को कम मतदान से अधिक चिंता उनके विधानसभा क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी की हार का है। मंत्रीजी के विधानसभा क्षेत्र में यदि पार्टी प्रत्याशी की हार हुई तो मंत्रिमंडल से छुट्टी तय है। मंत्रियों को पार्टी पहले ही इस बात की नसीहत दे चुकी है कि उन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र के अलावा अगल-बगल के विधानसभा क्षेत्र पर नजर रखना है। विधानसभा क्षेत्र में हार की डर से चिंतित मंत्रियों ने प्रदेश भाजपा कार्यालय की परिक्रमा शुरू कर दी है।
कांग्रेस में अब तक की सबसे बड़ी बगावत
उधर, कांग्रेस प्रदेश में कई सीटें जीतने का दम भर रही है। लेकिन लोकसभा चुनाव के इस दौर में कांग्रेस में मची भागदौड़ को अब तक की सबसे बड़ी बगावत माना जा रहा है। जीतू पटवारी को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने अभी पूरे पांच माह भी नहीं हुए है। लेकिन कांग्रेस पार्टी के नेताओं का पार्टी छोडऩे का नया रिकार्ड बन गया है। हद तो तब हो गई जब छह बार के विधायक रामनिवास रावत तथा चार दशक से अधिक समय तक कांग्रेस पार्टी में विभिन्न पदों पर रहे सुरेश पचौरी अपने समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए। पचौरी के भाजपा में जाने को लेकर तरह-तरह की बातें कही जा रही है, लेकिन वास्तविकता तो पचौरी और भाजपा के वहीं नेता बता सकते हैं, जिनसे सुरेश पचौरी की बात हुई है।
रामनिवास रावत के जाने से मुरैना में कांग्रेस पाटी की स्थिति कमजोर हुई है। रावत का पार्टी से हटकर खुद का भी जनाधार है। कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को पहले से मालूम था कि राम निवास रावत भाजपा में आ सकते हैं। फिर भी पार्टी नेताओं ने उन्हें रोकने के वैसे प्रयास नहीं किए जैसा करना चाहिए। उन्हें केवल यह कहा गया कि चार जून तक रूक जाओ। चार जून के बाद क्या होगा, यह किसी ने उन्हें नहीं बताया। अब सवाल यही उठता है कि प्रदेश कांग्रेस के युवा अध्यक्ष से पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में नाराजगी क्यों है? लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस के हालात क्या होगे, वह तो चुनाव परिणाम के बाद पता चलेगा।
कुछ के खिलाफ लिखित शिकायत
एक तरफ भाजपा प्रदेश की सभी 29 सीटें जीतने के लिए दम लगा रही है, वहीं प्रदेश सरकार के कुछ मंत्रियों के खिलाफ शिकायत मिली है कि वे प्रत्याशी का समर्थन नहीं कर रहे हैं। मंत्रिमंडल के एक राज्यमंत्री की वहां के लोकसभा प्रत्याशी ने लिखित शिकायत की है। यदि विधानसभा चुनाव के मुकाबले वोट का प्रतिशत कम हुआ तो शिकायत की पुष्टि हो जाएगी। लोकसभा प्रत्याशी की शिकायत के बाद भाजपा संगठन की सबसे अधिक नजर राज्यमंत्री के गांव तथा उसके आसपास तथा बूथों समाज की बहुलता वाली पोलिंग पर है। भाजपा के ही कुछ पदाधिकारियों ने लोकसभा प्रत्याशी ने बताया कि चुनाव प्रचार के दौरान मंत्री ने अपने लोगों से क्या कहा है। इसी कारण उनके विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की स्थिति कमजोर मानी जा रही है। वास्तविकता की पोल खुलने के बाद राज्यमंत्री अब अपनी सफाई देते घूम रहे हैं। बुन्देलखंड से ताल्लुक रखने वाले एक और राज्यमंत्री का क्षेत्र में इतना विरोध है कि अब उन्हें भी यह महसूस होने लगा है कि कहीं उनके विधानसभा क्षेत्र में पार्टी प्रत्याशी को हार का सामना न करना पड़े। बयानों को लेकर चर्चा में रहने वाले राज्यमंत्री पर पार्टी को बहुत भरोसा था। लेकिन वे उम्मीदों पर कितने खरे उतरेंगे, यह तो चार जून को ही पता चलेगा। ग्वालियर व चंबल संभाग के कुछ मंत्रियों को भी इस बात का डर है कि मतदान प्रतिशत कम होने पर हार-जीत का आंकडा काफी कम हो सकता है। इससे उनकी सीआर पर विपरीत असर पड़ेगा। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि लोकसभा चुनाव की आचार संहिता समाप्त होने के बाद मप्र मंत्रिमंडल में फेरबदल हो सकता है।
मंत्री बनते हो गए थे निष्क्रिय
भाजपा सूत्रों का कहना है कि विधानसभा चुनाव में मिली बंपर जीत और मंत्री बनने के बाद कई माननीयों ने अपने क्षेत्र और आम जनता से दूरी बना ली थी। मंत्री जी कि लोकेशन ही नहीं मिलती थी कि कहां हैं और क्या कर रहे हैं। मंत्रियों ने लोगों के फोन उठाना भी बंद कर दिया था। भाजपा के एक नेता कहते हैं कि जनता  ने भी छह माह बाद ही करारा जवाब दे दिया कि यदि राजनीति करना है तो हवा में नहीं जमीन पर रहना होगा। अन्यथा न जाने कितने विधायक एक बार मंत्री रहने के बाद हमेशा के लिए राजनीति की कटीली राहों से दूर हो गए और दोबारा कभी चुनाव नहीं जीते। इसी कारण कहा जाता है कि सत्ता का नशा जब लोगों के सर चढकऱ बोलने लगता है तभी से उनका पराभव शुरू हो जाता है। प्रदेश के कुछ नए नवेले मंत्रियों के साथ भी यदि ऐसा हो जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा।

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