भाजपा को हराने वाले नेता अब जिताने में जुटे

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  • दलबदलुओं से मतदाताओं में भ्रम की स्थिति

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। नेताओं के बारे में लोगों की सोच बदलने की वजह वे खुद ही है। जहां भी उन्हें लाभ दिखाई देता हैख् सो वे बगैर पेंदी के लौटे की तरह लुडक़ने में देर नहीं करते हैं। यही वजह है कि अब नेताओं को अवसरवादी कहने में लोग गुरेज नहीं करते हैं। नेताओं के लिए न अब सोच का कोई मतलब रह गया है और न ही राजनैतिक सिद्दांतों का। यही वजह है कि कई बार जनता यह नहीं समझ पाती है कि जो नेता अब तक विरोधी पार्टी को हराने में जुटा हुआ था, वो अचानक से उसे जिताने में कैसे जुट जाता है।
 यह स्थिति मप्र में कुछ अधिक ही है। यही वजह है कि विधानसभा चुनाव हों या फिर लोकसभा इसके पहले आयाराम गया राम का ऐसा दौर चलता है कि जनता तो ठीक पार्टी कार्यकर्ताओं को भी कुछ समय तक यह समझ नहीं आता है कि आखिर कौन अपना है और कौन पराया। प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव के बाद अब लोकसभा चुनाव में भी इसी तरह की स्थिति बनी हुई है। इस बार प्रदेश की चार लोकसभा सीटों ऐसी हैं, जिसमें वर्ष 2019 के चुनाव में में जो राजनेता आमने-सामने थे, वे इस बार हम साथ साथ हैं वाली भूमिका में है। दरअसल पिछले लोकसभा चुनाव में गुना, भोपाल, राजगढ़ और रीवा लोकसभा से कांग्रेस के झंडे तले मैदान में उतरे चारों उम्मीदवार चुनाव के बाद पाला बदलकर भाजपाई बन चुके हैं। कांग्रेस से भाजपा में आने वाले चारों कांग्रेस नेताओं को तब हार का सामना करना पड़ा था। हार भी उनकी बड़ी थी, इसके बाद भी भाजपा ने कांग्रेस को कमजोर करने के लिए इन नेताओं को भाजपाई बना लिया। इनमें से एक सिद्धार्थ तिवारी तो हाल ही में विधानसभा चुनाव जीतकर भाजपा से विधायक भी बन चुके हैं, वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया बीते चुनाव में शिवपुरी गुना सीट से हार चुके हैं। अब वे भाजपा में आने के बाद न केवल केन्द्रीय मंत्री है बल्कि, भाजपा ने उन्हें प्रत्याशी भी बनाया है। उस समय जो नेता सिंधिया को हराने में लगे थे , वे अब जिताने में लगे हुए हैं।
 विंध्य की रीवा सीट पर बीते 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी जनार्दन मिश्रा ने कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ तिवारी को हराया था। इससे पहले जनार्दन वर्ष 2014 के चुनाव में सिद्धार्थ के पिता एवं विंध्य के शेर कहे जाने वाले स्वर्गीय श्रीनिवास तिवारी के पुत्र सुंदरलाल तिवारी को भी हरा चुके हैं। लोकसभा चुनाव में हार के बाद बदले समीकरणों के बीच विधानसभा चुनाव से ठीक कांग्रेस से टिकट ना मिलने पर नाराज होकर भाजपा में शामिल हो गए थे। भाजपा ने उन्हें तत्काल टिकट थमा दिया और वे विधायक बन गए। भाजपा ने उन्हें त्योंथर सीट से चुनाव में उतारा था। उधर लोकसभा चुनाव में इस रीवा सीट से भाजपा ने लगातार तीसरी बार जनार्दन मिश्रा को चुनाव में उतारा है। अब इस चुनाव में मिश्रा के समर्थन में तिवारी मैदान में मोर्चा सम्हाल रहे हैं।
इसी तरह वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी शंकर ललवानी ने कांग्रेस के पंकज संघवी पर जीत दर्ज की थी। शंकर ललवानी फिर भाजपा उम्मीदवार के रूप में मैदान में भी है। यानि जिन प्रत्याशियों ने 2019 के चुनाव में भाजपा को हराने के लिए काम किया था वह इस बार उसे जिताने के लिए मैदान में उतरे हुए हैं। इस बार भी ललवानी  भाजपा उम्मीदवार है और उनसे हारने वाले पंकज ने हाल ही में भाजपा का दामन थाम लिया है। दोनों मिलकर अब एक ही स्वर में अबकि बार 29 की 29 का नारा लगा रहे हैं। इसी तरह से अगर बात राजगढ़ की करें तो, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के गढ़ माने जाने वाली इस सीट पर भाजपा से लगातार तीसरी बार रोडमल नागर मैदान में हैं। नागर वर्ष 2014 में नारायण सिंह आमलाबे एवं वर्ष 2019 में मोना सुस्तानी को चुनाव हरा चुके हैं। कांग्रेस नेत्री सुस्तानी अब कमल का फूल हाथ में लेकर नागर के लिए प्रचार कर रही हैं। वे बीते चुनाव में स्वयं प्रत्याशी होने की वजह से नागर को हराने के लिए गली कूचों तक में घूम चुकी हैं। सबसे दिलचस्प मगर गंभीर किस्सा शिवपुरी-गुना संसदीय क्षेत्र का है। पूर्ववर्ती ग्वालियर राजघराने से प्रभावित इस सीट पर वर्ष 2019 में इतिहास लिखा गया था। चुनाव में कांग्रेस से ही भाजपा में आए डॉ. केपी यादव को प्रत्याशी बनाते हुए भाजपा ने कांग्रेस के तत्कालीन महाराज और लोकसभा उम्मीदवार सिंधिया को पटखनी दी थी। इसके बाद बदली राजनीतिक परिस्थितियों में वर्ष 2020 में अप्रत्याशित तरीके से सिंधिया ने अपने कई मंत्री और विधायकों के साथ भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को गिरा दिया था। इसके बाद उन्हें भाजपा ने न केवल राज्यसभा सदस्य बनाया, बल्कि केंद्र में मंत्री भी बनाया।
 इसके बाद अब उन्हें भाजपा उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतारा है। इसकी वजह से अब उनके धुर विरोधी केपी यादव भाजपा को जिताने मैदान में उतर रहे हैं। यह वे सीटें हैं, जहां पर इस बार कांग्रेस को प्रत्याशी चयन में भारी मुश्किल का सामना करना पड़ा है। इसकी वजह है वह नेता जो पहले कांग्रेस के दिग्गज थे , वे अब भाजपा में जा चुके हैं।  यही वजह है कि इन चार में से कांग्रेस अब तक तीन प्रत्याशी ही घोषित कर पायी है। इनमें रीवा से नीलम मिश्रा, राजगढ़ से दिग्विजय सिंह, इंदौर से अक्षय कांति बम शामिल है। गुना का मामला अब भी अटका हुआ है।  

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