- निरुक्त भार्गव

अपेक्षाकृत युवा, कर्मठ और स्वच्छ छवि वाले जनप्रतिनिधि अनिल फिरोजिया को भाजपा ने लगातार दूसरी बार उज्जैन संसदीय क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया है। जाहिर है, नाना किस्म की जोर आजमाइश के बाद वो अपना टिकट कायम रखने में सफल रहे हैं! मगर उज्जैन में शुक्रवार को जिस तरह के दृश्य सामने आए, उसने ये संकेत तो दे ही दिए कि 2024 की लड़ाई में अनिल कहीं बड़ी चूक न कर डालें।
संलग्न चित्र में भाजपा प्रत्याशी अनिल फिरोजिया अपने परिवार और निकट सम्बन्धियों के साथ बड़ी तल्लीनता से महाकालेश्वर मंदिर के गर्भगृह में अभिषेक-पूजन करते दिखाई दे रहे हैं। इस चित्र को खुद भाजपा ने जारी किया। इसी चित्र में भाजपा के विधायकों और स्थानीय पार्टी संगठन के अहम पदाधिकारियों को भी देखा जा सकता है।
भले ही लोक सभा चुनाव की ‘आदर्श आचरण संहिता’ लगने के 24 घंटे पहले की ये तस्वीर इतना जताने में सफल रही हैं कि गर्भ गृह में मौजूद लोग सनातनी हैं, लेकिन क्या उनका ये आचरण महाकाल जी के प्रोटोकॉल के अनुकूल था? उल्लेख करना जरूरी हो गया है कि आस्था और विशेषाधिकार के पक्ष में दी जाने वाली दलीलें व्यवस्था के मान से बोगस हैं। लगभग एक साल हो चला है ,जब-से महाकालेश्वर जी के गर्भ गृह में आम लोगों की तो क्या धनपतियों और रसूख धारियों की एंट्री भी प्रतिबंधित है। मोटे तौर पर इस व्यवस्था का विरोध नहीं किया गया, क्योंकि लोगों को लगा कि चलो महाकाल जी के दरबार में पद, प्रतिष्ठा, परिवार, धन-सम्पदा, जात-पात वगैरह के कारणों से भेदभाव नहीं किया जाता। इस शुक्रवार को तो गजब ही हो गया, कोई एक दर्जन भाजपायी धड़ल्ले से महाकाल जी के गर्भगृह में प्रविष्ट हो गए और बाकायदा रौब गांठते हुए प्रदर्शनकारी भाव-भंगिमाएं दिखाईं। इस भू-मंडल में रहने वाले असंख्य भक्तों के लिए तो शायद ये पल बहुत भारी रहे होंगे क्योंकि , वे जब स्वयं हाजरी लगाते हैं, बाबा के दर्शनों की तो उनको कैसा ट्रीटमेंट मिलता है? विशेषाधिकार प्राप्त लोगों की महाकालेश्वर जी के गर्भ गृह में एंट्री पर मेरे जैसे लोगों को मिर्ची क्यों लग रही है? मंदिर के सरमायेदार तो कलेक्टर और उनके मातहत अफसर हैं, तो उनकी भूमिका पर आखिर क्यों सवाल उठाये जाने चाहिए? हर दिन देश और विदेश से आने वाले और दान-दक्षिणा देने वाले लोग क्यों जल भी चढ़ाने से वंचित किए जा रहे हैं?