विधानसभा में अवैधानिक नियुक्तियां निरस्त

  • विवादों में गिरीश गौतम के कार्यकाल की नियुक्तियां

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र विधानसभा सचिवालय में की गई कई अवैधानिक नियुक्तियों को निरस्त कर दिया गया है। ये नियुक्तियां पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम के समय की गई थी। सूत्रों का कहना है कि गौतम के समय कई कई नियुक्तियां विवादों में रहीं हैं। अब उन नियुक्तियों की जांच कराई जा रही है। सूत्रों का कहना है कि जिन नियुक्तियों को अवैधानिक पाया गया है और उन्हें निरस्त किया गया है उनमें  केयर टेकर और सहायक मार्शल के पद शामिल हैं। जानकारी के अनुसार  केयर टेकर और सहायक मार्शल के पद पर की गई नियुक्तियां पंद्रहवीं विधानसभा के आखिरी समय में की गईं थीं। सोलहवीं विधानसभा शुरू होते ही नियुक्तियों को लेकर विधानसभा सचिवालय के पास शिकायत पहुंची थी। जिसके आधार पर कराई गई पड़ताल में नियुक्ति अवैध पाई गईं। विधानसभा सचिवालय ने हाल ही में केयर टेकर अरविंद कुमार पांडेय और सहायक मार्शल हिंदलाल तिवारी की नियुक्ति रद्द कर दी है। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम के कार्यकाल में दोनों को तदर्थ नियुक्ति दी गई थी।
शुरू से विवादों में नियुक्तियां
जानकारी के अनुसार विधानसभा सचिवालय ने उसी समय तदर्थ नियुक्ति पर मौखिक सवाल उठाए गए थे, लेकिन उच्च स्तर से नियुक्ति होने की वजह से लिखित विरोध दर्ज नहीं कराया गया था। गिरीश गौतम के अध्यक्ष पद से हटते ही विधानसभा के नियमित कर्मचारियों ने इसकी शिकायत की। जिसमें बताया कि पंद्रहवी विधानसभा में केयर टेकर अरविंद कुमार पांडेय और सहायक मार्शल हिंदलाल तिवारी की जो नियुक्ति की गई थी, वह अवैधानिक है। क्योंकि मप्र सरकार का सामान्य प्रशासन विभाग तदर्थ नियुक्ति की व्यवस्था को समाप्त कर चुका है। ऐसे में तदर्थ नियुक्ति देना अवैधानिक है। यह मामला विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर के पास भी पहुंचा। तोमर ने भी नियमों का हवाला देकर गिरीश गौतम के समय की गई अवैधानिक नियुक्ति को आगे बढ़ाने से इंकार कर दिया। दरअसल, तदर्थ नियुक्ति की व्यवस्था पूर्व में रही है। तदर्थ नियुक्ति होने के बाद नियमित नियुक्ति प्रदान की जाती थी। वर्तमान में मप्र विधानसभा में कई कर्मचारी, अधिकारी ऐसे हैं, जिनकी तदर्थ नियुक्ति हुई थी। विधानसभा सचिवालय सूत्रों ने बताया कि दोनों केयर टेकर अरविंद कुमार पांडेय और सहायक मार्शल हिंदलाल तिवारी की नियुक्ति गिरीश गौतम के कार्यकाल के आखिरी दिनों में 6 दिसंबर को की गई थी। नियुक्ति की गोपनीयता इतनी रखी गई कि आदेश पर तारीख का भी उल्लेख नहीं है। ये दोनों पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम के रीवा क्षेत्र से आते हैं। दोनों की नियुक्ति बचाने के लिए पूर्व स्पीकर ने सिफारिश भी की।
नियमों के खिलाफ हुई संविदा नियुक्ति
विधानसभा के सूत्रों के अनुसार पूर्व अध्यक्ष गिरीश गौतम के कार्यकाल में हुई कई नियुक्तियां विवादों में रही हैं। इन्हीं में एक है संविदा सचिव की नियुक्ति। जब इस पद पर नियुक्ति हुई थी , तब मामला जोर-शोर से उठा था। विधानसभा के सचिव शिशिरकांत चौबे को 65 साल उम्र होने के बावजजूद संविदा नियुक्ति दे दी गई। कुछ इसी तरह अंडर सेक्रेटरी पद से रिटायर हुए रमेश चंद रुपाला के मामले में भी किया गया। उन्हें पहले तो दो साल की सेवा विस्तार दिया और बाद में संविदा नियुक्ति दे दी गई। इस मामले की शिकायत राज्यपाल को सौंपी गई है। हालांकि इस मामले में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम का कहना था कि संविदा नियुक्ति में कहीं  किसी प्रकार का नियमों का उल्लंघन नहीं किया गया है। गौतम ने कहा कि उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी सचिव 70 साल के हैं, तो मध्य प्रदेश में क्यों नहीं हो सकते। शिकायत होने पर उन्होंने कहा था कि शिकायत करने वालों का क्या है, वो तो करते रहते हैं।  शिशिरकांत चौबे की जब विधानसभा में नियुक्ति हुई तो  उसमें वित्त विभाग की स्वीकृति नहीं थी। इसके चलते उस समय की कांग्रेस सरकार में उन्हें हटा दिया गया था, लेकिन बाद में उन्हें फिर संविदा पर दोबारा नियुक्त कर दिया गया। 2018 में शिशिरकांत चौबे को सचिव के पद पर संविदा नियुक्ति दी गई थी, लेकिन वित्त विभाग ने उनकी नियुक्ति पर असहमति जताई। इसके बाद 2018 में उनकी संविदा पर नियुक्ति को समाप्त कर दिया गया, लेकिन 2020 में उन्हें दोबारा संविदा नियुक्ति दे दी गई। इतना ही नहीं इस बारे में वित्त विभाग से सहमती भी नहीं ली गई। गौरतलब है कि राज्य के विधि- विधायी विभाग के 22 मार्च 2018 को जारी नोटिफिकेशन में रिटायर हुए न्यायाधीशों की संविदा नियुक्ति के नियम बताए गए हैंं। इस नियम के मुताबिक रिटायर हुए न्यायाधीशों को संविदा नियुक्ति 65 साल की उम्र तक ही दी जा सकती है।

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