मिलावटखोरों पर मेहरबानी की खुली पोल

  • दो साल में महज पांच मिलावटखोर पर ही लग सकी एनएसए

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में मिलावटखोरों पर प्रशासन कितना मेहरबान है, इसकी पोल खुद खाद्य एवं सुरक्षा विभाग की उस रिपोर्ट से खुल गई है, जो विभाग द्वारा बीते रोज हाईकोर्ट में पेश की गई है। दरअसल मिलावट के मामले में इन दिनों हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है। इस मामले में हाईकोर्ट का रुख बेहद सख्त बना हुआ है। विभाग द्वारा हाईकोर्ट को दी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि विभाग ने 2021 में मिलावटखोरों के खिलाफ 17 एनएसए की कार्रवाई की थी , जबकि इसके बाद के सालों में  2022 से अब तक महज 5 मिलावटखोरों पर ही एनएसए के तहत कार्रवाई की गई है। इसमें भी इस साल तो अब तक किसी पर भी इस तरह की कार्रवाई की ही नहीं गई है। बीते तीन सालों में  सजा भी 258 लोगों को करा सके हैं। कोर्ट ने इस पूरी रिपोर्ट के परीक्षण के लिए कॉपी न्यायमित्र पवन द्विवेदी को दी है। न्यायमित्र परीक्षण कर वास्तविकता से कोर्ट को अवगत कराएंगे। इस मामले में अब एक अप्रैल को सुनवाई तय की गई है। यह पूरा मामला अवमानना से जुडा हुआ है। गौरतलब है कि 12 मार्च को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने खाद्य एवं सुरक्षा विभाग की कार्रवाई पर हैरानी जताते हुए कहा था कि लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ा मामला है। ऐसे मामले में खाद्य विभाग रिकवरी एजेंट के रूप में काम कर रहा है। इसलिए स्पष्ट जानकारी दें। खाद्य विभाग ने 2021 से 2024 के बीच 47 हजार 731 दूध, दही, पनीर, मावा, घी सहित अन्य खाद्य सामग्री के नमूने लिए। जिन मिलावटखोरों के नमूने अमानक पाए गए, उन पर जुर्माना लगाया, जबकि असुरक्षित पदार्थ के नमूने पर न्यायालय में परिवाद पेश किया।
यह है मामला
उमेश कुमार बोहरे ने हाईकोर्ट में ग्वालियर चंबल संभाग में दूध, दही, पनीर, मावा में मिलावट के कारोबार को लेकर जनहित याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि दोनों संभाग में नकली पनीर, घी, मावा तैयार किया जा रहा है। पूरे देश में इसकी आपूर्ति की जा रही है। इससे लोग बीमार पड़ रहे हैं, लेकिन प्रशासन मिलावट का कारोबार रोकने में नाकाम है। कोर्ट ने जनहित याचिका का दिशा निर्देशों के साथ जनहित याचिका का निराकरण कर दिया, लेकिन कोर्ट के के आदेश के बाद मुख्य सचिव ने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की।

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