ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल: आईपीएस कैलाश मकवाना

  • पंकज जैन
आईपीएस कैलाश मकवाना

रिश्वत अकेली नहीं आती, देने वाले की बददुआ, मजबूरी, दु:ख, वेदना, क्रोध, तनाव, चिंता भी नोटों से लिपटी रहती है। ऐसी नैतिक या यूं कहें कि किताबी ज्ञान देने वाले तो आज के युग मे बहुतेरे मिल जाएंगे, पर, ऐसी बातों को आचरण में लाने वाले बिरले ही मिलेंगे। ऐसे ही कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार, बुद्धिमान और हिम्मत वाले अधिकारी हैं आईपीएस कैलाश मकवाना।
आज स्कूल के मित्र कैलाश मकवाना पर, उनके आचरण, उनके व्यक्तित्व पर लिखने के लिए कलम खुद मजबूर हो गई, कारण, एक खबर आयी कि जिस अधिकारी की 35 सालों की एसीआर एक्सीलेंट रही, वह, अचानक लोकायुक्त महानिदेशक के मात्र छ: माह के कार्यकाल के दौरान क्यों औसत से भी बदतर हो गई? जिस अधिकारी के कामों की तारीफ हमेशा शासन और जनता ने की, जिसके बेहतरीन कामों के प्रतिफल के रूप में महामहिम राष्ट्रपति ने सम्मानित किया, विभाग ने जिसे राइफल दे कर मान दिया (राइफल का सम्मान पुलिस विभाग में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है) उसकी एसीआर मात्र छह माह महानिदेशक, लोकायुक्त  रहते हुए खराब हो जाए घोर आश्चर्य की बात है, या तो यह आश्चर्य है, या, दाल में कुछ तो काला है, आगे खबर पढ़ी तो मामला कांच की तरह साफ नजर आने लगा, भाई ने मात्र छह माह में प्रदेश के दर्जनों वरिष्ठ अधिकारियों की फाइल जिन पर सालों से धूल जम रही थी, उनकी धूल झटक दी, भूचाल तो आना ही था, कइयों को उस धूल से जुकाम हो गया, ताबड़तोड़ सरकार ने एक पूरी भ्रष्ट लॉबी के दबाव में लोकायुक्त महानिदेशक के पद से मुक्त कर दिया, जब पूरे कुएं में भांग घुली हो तो, साफ पानी पीने वालों को बर्दाश्त नहीं किया जाता, यही रीत है और यही बड़ा कारण रहा एसीआर बिगड़ने का भी।
ऐसा नहीं है कि कैलाश ने कभी समझौते नही किये, जहां  संबंधों की, रिश्तों की बात हो तो सबसे ज्यादा समझौते वादी इंसान रहा है कैलाश, पर कर्तव्य और दायित्व के साथ समझौता शब्द भाई के शब्दकोष में कभी रहा ही नहीं। हम लोटी स्कूल, उज्जैन के मित्रों से पूछो जरा की क्या मायने होते है कैलाश मकवाना होने के? अपना पूरा एकेडमिक उम्दा रैंक के साथ पूरा किया, हर परीक्षा चाहे वह स्कूल की हो, इंजीनियरिंग की हो, चाहे यूपीएससी की हो, हर परीक्षा में अव्वल, जैसे फितरत रही हो अव्वल रहने की। अपनी पूरी पुलिस सेवा में कई महती उपलब्धि हासिल की,मुरैना में रह कर डकैतों में पुलिस का खौफ पैदा किया, जबलपुर रायपुर में पोस्टिंग के दौरान उन्मादी भीड़ को कंट्रोल किया। हर जगह अपनी छाप छोड़ी भले ही दंतेवाड़ा एवं बस्तर में नक्सलियों को काबू में रखना हो,ग्वालियर में रहकर चंबल में बीहड़ के डाकुओं की नकेल कसने का काम हो, हर मोर्चे पर इस ईमानदार और जांबाज अफसर ने अपनी छाप छोड़ी,जहां  रहा अपना सर्वश्रेष्ठ दिया।
मंदसौर में मादक पदार्थ, कंजर गतिविधि पर नियंत्रण, उज्जैन सिंहस्थ 2004 में नोडल अधिकारी के रूप में सफल कार्यकाल भी उल्लेखनीय रहे।
आज के युग में नमक के दरोगा नहीं मिलते है, यदि प्रदेश की किस्मत से मिल गया है, तो, शासन को ऐसे नमक के दरोगा को अबेर के रखना चाहिए, रखना पड़ेगा, तब ही प्रधान मंत्री मोदी जी के सुशासन का स्वप्न यथार्थ
रूप लेगा।
एक ऐसा अधिकारी जो अपने पूरे सेवाकाल में लोकसेवा के प्रति समर्पित रहा, उच्च आदर्शों का पालन करते हुए अपने अधीनस्थों के बीच भी रोल मॉडल रहा, उसकी  एसीआर बिगाड़ दी जाती है, और शासन मूक दर्शक बना रहता है तो, शासन के सामने हमेशा यह यक्ष प्रश्न खड़ा हो जाएगा, कि, क्या शासन ईमानदार अधिकारी को नहीं चाहता है, हमारे मुख्यमंत्री जिस तरह से कम समय में नौकरशाहों के बीच में आदर्श स्थापित कर रहे है, कम से कम उनसे तो उम्मीद की ही जा सकती है, कि वे दुर्भावनावश की हुई कार्रवाई में सुधार करवाए।
वैसे भी ऐसे सुधार हमेशा समाज के अंदर एक मिसाल, एक नजीर पेश करते है।
(लेखक समाजसेवी हैं)

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