अफसरों पर भारी पड़ रहें हैं ठेकेदार

 ठेकेदार
  •  बढ़ जाती है लागत और लोग होते रहते हैं परेशान

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। राजधानी होने के बाद भी भोपाल में शायद ही ऐसा कोई सरकारी प्रोजेक्ट है , जो समय पर पूरा हुआ हो। वह फिर सडक़ निर्माण का हो या फिर आवास का। कई प्रोजेक्ट तो ऐसे हैं, जो तय समय से बेहद पीछे चल रहे हैं। इसकी वजह से उनकी लागत बढ़ती है और लोग परेशान भी होते रहते हैं। बावजूद इसके अफसर काम में देरी करने वाले ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई करने में रुचि नहीं दिखाते हैं, जिसकी वजह से ठेकेदारों की मनमानी पर लगाम नहीं लग पाती है। इसके उलट कई प्रोजेक्ट तो ऐसे हैं, जिनमें देरी के बाद भी उनकी लागत सरकारी विभागों द्वारा बढ़ाकर ठेकेदारों को उपकृत करने का कोई मौका नहीं छोड़ा जाता है। ऐसा ही एक प्रोजेक्ट है टीटी नगर में स्मार्ट हाउसिंग का। इस पर काम बंद हुए दो साल का समय हो चुका है। इसके बाद भी ठेकेदार पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई करने का कदम नहीं उठाया जा रहा है। काम बंद होने की वजह से करीब छह माह पहले ठेकेदार एजेंसी को करार खत्म करने का नोटिस तो थमाया गया, लेकिन उसके बाद से ही कार्रवाई करना जिम्मेदार भूले हुए है। छह माह का समय होने के बाद भी स्मार्ट सिटी के आला अफसर कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे हैं। इसकी वजह से न केवल प्रोजेक्ट लेट हो रहा है बल्कि, लागत और बढ़ना भी तय माना जा रहा है। दरअसल यह पूरा मामला हैं भोपाल स्मार्ट सिटी द्वारा  गैमन इंडिया के पीछे 1344 मकान बनाने के प्रोजेक्ट का। वहां 14-14 मंजिल के 12 टॉवरों में 448 जी, 224 एच और 672 आई टाइप मकानों का निर्माण किया जाना था। प्रोजेक्ट पर 314 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान लगाया गया था। इसके लिए क्यूब कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग लिमिटेड को पांच अक्टूबर, 2018 को कार्यादेश जारी किया गया था। इसके बाद भी अब तक मौके पर नाम मात्र का काम ही हो सका है।
दो की जगह तीन साल का हो चुका है समय  
कंपनी के इस प्रोजेक्ट 24 महीने यानी 14 अक्टूबर, 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य तय किया गया था। इसके बाद भी एक साल से अधिक का समय और हो चुका है, लेकिन काम गति नहीं पकड़ पा रहा है। अहम बात यह है कि तय अवधि समाप्त होने से पहले ही कंपनी ने काम पूरा करने के लिए अतिरिक्त  समय मांग लिया था, जिसकी वजह से उसे ढाई माह का अतिरिक्त समय दिया गया था। इसकी वजह से उसे प्रोजेक्ट 31 दिसंबर, 2022 तक पूरा करना था। इसके बाद भी ठेकेदार द्वारा काम को पूरा नहीं किया गया है। अब अतिरिक्त समय के बाद एक साल से अधिक का समय हो चुका है , लेकिन प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो सका है। कंपनी ने इसके लिए साइट सौंपने में देरी, स्मार्ट सिटी से भुगतान में लेटलतीफी समेत कई कारण बताते हुए देरी की वजह का ठीकरा स्मार्ट सिटी के सिर पर ही फोड़ दिया है। खास बात यह है कि इस बीच ठेकेदार ने लागत बढ़ने का हवाला देते हुए एस्केलेशन (बढ़ी हुई लागत) देने की मांग स्मार्ट सिटी से करना शुरु कर दिया था। जिसे खारिज कर दिया गया। इसके पीछे स्मार्ट सिटी ने वजह बताई थी की करार में एस्केलेशन का प्रावधान नहीं है। इसके बाद से ही ठेकेदार कंपनी द्वारा काम पूरी तरह से बंद कर दिया गया है। काम पूरी तरह से बंद किए जाने के बाद बीते साल स्मार्ट सिटी ने जून में कंपनी को करार खत्म करने का नोटिस थमा दिया था, लेकिन इस नोटिस का भी ठेकेदार पर कोई असर नहीं पड़ा। अब यह नोटिस जारी किए करीब सात माह का समय हो चुका है, लेकिन स्मार्ट सिटी के अफसर कार्रवाई के लिए इससे आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।  
और भी हैं कई उदाहरण
इसी तरह का एक और मामला कोलार सिक्स लेन का है। इस 15 किमी की सडक़ निर्माण की समय सीमा एक साल रखी गई थी , लेकिन सवा साल का समय हो चुका है, फिर भी सडक़ का आधा हिस्सा भी नहीं बन सका है। इसके उलट ठेकेदार को उपकृत करने के लिए इस अवधि में सडक़ की लागत जरुर बढ़ाकर 292 करोड़ कर दी गई है। अहम बात यह है कि इस सडक़ के ठेके में देरी होने पर हर दिन एक लाख रुपए के जुर्मान का प्रावधान था , लेकिन इस प्रावधान पर भी अमल करना जिम्मेदार भूल गए हैं और अब तो ठेकेदार को पूरी तरह से उपकृत करने तक के बहाने तलाश लिए गए हैं।  

Related Articles