
- मप्र विधानसभा को मिल सकता है उपाध्यक्ष
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र विधानसभा लगभग चार वर्षों से बिना उपाध्यक्ष के चल रही है। 16वीं विधानसभा के शीतकालीन सत्र शुरू होने के साथ ही यह मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और नव निर्वाचित विधायक नरेंद्र सिंह तोमर निर्विरोध विधानसभा अध्यक्ष चुने जाएंगे।
सोमवार को उन्होंने भाजपा और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के साथ विधानसभा पहुंच कर नामांकन भरा। विधानसभा अध्यक्ष का चयन 20 दिसंबर को होगा। जिस तरह कांग्रेस ने सोमवार को विधानसभा अध्यक्ष के लिए नरेंद्र सिंह तोमर को समर्थन दिया है उससे उम्मीद की जा रही है कि इस बार विधानसभा उपाध्यक्ष का पद कांग्रेस को मिल सकता है। दरअसल, राज्य विधानसभा में विपक्ष में बैठने को मजबूर हुई कांग्रेस की नजर विधानसभा उपाध्यक्ष के पद पर है। इसी मंशा से पार्टी ने विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव में सत्ता पक्ष का समर्थन किया है। सोमवार को विधानसभा अध्यक्ष के लिए जब नरेंद्र सिंह तोमर ने नामजदगी का पर्चा दाखिल किया, तब नेता प्रतिपक्ष के लिए चयनित कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार, उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे, वरिष्ठ विधायक व पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल समेत पार्टी के तमाम विधायकों ने समर्थन किया। ऐसे में तोमर का निर्विरोध अध्यक्ष चुना जाना तय है। माना जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव में समर्थन करने का फैसला पूरी रणनीति के तहत लिया है। कांग्रेस ने अध्यक्ष के निर्वाचन में अपना उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला कर सत्ता पक्ष का समर्थन भी किया है। कांग्रेस विधायक दल से मिले समर्थन पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि आज विपक्ष ने सकारात्मक संदेश दिया है। नए अध्यक्ष का नामांकन जमा किया गया है। विपक्ष के इस सहयोग का स्वागत करता हूं।
कांग्रेस ने तोड़ी थी परंपरा
बता दें कि 2019 में विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचन कराया गया था, लेकिन इस बार भाजपा पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई है। ऐसे में, पूर्व से चली आ रही परंपरा को बरकरार रखते हुए इस बार विधानसभा अध्यक्ष निर्विरोध चुना जा रहा है। नवंबर 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद, कांग्रेस ने मप्र विधानसभा की 29 साल की परंपरा को तोड़ते हुए, जनवरी 2019 में डेप्युटी स्पीकर का पद जीता। हिना लिखीराम कावरे मार्च 2020 तक डेप्युटी स्पीकर की भूमिका में रहीं। राज्य सचिवालय के अधिकारियों के अनुसार, मप्र विधानसभा में डेप्युटी स्पीकर के बिना यह सबसे लंबा समय है। 1990 के दशक से चली आ रही परंपरा के अनुसार, सत्ता पक्ष स्पीकर की नियुक्ति करता है, जबकि डेप्युटी स्पीकर का पद विपक्ष को दिया जाता है। हालांकि, 2019 में भाजपा के पास 109 विधायक होने के कारण, उन्होंने स्पीकर पद के लिए चुनाव का आह्वान किया। पार्टी ने डिप्टी स्पीकर पद के लिए जगदीश देवड़ा, जो अब डिप्टी सीएम हैं, का नाम प्रस्तावित किया था, हालांकि यह अंतत: कांग्रेस के पास चला गया। मार्च 2020 में सत्ता में लौटने पर भाजपा ने भी कांग्रेस को उपाध्यक्ष का पद नहीं दिया था। हालांकि भाजपा ने किसी और को भी पूरे सत्र के दौरान उपाध्यक्ष नहीं बनाया था। उपाध्यक्ष का पद पूरे समय रिक्त था।
कांग्रेस को उपाध्यक्ष पद की उम्मीद
इस बार कांग्रेस इस जुगत लगा रही कि भाजपा उसे उपाध्यक्ष का पद दे दे। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा कि परंपरा के अनुसार विपक्ष को उपाध्यक्ष का पद मिलना चाहिए, लेकिन सब कुछ सत्ता पक्ष को तय करना है। हमने सियासी सहृदयता दिखाते हुए अध्यक्ष पद के लिए सत्ता पक्ष का समर्थन किया है। ऐसी संभावना है कि इस विधानसभा सत्र के दौरान डिप्टी स्पीकर का चयन भी सर्वसम्मति से किया जा सकता है। स्पीकर के शपथ ग्रहण के बाद डिप्टी स्पीकर के लिए प्रक्रिया शुरू होने की उम्मीद है। डिप्टी स्पीकर को स्पीकर की अनुपस्थिति में न केवल सत्र की अध्यक्षता करनी होती है, बल्कि वह महत्वपूर्ण समितियों का नेतृत्व भी करता है। डिप्टी स्पीकर मीडिया गैलरी सलाहकार समिति और विधायकों के बीच समन्वयक के रूप में भी काम करते हैं। यह विधायकों के वेतन और भत्तों के संशोधन के लिए समिति के प्रमुख होते हैं। आगामी सत्र में सभी निर्वाचित विधायक शपथ लेंगे। इसके बाद, विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव किया जाएगा। बाद में वे कार्यभार संभालेंगे और राज्य विधानसभा के लिए अगले कदम का निर्धारण करेंगे। हालांकि सत्र छोटा होने की उम्मीद है, लेकिन अधिकारियों का सुझाव है कि अगर सरकार चाहे तो डिप्टी स्पीकर का चुनाव किया जा सकता है। सदन की 230 सीटों में से 163 सीटें जीतने वाली भाजपा इस बार बड़ा दिल दिखाते हुए विपक्ष को यह पद दे सकती है। इस तरह के संकेत भी मिलने लगे हैं।