
- ढाई दर्जन सीटों पर कर लिया जाता है कब्जा
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग के वरिष्ट अधिकारियों ने दोस्तों-रिश्तेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए अजीब नियम बनाए हैं। इसके तहत खास लोगों को मुफ्त का मनोरंजन देने के लिए कार्यक्रम की निगरानी के बहाने चहेतों को जमकर उपकृत किया जाता है। यही नियम आयोजकों पर भारी पड़ता है।
दरअसल सबसे पुराने सांस्कृतिक केंद्र रवींद्र भवन में कोई भी बड़ा निजी कार्यक्रम हो 32 सीटें पहले ही आरक्षित कर दी जाती हैं। परंतु साहबों की यह दरियादिली कार्यक्रम के आयोजकों के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द बन चुकी है। क्योंकि एक तो पहले से ही रवींद्र भवन का किराया अप्रत्याशित रूप से बढ़ा दिया गया है और उस पर जब आयोजक किसी बड़े कलाकार को लाखों रुपए की मोटी रकम देकर बुलाता है तो, तुगलकी फरमान के अनुसार सभागार की प्रथम पंक्ति की 32 सीटें उन्हें निर्देशानुसार छोड़नी पड़ती हैं। इससे एक कार्यक्रम में आयोजक को डेढ़ से दो लाख रुपए का नुकसान हो जाता है। अफसरों की यह मनमानी विभाग को भुगतनी पड़ रही है, क्योंकि आदेश के बाद आयोजकों में निराशा है और वे अपने इवेंट्स इंदौर सहित दूसरे शहरों में शिफ्ट करने पर मजबूर हो रहे हैं।
कम होते जा रहे आयोजक
26 जनवरी 2022 को रवींद्र के नए सभागार का शुभारंभ हुआ था और इसे एक प्रीमियम कन्वेंशन सेंटर के रूप में स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया था। शुरुआती डेढ़ साल में यहां सांस्कृतिक कार्यक्रमों की बयार लगी रही, परंतु सीट रिजर्व वाले आदेश के बाद आयोजक रवींद्र भवन में कार्यक्रम नहीं करना चाहते हैं। वजह स्पष्ट है कि कार्यक्रम से उन्हें जो मुनाफा होता है ,उस पर अधिकारियों की दोस्ती-रिश्तेदारी हक मार लेती है। दरअसल किसी भी कार्यक्रम में फ्रंट सीट्स सबसे महंगी होती हैं। एक सीट की कीमत 5 से आठ हजार के बीच की होती है, वहीं 32 सीटों के रिजर्व करने पर यह आंकड़ा डेढ़ से दो लाख रुपए तक पहुंच जाता है। कहना गलत नहीं होगा कि संस्कृति विभाग के शीर्षस्थ अधिकारियों के रिश्ते-नाते अब विभाग पर भारी पड़ रहे हैं। साथ ही शहर की एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री भी इससे प्रभावित हो रही है।
जितने कर्मचारी नहीं उतनी सीटें आरक्षित
आदेश पर बड़ा सवाल यह है कि म्यूजिक शो जैसे कार्यक्रम में क्या ऑब्जर्व किया जाता है, ऑब्जर्वेशन टीम में कौन है और इसमें 32 लोगों की आवश्यकता क्यों है?, इस पर जब दैनिक जागरण ने प्रमुख सचिव शुक्ला, संस्कृति संचालक अदिति कुमार त्रिपाठी एवं रवींद्र भवन की सहायक संचालक मधु चौधरी से बात की तो कोई भी स्पष्ट जवाब नहीं दे सका। किसी ने कहा रवींद्र भवन के कर्मचारी ऑब्जर्वेशन करते हैं तो किसी ने अन्य विभाग के अधिकारियों द्वारा ऑब्जर्वेशन किए जाने की बात कही। ये दोनों ही जवाब असंतुष्ट करने वाले हैं क्योंकि रवींद्र भवन के पास तो 32 सीटों पर बैठने के लिए स्टाफ भी मौजूद नहीं है।
पहली पंक्ति की सीटों पर ही फोकस
संस्कृति एवं पर्यटन विभाग के प्रमुख सचिव शिवशेखर शुक्ला के अनुमोदन पर करीब पांच माह पहले जुलाई में यह आदेश जारी किया गया था। इसके अंतर्गत रवींद्र भवन के सभी तीन सभागारों में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में सीट आरक्षण के नियम का वर्णन किया गया है। 1500 दर्शक क्षमता के सबसे बड़े हंसध्वनि सभागार में 32 सीट, 516 सीट कैपेसिटी के अंजनि सभागार में 16 तथा सबसे छोटे गौरांजनि सभागार में 14 सीटें ऑब्जर्वेशन के नाम पर रिजर्व की जाती हैं। यूं तो इस आदेश में सिर्फ रिजर्वेशन की बात लिखी गई है तो सीटें सभागार की किसी भी पंक्ति में आरक्षित की जा सकती हैं, परंतु अधिकारियों की बॉस ऐसी है कि आयोजकों को सबसे कीमती पहली या दूसरी पंक्ति की सीटें ही खाली छोड़ना पड़ती हैं।