पार्टी में अब नहीं होती… उमा भारती की पूछ परख

उमा भारती

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। एक समय ऐसा था जब प्रदेश के ही नहीं देश की राजनीति के फलक पर भी उमा भारती की गिनती उन नेताओं में होती थी , जिनका अपना राजनैतिक रसूख था , लेकिन समय के साथ यह रसूख कम होता चला गया और आज हालत यह है कि पार्टी ने उन्हें प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव के लिए स्टार प्रचारकों की सूची में भी रखना मुनासिब नहीं समझा है। प्रवचनों के माध्यम से ओजस्वी वक्ता की छवि बनाने वाली उमा भारती अब पार्टी में बीते समय की बात बनती जा रही है। अन्यथा एक वह दौर भी रहा है, जब उनकी मर्जी के बगैर खासतौर पर प्रदेश में पार्टी का कोई भी निर्णय नहीं होता था। यही वजह थी की प्रदेश का उन्हें न केवल मुख्यमंत्री बनाया गया , बल्कि अटल जी से लेकर नरेंद्र मोदी तक की सरकार में उन्हें केन्द्रीय मंत्री के रुप में भी काम करने का मौका दिया गया। इस बीच वे अपने कामकाज की वजह से कम, बल्कि बयानों की वजह से अधिक चर्चा में रहीं।
इस बीच उन्हें उप्र में भी विधानसभा चुनाव के समय एक बार मुख्यमंत्री पद का चेहरा पार्टी द्वारा बनाया गया था, लेकिन अब उनका कद पार्टी में लगातार कम होता जा रहा है। कभी रूठने और कभी मोदी को विचार बताकर उनकी तारीफ करने वाली उमा के अस्थिर बयानों ने उनकी न केवल छवि को बल्कि, पार्टी में उनके महत्व को तेजी से कम किया है। यही वजह है कि अब पार्टी के लिए उनकी अनुपस्थिति महत्वहीन होती जा रही है। चुनाव के बीच कुछ दिन पहले ही उनके द्वारा ऐलान किया गया था कि वह हिमालय जाकर तपस्या करेंगी। इसके उलट वे वहां जाने की जगह चुनाव प्रचार में उतर गईं। इस दौरान उनके द्वारा कहा गया कि अब वह चुनाव प्रचार नहीं करेंगी। इसके पहले शराब बंदी का मामला हो या फिर रायसेन किले में स्थित शिवमंदिर की ताला बंदी का। इन मामलों में भी वे अपनी ही पार्टी को मुसीबत में डाल चुकी हैं। इनके अलावा भी कई अन्य कारण हैं, जिसकी वजह से पार्टी में उनका महत्व कम होता चला गया। दरअसल, उमा भारती लंबे समय से पार्टी की उपेक्षा का शिकार बनी हुई हैं। वे समय -समय पर चुनाव लडऩे और न लड़ने तक की बात कहती रही हैं। बीता लोकसभा चुनाव न लड़ने का ऐलान करने वाली उमा भारती कुछ महीने पहले 2024 का लोकसभा चुनाव लडऩे की इच्छा सार्वजनिक रुप से जाहिर कर चुकी हैं। यह बात अलग है कि उन्हें अब तक पार्टी की ओर से इस मामले में कोई आश्वासन नहीं मिला है।  अपने इंटरनेट मीडिया एक्स हैंडिल पर भाजपा की ही आलोचना करती हैं तो कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर तारीफ करती हैं। उन पर विपक्ष नेता परिवारवाद का भी आरोप लगाते हैं। इन आरोपों की अपनी वजहें भी हैं।
हार का भी सामना कर चुकी हैं  
उमा भारती ऐसी नेता हैं, जो मुख्यमंत्री रहने के बाद भी अपने घर में ही विधानसभा चुनाव हार चुकी हैं। टीकमगढ़ विधानसभा सीट पर 2008 विधानसभा चुनाव में प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को कांग्रेस नेता यादवेंद्र सिंह बुंदेला ने करीब नौ हजार से अधिक मतों से हराया था। उमा भारती को इसके पहले अपने पहले लोकसभा चुनाव में भी हार मिली थी। वे खजुराहो के अलावा झांसी लोकसभा सीट से भाजपा की सांसद रह चुकी हैं।

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