हरल्लों पर दांव… जीत का विश्वास

हरल्लों पर दांव

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। विधानसभा चुनाव के जंग का मैदान सज गया है। भाजपा-कांग्रेस के लड़ाके चुनावी मैदान में उतर गए हैं।  दोनों पार्टियों का एक मात्र लक्ष्य है प्रदेश की सत्ता पर कब्जा। इसके लिए दोनों पार्टियों का दावा है कि उन्होंने जिताऊ प्रत्याशियों को ही टिकट दिया है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि दोनों पार्टियों ने हरल्लों यानी पिछले चुनाव में हारने वाले प्रत्याशियों को भी टिकट दिया है। इसके पीछे भाजपा और कांग्रेस की रणनीति क्या है, ये तो वहीं जाने लेकिन, राजनीतिक विश्लेषक से लेकर पार्टियों के कार्यकर्ता तक हैरान हैं। भाजपा और कांग्रेस की ओर से हारे हुए खिलाडिय़ों पर दांव लगाने से सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या पार्टियां इन विधानसभा क्षेत्रों में नई लीडरशिप तैयार नहीं कर पाई। क्या पार्टियों को नए चेहरों पर दांव लगाने से भितरघात का डर था? ऐसे तमाम सवाल हैं, जिनके जवाब चुनाव नतीजे आने के बाद मिलेंगे।
गौरतलब है कि भाजपा और कांग्रेस की ओर से लगातार दावा किया जा रहा था कि सर्वे और परफॉर्मेंस के आधार पर जिताऊ प्रत्याशियों को टिकट दिया जाएगा। चुनाव के लिए टिकट वितरण से पूर्व भाजपा और कांग्रेस ने प्रत्याशी चयन को लेकर तमाम बड़े-बड़े दावे भी किए थे, लेकिन सारे दावे प्रत्याशियों की अंतिम सूची के प्रकाशन के साथ काफूर हो गए। कांग्रेस कहना था कि सर्वे और स्थानीय पार्टी पदाधिकारियों की सहमति के आधार पर टिकट दिए जाएंगे। भाजपा ने भी सर्वे के आधार पर जिताऊ प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारने की बात बार-बार दोहराई थी, लेकिन जब भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों की सूची जारी की गई, तो हालात ढाक के तीन पात की तरह नजर आए।
100 हारे नेताओं को टिकट
भाजपा और कांग्रेस ने इस बार टिकट के लिए कई पैरामीटर तय किए थे। पार्टियों का दावा था कि इन पैरामीटर पर खरे उतरने वाले नेताओं को ही टिकट दिया जाएगा। लेकिन टिकट वितरण में सारे पैरामीटर धरे के धरे रह गए हैं। दोनों पार्टियों ने बड़ी संख्या में पिछला चुनाव हार चुके नेताओं पर ही इस बार भी भरोसा जताया है। भाजपा ने पिछला चुनाव हार चुके 44 नेताओं को फिर से चुनाव मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस ने पिछला चुनाव हार चुके 56 नेताओं को प्रत्याशी बनाया है। यानी दोनों पार्टियों ने पिछले चुनाव हार चुके 100 प्रत्याशियों को जिताऊ बताकर टिकट दिया है। कांग्रेस में तो कुछ ऐसे प्रत्याशी भी शामिल हैं, जो दूसरे दलों में रहते हुए पिछला चुनाव हारे थे और इस बार पार्टी ने उन्हें अपना प्रत्याशी घोषित किया है। पिछला चुनाव हारे प्रत्याशी, जिन पर पार्टियों ने फिर से दांव लगाया है, क्या वे इस बार भाजपा और कांग्रेस की नैया पार लगा पाएंगे, यह तो चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद पता चलेगा। भाजपा ने जब टिकटों की दूसरी सूची में 3 केंद्रीय मंत्रियों समेत 7 सांसदों और एक राष्ट्रीय पदाधिकारी को चुनाव मैदान में उतारा था, तो सभी लोग चौंक गए थे। कहा गया कि इस बार बची हुई सीटों पर टिकट वितरण में भारी उलटफेर होगा। भाजपा ने 136 प्रत्याशियों की सूचियां जारी करने के बाद 94 सीटों पर टिकट होल्ड कर दिए। इनमें अधिकतर वे सीटें थीं, जहां पिछला चुनाव भाजपा जीती थी। तब कहा गया कि भाजपा इन सीटों पर गुजरात फार्मूला लागू कर सकती है। इन सीटों पर नए चेहरे सामने आएंगे, लेकिन जब प्रत्याशियों की सूची आई, तो भाजपा बड़ी संख्या में मंत्रियों, विधायकों के टिकट काटने का दम नहीं दिखा पाई है। कई सीटों पर पिछला चुनाव हार चूके नेताओं को ही प्रत्याशी बनाया गया।
मप्र चुनाव में सफलता सुनिश्चित करने के लिए भाजपा और कांग्रेस ने नए चेहरों को मैदान में उतारने के साथ ही उन उम्मीदवारों पर भी दांव लगाया है, जो पिछले चुनाव में बड़े मतों के अंतर से पराजित हो गए थे। जबकि, प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया के दौरान दोनों ही दलों के नेताओं द्वारा बार-बार यह बात दोहराई जा रही थी कि अधिक मतों के अंतर से हारने वाले उम्मीदवारों के स्थान पर नए चेहरे आगे किए जाएंगे, पर जब प्रत्याशियों की घोषणा हुई तो, दावे वास्तविकता में बदलते नजर नहीं आए। पिछले एक साल से भाजपा और कांग्रेस के रणनीतिकार दम भर रहे थे कि इस बार टिकटों के वितरण के लिए फुल प्रूफ फॉर्मूला बनाया गया है। लेकिन जब प्रत्याशियों की सूचियां आई तो फॉर्मूले की सारी हकीकत सामने आ गई। कांग्रेस शुरुआत से कह रही थी कि इस चुनाव में सर्वे के आधार पर ही टिकट दिया जाएगा।
प्रत्याशी चयन के लिए राहुल गांधी, कमलनाथ और दिल्ली से भेजे गए पर्यवेक्षकों ने अलग-अलग सर्वे कराए थे। पार्टी ने जिला प्रभारियों और जिला अध्यक्षों से टिकट के दावेदारों के नाम मंगाए थे। यह भी कहा गया कि नारी सम्मान योजना में फॉर्म भरवाना और जन आक्रोश यात्रा में भागीदारी भी टिकट वितरण का आधार होगी, लेकिन जब प्रत्याशियों की सूची जारी हुई तो पीसीसी चीफ कमलनाथ, पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह, नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह के समर्थकों, दूसरे दलों से आए नेताओं और पिछला चुनाव हारे नेताओं को मैदान में उतार दिया गया।
बड़ी हार फिर भी टिकट का उपहार
पिछले चुनाव में बदनावर सीट से भाजपा प्रत्याशी रहे भंवर सिंह शेखावत 41506 मतों से, करेरा से बसपा प्रत्याशी रहे प्रागीलाल जाटव 40026 मतों से, हाटपिपलिया सीट से भाजपा प्रत्याशी दीपक जोशी 13,519 वोट से, बालाघाट से सपा प्रत्याशी अनुभा मुंजारे 27654 मतों से, ग्वालियर ग्रामीण से साहब सिंह गुर्जर 1517 मतों से, पोहरी से बसपा प्रत्याशी कैलाश कुशवाहा 7918 मतों से और गुढ़ सीट से सपा प्रत्याशी कपिध्वज सिंह 7828 मतों से हारे थे। 2018 में हटा से स्वतंत्र लड़े प्रदीप खटीक को 10 हजार वोट मिले थे, वे तीसरे स्थान पर थे। कांग्रेस ने उन्हें भी टिकट दिया है। भाजपा और कांग्रेस ने 2018 में चुनाव हारे जिन नेताओं को इस बार फिर से मौका दिया है, उनमें से कइयों की हार का अंतर इतना बड़ा है कि उसे पाटना मुश्किल होगा। दोनों ही दलों में 15-15 प्रत्याशी ऐसे हैं, जो पिछला चुनाव 10 हजार से अधिक मतों से हारे थे। शाजापुर से भाजपा प्रत्याशी अरुण भीमावद पिछला 44,979 मतों के अंतर से हारे थे। उन्हें कांग्रेस के हुकुम सिंह कराड़ा ने शिकस्त दी थी। ऐसे ही पाटन से कांग्रेस प्रत्याशी नीलेश अवस्थी पिछला चुनाव भाजपा के अजय विश्नोई से 26,712 मतों के अंतर से हारे थे। दोनों ही दलों में ऐसे कई प्रत्याशी हैं, जो पिछला चुनाव 10 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से हारे थे। वहीं भाजपा ने 2018 के चुनाव में 25 हजार से ज्यादा अंतर से हारने वाले आठ उम्मीदवारों पर फिर भरोसा जताया है। जबकि, कांग्रेस ने ऐसे तीन उम्मीदवारों पर दांव लगाया है। दरअसल, जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण इन उम्मीदवारों का साथ दे रहे हैं। यही कारण है कि दोनों पार्टियों ने बड़ी हार के बाद भी इन पर विश्वास जताते हुए फिर प्रत्याशी बनाकर मौका दिया है। 25 हजार से अधिक मत से हारने वाले प्रत्याशियों में भाजपा ने श्योपुर से दुर्गालाल विजय, भैंसदेही से महेंद्र सिंह चौहान, राजगढ़ से अमर सिंह यादव, खिलचीपुर से हजारीलाल दांगी, शाजापुर से अरुण भीमावत, महेश्वर से राजकुमार मेव, थांदला से कल सिंह भांबर, गंधवानी से सरदार सिंह मेड़ा को टिकट दिया है। वहीं, कांग्रेस ने  पाटन से नीलेश अवस्थी और सुसनेर से भेरू सिंह बापू को बड़ी हार के बाद भी चुनाव लड़ाया है। इसके उलट, दोनों दल में कुछ ऐसे प्रत्याशी भी रहे हैं, जो पिछले चुनाव में पांच हजार से कम अंतर से चुनाव हारे थे, लेकिन इस बार उन्हें चुनाव नहीं लड़ाया है। ज्यादा मतों के अंतर से हारने वाले उम्मीदवारों के लिए यह चुनाव बड़ी चुनौती है। इस बार भी हारने पर उनका राजनीतिक भविष्य दांव पर लग सकता है। दरअसल, जहां ऐसे प्रत्याशियों को पार्टियों ने मैदान में उतारा है वहां के जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण उनके पक्ष में है। दोनों दलों के आंतरिक सर्वे में भी इन प्रत्याशियों का कोई विकल्प नहीं मिला। तीसरा यह कि बड़े अंतर से हारने के बाद भी पराजित प्रत्याशी क्षेत्र में सक्रिय रहे, इस कारण उन्हें मैदान में उतारा गया। पिछले चुनाव के आंकड़ों के आधार पर देखें तो भाजपा ने अधिक अंतर से हारने वाले ज्यादा प्रत्याशी उतारे हैं। कांग्रेस इस मामले में भाजपा से पीछे है। दोनों पार्टियों का ध्यान भी इन सीटों पर ज्यादा है। यहां दोनों दलों के बड़े नेताओं की सभाएं भी हो सकती हैं।

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