
शहरों में स्थिति बेहद खराब
भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में एक तरफ सरकार कोशिश कर रही है कि प्रदेश के हर गरीब व्यक्ति के सिर के ऊपर पक्की छत हो। इसके लिए प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री आवास योजना भी शुरू कर दी है। वहीं दूसरी तरफ स्थिति यह है कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान बनाने का पैसा लेकर भी लोग मकान नहीं बना रहे हैं। प्रदेश में ऐसे लोगों की संख्या कुछ सैकड़ा नहीं बल्कि 50 हजार से अधिक है। अब सरकार ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की तैयारी कर रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024 तक हर गरीब के सिर पर छत उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसे हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना और प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना चल रही है। लेकिन प्रदेश के 50 हजार से ज्यादा शहरी क्षेत्र के गरीबों ने पैसे लेने के पांच साल बाद भी पीएम आवास नहीं बनाए हैं। इसमें से आधे से अधिक हितग्राहियों ने तो आवास की नींव तक नहीं खोदी। जानकारी के अनुसार सरकार शहरी क्षेत्र के उन लोगों से धन की वसूली करने की तैयारी में जिन्होंने प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना में धन लेकर भी मकान नहीं बनवाया है। अपर आयुक्त नगरीय प्रशासन कैलाश वानखेड़े का कहना है कि अभी तो लोगों को आवास देने के लिए समझाइश दी जा रही है कि आवास के लिए मिली राशि से आवास बना लें। इसके बाद हितग्राहियों से राशि वसूली की कार्रवाई की जाएगी।
सागर जिला सबसे आगे
प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत सरकार से राशि लेकर मकान नहीं बनाने वालों में सबसे अधिक सागर जिला में मामले हैं। अब नगरीय प्रशासन एवं आवास विभाग इस मामले में हितग्राहियों राशि वसूली करने की तैयारी कर रहा है। सूत्रों के अनुसार इन हितग्राहियों ने पीएम आवास के लिए डाली गई राशि निजी कार्यों में खर्च कर ली। अब निकायों की टीम इन हितग्राहियों से डिक्लेरेशन लेगी और अगर वो आवास नहीं बनाते हैं तो, उनसे राशि वसूली जाएगी।
इसमें कुछ ऐसे भी हितग्राही शामिल हैं, जिनकी या तो मौत हो गई है या फिर वो कहीं और माइग्रेट हो चुके हैं। विभाग ने सभी निकायों को हितग्राहियों के घर-घर जाकर चर्चा करने के लिए कहा है। शिवपुरी के रघुराज सहरिया का कहना है कि सरकार से मुझे आवास बनाने के लिए राशि मिली थी। इस राशि को मैने निजी काम में नहीं बिक रहे आवास
प्रदेश में सरकार द्वारा बनवाए जा रहे मकानों के प्रति भी लोगों का रुझान कम है। इसी का परिणाम है कि सामान्य आय वर्ग के आवासहीनों के लिए शहरों में बनाए गए 60 फीसदी एएचपी (साझेदारी में किफायती) आवास नहीं बिके हैं। इसमें जबलपुर नगर निगम सबसे आगे हैं। यहां चार हजार आवास बनाए गए थे, जिसमें से 90 फीसदी आवास नहीं बिके हैं। भोपाल और इंदौर नगर निगम में 40-40 फीसदी आवासों को लेने के लिए हितग्राही तैयार नहीं हैं। ये आवास बनकर तीन वर्ष पहले तैयार हो गए थे। प्रदेश के 40 निकायों में 50 हजार आवास बनाए गए थे। एएचपी योजना में सरकार सब्सिडी प्रदान करती है। बीएलसी (लाभार्थी के नेतृत्व में निर्माण) घटक के आवास भोपाल, इंदौर सहित चारों महानगरों में नहीं बनाए गए थे। इस घटक में हितग्राही के पास शहर में जमीन होती है और उस पर घर बनाने के लिए सरकार की तरफ से ढाई से तीन लाख रुपए किस्तों में दिए जाते हैं। हितग्राही अपना मकान खुद बनाते हैं। प्रदेश में 50 हजार अधिक आवासों की राशि सरेंडर कर दी गई है। उन्होंने इसका कारण आर्थिक स्थिति खराब होना बताया है। कई ऐसे भी हितग्राही हैं जो दस्तावेजों के सत्यापन में खरे नहीं उतरे हैं।लगा दिया है। आवास बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं।