
- हर बार बसपा रहती है चुनौती
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश का ग्वालियर-चंबल अंचल वह इलाका है, जहां पर आरक्षित वर्ग यानि की अनुसूचित जाति का प्रभाव ऐसा है कि वो जिस दल के साथ खड़ा हो जाता है, उसकी ही जीत हो जाती है। खास बात यह है कि इस इलाके में बसपा का प्रभाव रहता आया है, जिसकी वजह से भी हार-जीत प्रभावित होती रही है। इसकी वजह से प्रत्याशियों के साथ ही भाजपा व कांग्रेस का सियासी गणित कई बार गड़बड़ा जाता है। अंचल का यह बड़ा वर्ग इस बार किसके साथ खड़ा होगा अभी कहना मुश्किल है। इसकी वजह है एट्रोसिटी एक्ट के विरोध में हुआ आंदोलन। इस आदोंलन की वजह से ही अंचल में वर्ग संघर्ष की स्थिति बन चुकी है। इसका असर अब भी अंचल में देखा जा सकता है। इसकी वजह है उस समय की गई कानूनी कार्रवाई। बीते आम चुनाव के ठीक पहले हुए इस आंदोलन की आंच ने भाजपा को ऐसा झुलसाया था, की 34 में से 26 सीटें कांग्रेस के खाते में चली गई थी, जिसकी वजह से भाजपा को डेढ़ दशक बाद सत्ता से बाहर होना पड़ गया था। कांग्रेस की सरकार बनने पर घोषणा की गई थी कि इस वर्ग पर दर्ज मामलों को वापस ले लिया जाएगा , लेकिन ऐसा नहीं हो सका, जिसकी वजह से भाजपा के बाद यह वर्ग कांग्रेस से भी खफा हो गया था। अब इस वर्ग की नाराजगी किस दल से कितनी है यह खुलकर सामने नहीं आने से अनुमान लगाना कठिन बना हुआ है। अगर अंचल की सियासी ताकत को देखा जाए तो भाजपा में यहां के बड़े नेताओं का दबदबा बना है जबकि, कांग्रेस के पास गिने चुने ही चेहरे हैं। फिर बात चाहे सरकार की हो या फिर संगठन की। इस अंचल के तहत कुल 34 विधानसवभा सीटें आती हैं। जिसमें से बीते आम चुनाव में कांग्रेस ने 26 सीटों पर जीत दर्ज कर भाजपा को तगड़ा झटका दिया था। यह बात अलग है कि उसे समय कांग्रेस में इस अंचल में सर्वाधिक प्रभावी श्रीमंत जैसा चेहरा था, जो अब भाजपा में हैं। श्रीमंत के भाजपा में आने के बाद इस अंचल की 16 सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने नौ और कांग्रेस ने सात सीटों पर जीत दर्ज की थी। यह उपचुनाव ऐसे समय हुए थे , जब भाजपा की सत्ता आ चुकी थी। आज की स्थिति में कांग्रेस इस अंचल में कितनी मजबूत है इससे ज्यादा चर्चा इस बात की हो रही है कि कई गुटों में बंटी हुई भाजपा कितनी मजबूर रहती है। दरअसल सिंधिया के आने के बाद नई और पुरानी भाजपा के बीच तालमेल बैठाना पार्टी के लिए बेहद मुश्किल बना हुआ है।
बसपा फिर प्रभावी बनने के प्रयास में
इस अंचल का एससी वर्ग पूर्व में मतदाताओं के साथ ही बना रहता था, जिसकी वजह से अंचल में बसपा तीसरी सबसे बड़ी सियासी ताकत के रुप में सामने आती रही है। बीते चुनाव में वह कांग्रेस के पाले में खड़ा हो गया था, जिसकी वजह से कांगेे्रस सरकार बनाने में प्रयास रही थी, लेकिन अब एक बार फिर से बसपा अंचल के अपने पुराने वोट बैंक पर पकड़ बनाने के लिए सक्रिय हो चुकी है। इस बीच भाजपा-कांग्रेस दोनों एससी वर्ग को साधने में पूरी ताकत लगाए हुए है। इन्हीं प्रयासों के तहत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संत रविदास मंदिर की आधारशिला रखी। संत रविदास के सर्वाधिक अनुयायी इसी क्षेत्र में हैं। भाजपा को उम्मीद है कि इन प्रयासों का फायदा उसे मिशन 2023 में मिलेगा। वहीं इस वर्ग को साधने के लिए कांग्रेस भी अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष को सागर लाने जा रही है। वे दलित वर्ग से आते हैं। श्रीमंत के साथ भाजपा में जाने वाले चार बड़े नेताओं की कांग्रेस में वापसी से भाजपा के साथ-साथ सिंधिया भी असहज हैं। कुछ समय में कोलारस से धाकड़ समाज के नेता रघुराज धाकड़, शिवपुरी में श्रीमंत का चुनाव प्रबंधन देखने वाले राकेश गुप्ता, चंदेरी से जयपाल व रघुराज सिंह यादव और शिवपुरी से बैजनाथ यादव की कांग्रेेस गृह वापसी करा चुकी है। इसकी वजह से अब अंचल में समीकरण भी बदलते हुए दिखना शुरु हो गए हैं। बीते चुनाव में इस अंचल की 34 सीटों में से कांग्रेस को 26 भाजपा को 7 एवं 1 सीट बसपा को मिली थी। 2020 में उपचुनाव के बाद सीटों का गणित बदला कांग्रेस 17 सीट पर सिमट गई।
अंचल से स्वाभाविक अपेक्षा
ग्वालियर-चंबल क्षेत्र प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा, चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा प्रदेश मंत्रिमंडल में एक दर्जन से अधिक मंत्री आते हैं। इसके अलाव निगम मंडलों में भी इस अंचल का प्रभाव कायम है। ऐसवे में यह स्वाभाविक अपेक्षा है कि यहां पार्टी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करके दूसरे अंचलों के सामने उदाहरण प्रस्तुत करे।
कार्यकर्ताओं में नाराजगी
प्रदेश की ही ताह इस अंचल में भी कार्यकर्ता अपनी उपेक्षा से विधायकों व मंत्रियों से नाराज हैं तो जनता भी तमाम दावों-वादों के बावजूद संतुष्ट दिखाई नहीं दे रही है। हालांकि बड़े नेताओं के साथ भाजपा अब तेजी से अंचल में सक्रिय हो चुकी है। उधर, कांग्रेस धीरे-धीरे महल के करीबी प्रभावशली नेताओं को वापस लाने में लगी हुई है। इस अंचल में भाजपा में सर्वाधिक नए व पुराने कार्यकर्ताओं में मतीोद और मनभेद की स्थिति बनी हुई है। इस अंचल के तहत ग्वालियर और चंबल संभाग आते हैं। इनमें से ग्वालियर की छह विधानसभा सीटों में से भाजपा के पास दो ही हैं। एक सीट से ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर सिंधिया कोटे से और दूसरी सीट से उद्यानिकी राज्य मंत्री भारत सिंह कुशवाह नरेंद्र सिंह तोमर कोटे से माने जाते हैं। फिलहाल दोनों को कड़े संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है।