- हरीश फतेहचंदानी

टॉपर्स को कलेक्टर का मंत्र
निमाड़ अंचल के खरगोन जिले के कलेक्टर शिवराज सिंह वर्मा हाल ही में जिले की प्रत्येक स्कूल के टॉपर विद्यार्थियों से रूबरू हुए। उन्होंने विद्यार्थियों को सीख दी की सफलता मिलने के बाद आपके आसपास दुर्गुण मंडराने लगते हैं, इसलिए उससे बचना जरूरी है। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि एक जमाना था, जब विद्यार्थियों को कुछ नहीं मिलता था। लेकिन वर्तमान सरकार विद्यार्थियों के उत्साहवर्धन और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए कई योजनाएं चला रही है। पहले लैपटॉप योजना, मेधावी विद्यार्थी छात्रवृत्ति योजना, साइकिल योजना और अब स्कूटी योजना चला कर प्रदेश की प्रतिभा का सम्मान कर आगे बढ़ाने के लिए मार्ग प्रशस्त कर रही है। अब आपका दायित्व है कि आप शासन की योजनाओं का लाभ उठाकर समाज और प्रदेश के विकास में अपना योगदान दें। आप जैसा स्वयं को गढ़ोगे वैसा ही बनोगे, कठिन कुछ नहीं है। यह मन का भय है। जब किसी विषय का बेसिक समझ जाओगे तो वह सरल लगने लगेगा। जो विद्यार्थी विषय का अध्ययन गहराई से कर बेसिक को क्लियर कर लेते हैं तो उन्हें कठिन भी सरल लगने लगता है।
कलेक्टर की दरियादिली
मालवांचल के सबसे बड़े जिले इंदौर के कलेक्टर इलैयाराजा जहां एक तरफ अपनी कठोरता के लिए चर्चा में रहते हैं, वहीं उनकी दरियादिली हमेशा खबरों में रहती है। गत दिनों जनसुनवाई के दौरान उनकी दरियादिली देखने को मिली। कलेक्टर फस्र्ट फ्लोर पर जनसुनवाई कर रहे थे। जनसुनवाई में दिव्यांग अपनी शिकायतें लेकर पहुंचे। उन्हें जानकारी नहीं थी कि लिफ्ट खराब है। ऐसे में वे निचली मंजिल पर ही रुक गए और कलेक्टर से मिलने के लिए अन्य अफसरों से बात करने लगे। ऊपरी मंजिल पर कलेक्टर जनसुनवाई के आवेदनों का निराकरण ही कर रहे थे। जब उन्हें पता चला कि सभी दिव्यांग आवेदक तीनों लिफ्ट बंद होने से ऊपर नहीं आ पा रहे हैं ,तो उन्होंने सीढिय़ों के रास्ते नीचे जाकर सभी से बात कर उनकी शिकायतों का समाधान किया। साहब की यह दरियादिली देखकर दिव्यांगों ने कहा कि साहब को देखकर ही हमारी आधी समस्या दूर हो गई।
अटैचमेंट के बहाने आराम
ग्वालियर-चंबल अंचल के सबसे बड़े जिले ग्वालियर कलेक्टर अक्षय कुमार सिंह ने शिक्षकों को सुख-चैन छीन लिया है। दरअसल, साहब को जैसे ही पता चला की जिले के स्कूलों में शिक्षकों की कमी है तो उन्होंने उसकी पड़ताल कराई। पड़ताल में यह बात सामने आई की बड़ी संख्या में शिक्षक स्कूलों में पढ़ाने की बजाय अन्य विभागों में आराम फरमा रहे हैं। फिर क्या था, साहब ने अटैच सभी शिक्षकों को अपने मूल विभाग में जाने के आदेश जारी कर दिए। साहब के इस फरमान से हडक़ंप मच गया है। अब अटैचमेंट के नाम पर अलग-अलग विभागों व कार्यालयों में आराम कर रहे शिक्षकों को अपने मूल विभाग स्कूल शिक्षा में जाना होगा। पहले चरण में निर्वाचन शाखा से अलग लगे विभागों के शिक्षकों को रिलीव किया जाएगा। यहां यह बता दें कि कुछ समय पहले ही कार्यालयों में अटैच आरआई और पटवारी कलेक्टर ने रिलीव किए थे। अब शिक्षा विभाग में अटैचमेंट को खत्म किया जा रहा है। कई शिक्षक ऐसे हैं , जो लंबे समय से दूसरे विभागों अटैचमेंट के नाम पर आराम कर रहे हैं।
साहब का अभिनव नवाचार
प्रदेश के पिछड़े, गरीब और कुपोषित जिले में शुमार ग्वालियर-चंबल अंचल के श्योपुर कलेक्टर संजय कुमार ने एक ऐसा अभिनव नवाचार किया है, जिसकी सरकार ने भी सराहना की है। अब इस नवाचार को अन्य जिलों में लागू करने की तैयारी की जा रही है। इस नवाचार की शुरुआत कलेक्टर ने गत दिनों किया। इस कार्यक्रम के शुरू होने के बाद अब प्रसूताओं और उनके परिजनों को बच्चों के जन्म प्रमाण पत्रों के लिए चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। इस कार्यक्रम के अंतर्गत अस्पतालों से डिस्चार्ज होने से पहले प्रसूताओं के बेड पर बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र और बधाई कार्ड सौंपे जाएंगे। कलेक्टर की पहल से प्रसूता और उनके परिजनों को दफ्तरों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। जन्म प्रमाण के लिए घूसखोरी की शिकायतों पर भी लगाम लगेगी। गत दिनों खुद कलेक्टर जिला अस्पताल के मेटरनिटी वार्ड में पहुंचे और नवजात बच्चों को माला पहनाकर उनकी माताओं को बधाई दी। जिन माताओं ने बेटियों को जन्म दिया कलेक्टर ने उन्हें विशेष बधाई दी, बधाई के साथ बच्चों के उपयोग की किट, मिठाई के डिब्बे, जन्म प्रमाण पत्र और बेटियों को बधाई प्रमाण पत्र देकर सरकार की लाड़ली लक्ष्मी योजना की जानकारी दी।
जमीन के सौदागर बने अफसर
मप्र हो या देश का कोई भी कोना प्रदेश के ब्यूरोक्रेट्स निवेश करने में किसी से पीछे नहीं रहते हैं। ताजा नजारा वेस्टर्न हाईवे के आसपास देखने को मिल सकता है। सूत्रों का कहना है कि होशंगाबाद से शुरू होकर राजधानी से होते हुए इंदौर तक जाने वाले इस वेस्टर्न हाईवे के किनारे प्रदेश के मालदार अधिकारियों ने जमकर निवेश किया है। बताया जाता है कि हाईवे के दोनों तरफ अधिकांश जमीनें इन अफसरों ने मुंह मांगी कीमत पर खरीदी हैं। सूत्रों का कहना है कि भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए अफसरों ने यह निवेश किया है और आने वाले समय में और अफसर बड़ा निवेश करने की तैयारी कर रहे हैं। प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि राजधानी भोपाल हो या फिर व्यावसायिक राजधानी इंदौर, यहां बड़ी से बड़ी निजी परियोजनाओं में अफसरों ने बड़े स्तर पर निवेश किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर मप्र की अधिकांश आबादी आर्थिक रूप से संघर्ष कर रही है, ऐसे में अफसरों की कमाई कैसे बढ़ रही है।