यस एमएलए- बंडा: सिंचाई व पीने के पानी का संकट

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भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। सागर जिले की बंडा विधानसभा सीट की बात करें तो वह एक तरह से कृषि प्रधान इलाका है। यह अंग्रेजों के जमाने में तहसील हुआ करती थी। कभी दस्यु समस्या से पीडि़त रहा ये इलाका, जों काले पत्थर की खदानों के लिए पूरे देश और विदेश तक में मशहूर है। इस इलाके में धामोनी का ऐतिहासिक किला है, जो 1857 के संग्राम का गवाह रहा है और इस किले को जीतने में अंग्रेजों को पसीना छूट गया था। सिंचाई और पीने के पानी का संकट भी बंडा की पहचान बन चुका है। रोजगार एक बड़ी समस्या है और लोग बीड़ी बनाकर अपनी रोजी रोटी चलाते हैं। 1957 से अस्तित्व में आई बंडा विधानसभा सीट के लिए अब तक 14 बार चुनाव हो चुके हैं। इनमें 6 बार कांग्रेस , दो बार जनसंघ एक बार जनता पार्टी और पांच बार भाजपा चुनाव जीत चुकी है। इस क्षेत्र से बाहरी प्रत्याशी भी चुनाव जीतते रहे हैं। केवल भाजपा के हरनाम सिंह राठौर ही ऐसे रहे हैं, जिन्हें बंडा क्षेत्र की जनता ने चार -चार बार अपना प्रतिनिधि चुना। इनके अलावा कोई भी नेता दूसरी बार इस सीट से विधायक नहीं बन पाया। यहां तक की हरनाम सिंह राठौर के बेटे को भी दूसरी बार पराजय का सामना करना पड़ा। इस बार कांग्रेस के विधायक तरवर लोधी के सामने भी दूसरी बार चुनाव जीतने की चुनौती होगी। यदि कांग्रेस फिर तरवर लोधी को प्रत्याशी बनाती है तो भाजपा किसी यादव उम्मीदवार को मैदान में उतारने का सोच सकती है। इन दोनों समाजों के वोट ही यहां निर्णायक है।
जातिगत समीकरण
जहां तक बंडा के जातिगत समीकरण का सवाल है तो यहां सबसे ज्यादा लगभग 40000 लोधी मतदाता है। दूसरे नंबर पर 33 हजार के आसपास यादव मतदाता है। तीसरे नंबर पर लगभग 30,000 दलित वर्ग के मतदाता और आदिवासी एवं कुशवाहा समाज के लगभग 20-20 हजार मतदाता है। क्षेत्र में लगभग 15000 ब्राह्मण और 6000 के आसपास मुसलमान मतदाता है। साफ है कि पिछड़ा एवं अजा-अजजा वर्ण निर्णायक भूमिका में है। दरअसल लोधी बाहुल्य इस विधानसभा में 2018 में युवा तरवर सिंह लोधी को टिकट देकर कांग्रेस ने भाजपा की इस सीट को छीन लिया। स्थानीय स्तर पर तरवर सिंह लोधी साफ सुथरी छवि और सहज-सरल मुलाकात के लिए जाने जाते हैं। विधायक तरवर सिंह लोधी कहते हैं कि मैं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार से हूं और मेरे परिवार की आस्था कांग्रेस की विचारधारा में है। मेरे पर कांग्रेस ने भरोसा जताया था और युवा उम्मीदवार के तौर पर मैं मैदान में था। 2018 चुनाव में मैनें 24 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी। कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में बंडा के विकास की परिकल्पना कमलनाथ के मार्गदर्शन में तैयार हो रही थी, लेकिन भाजपा की सरकार आते ही बंडा की जनता को परेशान किया जा रहा है। किसान खाद, बीज और सिंचाई के लिए परेशान है, युवा रोजगार के लिए भटक रहा है। विधानसभा क्षेत्र में पानी का बड़ा संकट है। आने वाले चुनावों में फिर जीत हासिल कर बंडा के विकास की इबारत लिखना है।
कौन-कौन है दावेदार
फिलहाल जातिगत समीकरण और 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी तरवर सिंह लोधी के प्रदर्शन को देखकर माना जा रहा है कि उनका टिकट दोबारा मिलना तय है, क्योंकि पिछले चुनाव में उन्होंने करीब 24 हजार मतों से भाजपा के तत्कालीन विधायक को हराया था। वहीं बंडा सीट लोधी बाहुल्य होने के कारण उनका टिकट जातिगत समीकरणों के आधार पर तय है। हालांकि पूर्व विधायक नारायण प्रजापति और अन्य दावेदारी कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ भाजपा में पूर्व विधायक हरवंश राठौर, सुधीर यादव, जाहर सिंह, रनजोत सिंह ठाकुर और तृप्ति सिंह कानोनी दावेदारी कर रही है।
सियासी समीकरण
विधानसभा चुनाव 2008 में चतुष्कोणीय मुकाबले में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। 2008 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी नारायण प्रसाद प्रजापति को 32348 वोट हासिल हुए थे, जो कुल मतदान का 29 फीसदी था और भाजपा के रामरक्षपाल सिंह को 30423 सीटें हासिल हुई थीं। जो कुल मतदान का 27 फीसदी था। इस तरह चतुष्कोणीय मुकाबले में भाजपा प्रत्याशी रामरक्षपाल सिंह 1925 वोटों से चुनाव हार गए। विधानसभा चुनाव 2013 में भाजपा ने अपनी हार का बदला ले लिया था। 2013 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी हरवंश सिंह राठौर को 66 हजार 203 वोट हासिल हुए थे। जो कुल मतदान का 46 प्रतिशत था। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी नारायण प्रजापति को 48 हजार 223 वोट हासिल हुई थी। जो कुल मतदान का 33 प्रतिशत था। इस तरह कांग्रेस प्रत्याशी नारायण प्रजापति 17 हजार 880 वोटों से चुनाव हार गए थे। विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस ने 2013 में हारी सीट फिर वापस छीन ली। इस बार कांग्रेस ने लोधी बाहुल्य सीट पर युवा चेहरे तरवर सिंह लोधी को मैदान में उतारा और तरवर सिंह ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 84 हजार 456 सीटें हासिल की।
जलसंकट और बेरोजगार और पलायन
बंडा विधानसभा की बात करें तो कृषि प्रधान इस इलाके में सिंचाई के पानी का संकट होने के कारण लोग खेती से अपना जीवन यापन बड़ी मुश्किल से कर पाते हैं। रोजगार का कोई साधन ना होने के कारण बंडा की एक चौथाई आबादी पलायन कर चुकी है। सिंचाई के पानी के संकट खेती का उत्पादन भी प्रभावित होता है। वहीं पीने के पानी की समस्या भी बंडा की प्रमुख समस्या है। खासकर ग्रामीण इलाकों में पानी के लिए लोगों को मीलों परेशान होना पड़ता है। वहीं दूसरी तरफ रोजगार का कोई बड़ा साधन नहीं है। बंडा में एक फर्टिलाइजर कारखाना लगा हुआ है। जिसमें लोग बीमारियों के डर से काम करने नहीं जाते हैं।

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