
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। जनजातीय समाज की आय का प्रमुख स्रोत वनोपज होती है। अगर इसके सही दाम मिलें तो फिर यह अति गरीब और अति पिछड़ा समाज भी आर्थिक रुप से समृद्ध हो सकता है। इसका उदाहरण बनकर सामने आया है कटनी जिले के निपनिया में रहने वाला इस वर्ग का समुदाय। वहां पर सरकार से मिली मदद और योजनाओं का लाभ मिलते ही इस समुदाय के सैकड़ों लोगों की आय न केवल बढ़ गई है, बल्कि उनके शोषण पर भी लगाम लग गई है। इसकी वजह है , यहां पर वनोपज के रूप में बहुतायत रुप से चिरौंजीं होती है। इसके बीच यानि की अचार को पहले बिचौलिए औने-पौने दामों में खरीदकर अच्छा खासा मुनाफा कमाते थे, लेकिन सरकार द्वारा शुरु की गई कई योजनाओं का लाभ जैसे ही इस गांव की जनजातीय समुदाय को मिलना शुरु हुआ , उनकी तकदीर ही बदलना शुरु हो गई। दरअसल जनजातीय आबादी वन क्षेत्रों से महुआ, गोंद, लाख, अचार, चिरौंजी आदि का वन क्षेत्रों से संग्रहण कर जीविकोपार्जन करती हैं। भण्डारण, विपणन और मार्केटिंग स्किल के अभाव में इन्हें अपनी वनोपज औने-पौने दाम पर स्थानीय व्यापारियों को बेचना पड़ती थी, लेकिन अब सरकार ने उनके लिए कई योजनाएं शुरु की हैं। इनमें वनोपज के समर्थन मूल्य तय करना, वनोजन की सरकारी खरीदी, वनोजन के भंडारण और प्र-संस्करण के साथ ही उसके विपणन तक की व्यवस्थाएं शामिल हैं। यही वजह है अब जनजाति आबादी अब वनोपज संग्रहण कर अच्छा लाभ अर्जित कर रही हैं।
अब ब्रांड बनाने की तैयारी
निपनिया की चिरौंजी की पूरे देश में ब्रांडिंग की जायेगी। साथ ही उत्पादन बढ़ाने, अचार के पौधों के सघन पौध-रोपण की भी योजना है, जिससे भविष्य में जनजाति वर्ग अधिक आय अर्जित कर सके। दोनों गांवों को मिला कर करीब साढ़े 600 की आबादी वाले गांव में चिरौंजी के 500 से 600 वृक्ष हैं। इनसे प्रतिवर्ष करीब 6 हजार किलो चिरौंजी निकलती है। जिसे बाजार में 1600 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचने पर समिति को 24 लाख रुपये का शुद्ध लाभ प्राप्त हो रहा है। जनजातीय समुदाय के मदन सिंह और उर्मिला बाई के मुताबिक अधिकारियों की मदद से प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के बाद से हमें अच्छी कमाई होने लगी है। पहले हम चिरौंजी की गुठलियों को एकत्रित करके सीधे व्यापारी को बेच देते थे। इससे हम लोगों को तो कम पैसा मिलता था, लेकिन व्यापारी बड़ा मुनाफा कमाते थे। लेकिन अब हमें ही अच्छी कीमत मिलना शुरु हो गई है।
प्रोसेसिंग यूनिट से बड़ा मुनाफा
महंगे ड्राई फ्रूट्स में शामिल चिरौंजी की प्रोसेसिंग और बेहतर पैकेजिंग कर इसकी खुले बाजार में ब्रिकी कर कटनी जिले के निपनिया और केवलारी का ग्रामीण जनजाति समुदाय समृद्धि की नई इबारत लिख रहा है। यहां चिरौंजी की प्रोसेसिंग इकाई लगने से सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि जनजातियों को बहला-फुसलाकर कम कीमत में चिरौंजी की गुठली खरीदने वाले व्यापारियों और बिचौलियों से ग्रामीणों को मुक्ति मिल गई है और अब वे ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं। निपनिया गांव की प्रसिद्ध वनोपज चिरौंजी की बेहतर गुणवत्ता की वजह से बाजार में इसकी खासी मांग है। निपनिया और केवलारी गांव में अचार के पेड़ बहुतायत में हैं। पहले व्यापारी और बिचौलिये जनजाति समुदाय से काफी कम कीमत पर इसे खरीद लेते थे। इससे जनजातियों के बजाय व्यापारियों को ही सीधा फायदा होता था। इस समस्या से निजात दिलाने के लिए कृषि विभाग की आत्मा परियोजना से गांव में रानी दुर्गावती बहुउद्देशीय सहकारी समिति का गठन कर बैंक से चिरौंजी प्र-संस्करण इकाई स्थापित कराई गई। जिससे प्र-संस्करण और पैकेजिंग कर समिति अब 100-100 ग्राम के चिरौंजी के पैकेट 180 रुपये मूल्य पर विक्रय कर रही है। इससे जनजातीय ग्रामीण को सीधा मुनाफा मिल रहा है और वे आत्मनिर्भर भी हो रहे हैं।